Edited By Kuldeep, Updated: 01 Oct, 2018 03:51 PM
मां-बाप अपने बच्चों का लालन-पालन बड़े प्यार से करते हैं ताकि बच्चे बुढ़ापे में उनकी लाठी बन सकें लेकिन जब बच्चे बुढ़ापे में साथ न दें तो बुजुर्ग कहां जाएं। यह किसी फिल्म की कहानी नहीं है बल्कि बिलासपुर शहर से करीब 8 किलोमीटर दूरी पर रहने वाली बंसती...
बिलासपुर: मां-बाप अपने बच्चों का लालन-पालन बड़े प्यार से करते हैं ताकि बच्चे बुढ़ापे में उनकी लाठी बन सकें लेकिन जब बच्चे बुढ़ापे में साथ न दें तो बुजुर्ग कहां जाएं। यह किसी फिल्म की कहानी नहीं है बल्कि बिलासपुर शहर से करीब 8 किलोमीटर दूरी पर रहने वाली बंसती देवी (87) की जिंदगी की हकीकत है। अपनों द्वारा सहारा न दिए जाने से बंसती देवी अपने पुश्तैनी मकान में अकेली रहने पर मजबूर है जबकि उसके 3 बेटे हैं और तीनों ही सरकारी नौकरी में हैं।
35 साल तक बर्तन मांजकर चलाई रोजी-रोटी
अपनों द्वारा ठुकराई गई बसंती देवी ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा कि 35 साल तक तो उसने बिलासपुर शहर में लोगों के घरों पर झाड़ू-पोचा व बर्तन मांजकर अपनी रोजी-रोटी चलाई लेकिन उम्र के इस पड़ाव में अब ऐसा करना संभव नहीं है। उसने बताया कि उसे अपने लिए स्वयं ही अपना खाना बनाना पड़ता है। बीमारी की वजह से कई बार बिस्तर से उठ पाना संभव नहीं होता और फिर भूखे ही रहना पड़ता है। खाना भी वह लकडिय़ां जलाकर चूल्हे पर बनाती है। उसे उसके बेटे न खाना देते हैं और न ही चाय आदि।
स्वच्छ योजना का नहीं मिला लाभ
बसंती देवी ने बताया कि उसे शौच आदि भी खेत में ही करनी पड़ती है जबकि उसके तीनों बेटों के पास शौचालय हैं। हालांकि प्रधानमंत्री ने देश को स्वच्छ भारत बनाने के लिए अभियान चलाया हुआ है और लोगों को शौचालय बनाने के लिए पैसे भी दिए जाते हैं लेकिन इस पात्र बुजुर्ग महिला को इस योजना का भी लाभ नहीं मिला है। बसंती देवी ने बताया कि उसे पीने का पानी तक नहीं भरने देते। मकान काफी पुराना है और गिरने की कगार पर है तथा वह उसकी मुरम्मत करवाना चाहती है लेकिन इस मकान में उसके बेटों ने अपना सामान रखा है जिस कारण वह मकान की मुरम्मत नहीं करवा सकती। बसंती देवी ने जिला प्रशासन से सामाजिक सुरक्षा की गुहार लगाई है।