विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार हिमाचल दौरे पर EX CM, किए बड़े खुलासे

Edited By Ekta, Updated: 15 Jun, 2018 09:03 AM

assembly election after first time himachal tour at ex cm

हिमाचल के 6 बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के मन में विधानसभा चुनाव में हार की टीस कहीं न कहीं अभी भी मन में है। अगले साल लोकसभा चुनाव की आहट के साथ ही विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार हिमााचल के दौरे पर निकले वीरभद्र को देखकर यही लगता है कि राजनीति...

शिमला: हिमाचल के 6 बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के मन में विधानसभा चुनाव में हार की टीस कहीं न कहीं अभी भी मन में है। अगले साल लोकसभा चुनाव की आहट के साथ ही विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार हिमााचल के दौरे पर निकले वीरभद्र को देखकर यही लगता है कि राजनीति का यह चाणक्य हार मानने वालों में नहीं है तथा उम्र के इस पड़ाव में भी सियासत का शेर चुप नहीं बैठा है। वीरवार शाम हमीरपुर के सर्किट हाऊस में पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री ने बातों ही बातों में चुनाव में हार की वजह व संगठन को लेकर बेबाकी से अपनी राय रखी। उन्होंने हार की वजहों में जहां ई.वी.एम. में गड़बड़ी होने का अंदेशा जताया तो संगठन की कार्यप्रणाली से भी नाखुश दिखे। वहीं उन्होंने बड़े-बड़े नेताओं की हार के कारण गिनाकर अपने प्रतिद्वंद्वियों पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना भी साधा। महज 25 साल की उम्र में राजनीति में कदम रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री के साथ हमारे प्रतिनिधि पुनीत शर्मा की बातचीत की रिपोर्ट:


एक राजनेता को कैसा होना चाहिए?
एक राजेनता को सभी वर्गों के कल्याण के लिए काम करना चाहिए। पूरे देश को अपना घर समझे और आदर्श पेश करे। 


क्या एक बार फिर मुख्यमंत्री बनना चाहेंगे?
अब कोई ऐसी इच्छा नहीं है। जब 25 साल की उम्र में राजनीति में आया, तब भी राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व लाल बहादुर शास्री उन्हें राजनीति में लाए थे। वर्ष 1962 में सांसद बना था। उस समय हिमाचल वन माफिया से ग्रसित था तथा हजारों पेड़ काटे जा रहे थे। ऐसी स्थिति में उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध प्रदेश का सी.एम. बनाकर भेजा था।


अगर लोकसभा चुनाव लडऩे को बोला जाए तो क्या आप तैयार हैं। क्या आपके परिवार से कोई लोकसभा चुनाव लड़ेगा?
मेरी अब चुनाव लडऩे की कोई इच्छा नहीं है और न ही परिवार से कोई चुनाव लड़ेगा। फिर भी हाईकमान पर निर्भर करेगा। अभी मेरा बेटा विक्रमादित्य सिंह छोटी उम्र में विधायक बना है। मेरा तो अभी यही मत है कि उभरते हुए नेताओं की चुनाव में मदद करूं।


विधानसभा चुनाव में ज्यादा मुश्किल नहीं थी, फिर भी कांग्रेस हारी, कमी कहां रही और भाजपा ने कैसे बाजी मारी?
मेरे कहने के बावजूद ऐसे लोगों को टिकट दिया गया जिनमें जीतने की क्षमता नहीं थी। टिकट आबंटन अगर सही होता तो कांग्रेस की जीत को कोई नहीं रोक सकता था। उत्तराधिकारी कौन होगा इस सवाल पर उन्होंने कहा कि जो भी काबिल होगा। प्रदेश में बहुत से नेता काफी योग्य व क्षमतावान हैं। 


कांग्रेस को वीरभद्र सिंह के मुकाबले का कोई नेता नहीं मिल पाया। क्या कारण हैं?
ऐसी बात नहीं है। बहुत से नेता हैं जोकि ऊर्जावान, जुझारू व क्षमतावान हैं।


यह भी कहा जाता है कि सुखराम परिवार के विवाद की वजह से मंडी में इस बार कांग्रेस का सफाया हुआ। क्या कहते हैं आप?
(हंसते हुए) यह सब केवल कोरी बातें हैं। सच्चाई तो यह है कि इस बार मंडी, चम्बा व कांगड़ा के कुछ क्षेत्रों में ई.वी.एम. की गड़बड़ी की वजह से कांग्रेस हारी है। 


