अफसरशाही के तबादलों की मार से कब आगे बढ़ेगी सरकार

Edited By Ekta, Updated: 10 Jul, 2019 11:05 AM

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किसी भी जिला के लिए डी.सी. का पद बड़ा अहम होता है। जिला के मुखिया की भूमिका निभाने वाले जिलाधीश पर सारी स्कीमें व परियोजनाएं टिकी होती हैं लेकिन हिमाचल में इस पद की गरिमा को ही ठेस पहुंचाई जा रही है। कहीं तीसरे-चौथे महीने ही डी.सी. बदले जा रहे हैं...

नाहन/हमीरपुर (साथी/पुनीत): किसी भी जिला के लिए डी.सी. का पद बड़ा अहम होता है। जिला के मुखिया की भूमिका निभाने वाले जिलाधीश पर सारी स्कीमें व परियोजनाएं टिकी होती हैं लेकिन हिमाचल में इस पद की गरिमा को ही ठेस पहुंचाई जा रही है। कहीं तीसरे-चौथे महीने ही डी.सी. बदले जा रहे हैं तो कहीं एक साल पूरा होते ही रुखसत किए जा रहे हैं। इससे पूरा तंत्र ही हिल रहा है। यह केवल वर्तमान प्रदेश सरकार में ही नहीं हो रहा है बल्कि पूर्व कांग्रेस सरकार में भी ऐसा ही चलता रहा है। कुछ जिले तो पिकनिक स्पॉट बन चुके हैं। यहां लग ही नहीं रहा कि अधिकारियों को काम करने के लिए भेजा जा रहा है या फिर आराम करने के लिए। स्थानांतरण के बाद सरकार की ओर से यही रटा-रटाया जवाब मिलता है कि अफसरशाही के तबादले जनहित व प्रशासनिक आधार पर किए जा रहे हैं लेकिन सच तो यह है कि अफसरशाही के तबादलों में सबसे बड़ा हित तो सत्ता सुख भोगने वाले नेताओं का ही होता है। नेताओं की मनमर्जी चलती है। ऐसे में जनहित कहीं नजर नहीं आ रहा। सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या भाजपा की, तबादलों का मैच चल रहा है।  

सिरमौर में एक दशक में ही दर्जन से अधिक डी.सी. व एस.पी. बदले

जिलों में तैनात होने वाले आलाधिकारियों में से डी.सी. एवं एस.पी.तो निशाने पर रहते हैं। इनको लेकर नेता हमेशा मुख्यमंत्री पर तबादले को लेकर दबाव बनाते हैं। मिसाल के तौर पर जिला सिरमौर की बात करें तो पिछले एक दशक में यहां एक दर्जन से ज्यादा डी.सी. एवं एस.पी. सरकार ने नेताओं के इशारे पर बदल डाले। इनमें से कुछ साल भर भी नहीं टिके। अक्सर जिलों में तैनात होने वाले अधिकारी सियासी दबाव के चलते अपना बिस्तर तैयार रखते हैं। कई जगह तो दबाव का यह आलम है कि युवा अफसर भी परेशान रहते हैं।

तबादलों से योजनाएं भी प्रभावित

जिलों में लगातार अफसरशाही के होने वाले तबादलों का विपरीत असर सरकार की लागू होने वाली योजनाओं पर पड़ता है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर एक डी.सी. साल भर में ही वापस बुला लिया जाता है तो सरकार की कल्याणकारी योजनाएं कैसे लागू होंगी। सिस्टम कैसे रफ्तार पकड़ेगा। जिलाधीश ही ऐसा अधिकारी होता है, जोकि जिला के लिए कई नई स्कीमें व बड़ी परियोजनाएं भी बनाता है और उन्हें मूर्तरूप भी देता है लेकिन 3-4 माह में ही इनके तबादले कर जिलों के विकास को भी पीछे धकेला जा रहा है।

हमीरपुर को डेढ़ साल में मिला चौथा डी.सी.

जिला हमीरपुर को भाजपा सरकार बनने के बाद से डेढ़ साल में ही चौथा जिलाधीश मिला है। 3 जिलाधीश 3 से 4 माह तक ही जिला का मुखिया बनकर सेवाएं दे सके जबकि एक जिलाधीश ही 1 साल अपनी सेवाएं दे पाए। इतनी जल्दी जिलाधीशों के तबादलों से आम जनता परेशान हो रही है। विधानसभा चुनाव से पहले 21 सितम्बर, 2017 को यहां पर आई.ए.एस. अधिकारी संदीप कदम को मंडी जिला से स्थानांतरित कर हमीरपुर भेजा था लेकिन भाजपा की सरकार बनते ही 5 जनवरी को उनका तबादला कर यहां आई.ए.एस. अधिकारी राकेश प्रजापति को भेजा गया। 

प्रजापति अभी जिला की समस्याओं को समझ ही रहे थे और हमीरपुर शहर के सौंदर्यीकरण को लेकर प्लान तैयार कर रहे थे कि 3 माह बाद ही 22 अप्रैल, 2018 को उनका स्थानांतरण कर डा. रिचा वर्मा को हमीरपुर की कमान सौंपी गई। डा. वर्मा का कार्यकाल अभी एक साल ही हुआ था कि 4 जून, 2019 को उनके तबादला आदेश आ गए। अब डेढ़ साल में ही चौथा जिलाधीश जिलावासियों को मिला है। रोचक है कि राकेश प्रजापति, डा. ऋचा वर्मा व हरिकेश मीणा तीनों बैच 2012 के आई.ए.एस. अधिकारी हैं। यही हाल कांग्रेस के कार्यकाल में भी रहा था, जब किसी भी आई.ए.एस. अधिकारी को टिककर काम करने का मौका ही नहीं दिया।   

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