Scholarship Scam : CBI ने हाईकोर्ट में सील्ड कवर में पेश की रिपोर्ट

Edited By Vijay, Updated: 27 Nov, 2019 10:44 PM

cbi presented report in sealed cover in court

सीबीआई द्वारा हिमाचल में 250 करोड़ के छात्रवृत्ति घोटाले की जांच सिर्फ 22 शैक्षणिक संस्थानों तक सीमित किए जाने के मामले में सीबीआई ने सील्ड कवर में अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट के समक्ष पेश की।

शिमला (ब्यूरो): सीबीआई द्वारा हिमाचल में 250 करोड़ के छात्रवृत्ति घोटाले की जांच सिर्फ 22 शैक्षणिक संस्थानों तक सीमित किए जाने के मामले में सीबीआई ने सील्ड कवर में अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट के समक्ष पेश की। जनहित में दायर याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट को बताया गया कि 250 करोड़ के छात्रवृत्ति घोटाले में कुल 2772 शैक्षणिक संस्थान हैं लेकिन राज्य सरकार ने सिर्फ  22 शैक्षणिक संस्थानों की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा है। सीबीआई की ओर से हाईकोर्ट से गुहार लगाई गई थी कि चूंकि वह मामले कि जांच कर रही है तो इस स्थिति में सीबीआई को सील्ड कवर में रिपोर्ट दायर करने की अनुमति दी जाए ताकि उनके द्वारा की गई जांच सार्वजनिक न हो।

जनहित में दायर याचिका में प्रार्थी ने छात्रवृत्ति घोटाले बारे दैनिक समाचार पत्रों में छपी खबरों को भी संलग्न किया है। प्रकाशित खबरों के अनुसार प्रारंभिक जांच में सीबीआई ने बड़ा खुलासा किया है। केंद्रीय जांच एजैंसी को छानबीन में पता चला है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों व निजी शिक्षण संस्थानों में छात्रवृत्ति हड़पने के लिए बाकायदा एक रैकेट चल रहा था। इसके लिए अधिकारी निजी शिक्षण संस्थानों को छात्रवृत्ति जारी करने के लिए दस फीसदी तक कमीशन लेते थे।

याचिका में संलग्न खबरों के अनुसार जांच में पता चला है कि कमीशन का यह खेल होटलों में चलता था। यहां पर स्कॉलरशिप जारी करवाने की एवज में निजी संस्थान विभाग के अधिकारियों को कमीशन का पैसा देते थे। सीबीआई अब यह पता लगा रही है कि इस खेल में कितने लोग शामिल थे और कमीशन कितने लोगों में बंटता था। इस बात की तस्दीक निजी शिक्षण संस्थानों के प्रबंधकों से पूछताछ में भी हो चुकी है। इसके बाद ही शिक्षा विभाग के अधीक्षक अरविंद राज्टा सीबीआई के रडार पर आए।

सीबीआई की जांच में यह भी पता चला है कि स्कॉलरशिप की स्वीकृति से संबंधित फाइलों को शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों तक पहुंचने नहीं दिया जाता था। निचले स्तर के अधिकारी, कर्मचारी फाइलों को अपने स्तर पर ही मार्क कर देते थे। जांच में यह भी पता चला है कि नियमों के विपरीत निजी ई-मेल आईडी से छात्रवृत्ति के काम को अंजाम दिया जाता था।

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