‘बाण’ व्यवसाय गिन रहा आखिरी सांसें, डिमांड हुई कम

Edited By Punjab Kesari, Updated: 05 Mar, 2018 12:10 PM

baan business keep counting last breath

घरेलू बाण अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। खत्म होती रुचि तथा खपत में कमी की वजह से यह व्यवसाय अब सिमटने लगा है। प्रदेश के निचले क्षेत्रों में स्वरोजगार के रूप में लोगों का ‘बाण’ बनाने का प्रमुख व्यवसाय अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है।

ऊना (सुरेन्द्र शर्मा): घरेलू बाण अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। खत्म होती रुचि तथा खपत में कमी की वजह से यह व्यवसाय अब सिमटने लगा है। प्रदेश के निचले क्षेत्रों में स्वरोजगार के रूप में लोगों का ‘बाण’ बनाने का प्रमुख व्यवसाय अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। इससे रोजगार का संकट भी पैदा हो रहा है। कभी यही बगड़ घास और उससे बनने वाली बाण पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों की आर्थिकी का मुख्य स्रोत था। अब मशीनों पर ताले लटके हैं। कुछ ही लोग रह गए हैं जो इस व्यवसाय से जुड़े हैं। न अब बाण से बनी चारपाइयों को तरजीह दी जाती है और न ही किसी और उद्देश्य के लिए इसे प्रयोग में लाया जाता है। कुछ लोग ही हैं जो बाण के उत्पादों का प्रयोग करते हैं। इनमें कुछ किसान हैं जो फसल को इकट्ठा करते समय इसे बांधने के लिए इसका प्रयोग करते हैं। 


प्लास्टिक की रस्सियों के आने से हुई बाण की सार्थकता कम
बाण मेकिंग सिस्टम अब बुरी तरह से हांफ गया है। आधुनिकता की दौड़, बगड़ घास का विलुप्त होना, बाण की डिमांड में कमी व प्लास्टिक से बनी सामग्री के बाजार में आ जाने के कारण बाण का घरेलू उत्पाद अब पूरी तरह से अंतिम सांसें गिन रहा है। इससे अनेक लोगों को रोजी-रोटी के लिए इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। इस घरेलू व्यवसाय के विलुप्त होते जाने से अनेक परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट छा गया है। बाजार में कम होती डिमांड से व्यवसाय पर बुरा असर पड़ा है। इसे रिवाइव करने की सरकारी कोशिशें न होने से गांवों में जो लोग इस व्यवसाय पर निर्भर थे, उन्हें रोजगार के लिए और विकल्प चुनने पड़ रहे हैं। कोई समय था जब देसी तरीके से बनाए जाने वाले बाण की काफी डिमांड हुआ करती थी लेकिन प्लास्टिक से बनने वाली रस्सियों/रस्सों के बाजार में आने के बाद देसी उत्पाद बाण की सार्थकता कम होने लगी है। जिलाभर में सरकारी मदद से लगी अनेक यूनिटें भी बंद हो गई हैं। 


मेहनत अधिक और लाभ कम
सही मार्कीटिंग न होने से भी इस व्यवसाय पर बुरा असर पड़ा है। मार्कीटिंग न होने से इस व्यवसाय में लोगों को उनकी मेहनत के अनुसार मुनाफा नहीं मिल पाता है। कई बार मेहनत अधिक तो लाभ कम होता है। इससे लोग बाण व्यवसाय से पीछे हट रहे हैं। अब गांवों में इक्का-दुक्का लोग ही ऐसे मिलते हैं जो इस व्यवसाय को किसी तरीके से जिंदा रखे हुए हैं अन्यथा अनेक घरों में बाण बनाने की यूनिट/मशीनें जंग के हवाले हो चुकी हैं। 


नहीं मिलती सरकारी मदद
ग्राम पंचायत लमलैहड़ी के प्रधान राजेश कुमार ने कहा कि उनका यह क्षेत्र बाण उद्योग का एक प्रमुख केंद्र है। गांव में अभी भी दर्जनों लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। हालांकि सरकारी तौर पर कोई मदद तो नहीं मिलती लेकिन अपने बलबूते पर ही ग्रामीण इस व्यवसाय को जिंदा रखे हुए हैं। उनका कहना है कि वर्ष में महज 3 महीने का ही यह कारोबार है। 

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