बड़े-बड़े नेता चुनाव हार गए, क्या कारण रहे? 
(अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए) अब छल-कपट, गुटबाजी, धन का दुरुपयोग करके चुनाव नहीं जीत सकते, क्योंकि जनता अब अपने विवेक से काम लेती है तथा परखे हुए आदमी को वोट देती है। 


एक राजनेता को कब तक राजनीति करनी चाहिए?
जब तक दिमाग चलता है। काम करने की क्षमता व हिम्मत हो, तब तक राजनीति करनी चाहिए।


उलटफेर की इस राजनीति को कभी छोडऩे का मन हुआ। कोई एक किस्सा?
फिर वही दोहरा रहा हूं कि मेरा राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं था। मैं तो दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर बनना चाहता था लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्री व इंदिरा गांधी की प्रेरणा से राजनीति में आया तथा महासू से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा।


मौजूदा प्रदेश सरकार की कोई कमी या खूबी?
अभी तो जयराम ठाकुर नए-नए सी.एम. बने हैं और सरकार की शुरूआत हुई है। अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा।


लोकसभा चुनाव जीतने को क्या करना होगा?
बनावटी चेहरों से किनारा करना होगा तथा योग्य व क्षमतावान लोगों को आगे लाना होगा। 


मौजूदा विधायकों में से भी किसी को लोकसभा चुनाव लड़ना चाहिए?
जीतने वाला व उपयुक्त हो तो उन्हें जरूर चुनाव लडऩा चाहिए। 


तनाव से बचने के लिए क्या करना चाहिए?
24 घंटे राजनीति के बारे में सोचना भी ठीक नहीं है। 


न आलोचना करने आए हैं और न किसी की कुर्सी हिलाने
हमीरपुर दौरे पर पहुंचे वीरभद्र ने अपने इस दौरे का मकसद केवल पुराने नेताओं, कार्यकर्ताओं व लोगों से मिलकर संवाद करना बताया। उन्होंने कहा कि वह अपने इस दौरे पर किसी की आलोचना करने नहीं आए हैं और न ही किसी की कुर्सी हिलाने आए हैं। वीरभद्र ने कहा कि वह आया राम गया राम नहीं हैं। वह पार्टी के वफादार सिपाही हैं तथा मरते दम तक कांग्रेस में रहेंगे। उन्होंने कहा कि वह 25 वर्ष की उम्र में कांग्रेस पार्टी के चुनाव चिह्न पर सांसद बने तथा तब से लेकर आज तक पार्टी की सेवा करते आ रहे हैं।


संगठन में ऊपर से नीचे तक चापलूस 
उधर, वीरवार को अर्की के विधायक एवं पूर्व मुख्यमंत्री ने अर्की विधानसभा क्षेत्र का दौरा किया। इस अवसर पर उन्होंने अर्की में कार्यकर्ताओं की बैठक में प्रदेश कांग्रेस संगठन पर भी हमला बोला। उन्होंने कांग्रेस पार्टी में लोकतंत्र की वकालत करते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी में बूथ स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक चुनाव होने चाहिए। उन्होंने कहा कि आज प्रदेश में संगठन में ऊपर से नीचे तक चापलूस भरे पड़े हैं। उन्होंने पार्टी संगठन पर बरसते हुए कहा कि पार्टी कार्यालय में बैठ कर पदाधिकारी मनोनीत किए जा रहे हैं। 


ऐसे-ऐसे लोगों को संगठन में ओहदे दिए जा रहे हैं, जो कभी पंचायत का चुनाव तक नहीं जीते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि किसी भी संगठन की उन्नति के लिए लोकतंत्र आवश्यक होता है। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी की जो सदस्यता की गई थी, उनमें से आधे की सदस्यता संगठन द्वारा टोकरी में फैंक दी गई। केवल चापलूसी करने वालों को ही संगठन में जगह दी गई। वीरभद्र का कहना है कि पार्टी को मजबूत करने के लिए संगठन में नए व तजुर्बेकार लोगों को लाने की जरूरत है। जिस तरीके से संगठन चल रहा है, उससे जीत हासिल करना नामुमकिन है। संघर्ष से जूझने में वर्तमान संगठन सक्षम नहीं है।

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