अब स्पीति की किस्मत बदलेगा सेब, पढ़ें पूरी खबर

Edited By kirti, Updated: 08 Jul, 2018 01:07 PM

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जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति के किसानों के कड़े परिश्रम का नतीजा है कि बर्फीले रेगिस्तान की रेत में सेब उत्पादन की अविश्वसनीय परिकल्पना साकार हो गई है। ड्रिप इरीगेशन और किसानों से बागवान बनने की कामयाबी के पीछे बागवानी विभाग के हाथों ने भी कमाल किया...

उदयपुर : जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति के किसानों के कड़े परिश्रम का नतीजा है कि बर्फीले रेगिस्तान की रेत में सेब उत्पादन की अविश्वसनीय परिकल्पना साकार हो गई है। ड्रिप इरीगेशन और किसानों से बागवान बनने की कामयाबी के पीछे बागवानी विभाग के हाथों ने भी कमाल किया है। लाहौल-स्पीति के अकेले स्पीति उपमंडल में ही इस बार सेब के स्पर एवं स्टैंडर्ड बैरायटी के 10 हजार पौधे रोपित किए गए हैं। इनमें 4 हजार पौधे बागवानी विभाग ने अनुदान पर बागवानों को आबंटित किए हैं।

इसके अलावा अन्य कई स्त्रोतों से भी बागवानों ने उन्नत किस्म के पौधे प्राप्त किए। बागवानी विभाग से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि स्पीति में इस समय 560 हैक्टेयर भूमि पर सेब के अतिरिक्त जपानी फल, खुमानी व बादाम के बगीचे विकसित किए गए हैं। बागवानी विभाग के अधिकारी बताते हैं कि गुणवत्ता के लिहाज से स्पीति के सेब का कोई मुकाबला नहीं है। देश में सर्वाधिक ऊंचाई में पैदा किए जा रहे इस सेब व जापानी फल में अधिक समय तक सुरक्षित रहने की क्षमता है। काफी ठोस व रस से भरे इन फलों का रंग और मिठास भी लाजवाब है। कुछ समय पहले दिल्ली में लगी फल प्रदर्शनी में स्पीति का सेब देश भर में सर्वश्रेष्ठ आंका गया है। बर्फीले रेगिस्तान में वर्षों से चल रहे बागवानी उद्योग को विभागीय प्रयासों से निरंतर पंख लगे हैं। यही वजह है कि ठंडे पठार में बागवानी क्षेत्र का दायरा निरंतर बढ़ रहा है। 

सिंचाई की कमी के बावजूद किया कमाल 
यह अलग बात है कि स्पीति में सिंचाई के पानी की कमी है। स्पीति में जिस तरफ  भी नजर उठाओ हर तरफ  खाली और लाल भूरी जमी नजर आती है। इसे जनजातीय लोगों की दृढ़ इच्छाशक्ति ही कहा जाएगा कि ड्रिप इरिगेशन यानि बूंद-बूंद पानी से सींचे गए पौधे फलों से कुछ इस तरह से लदे हैं कि डालियां भी झुकने लगी हैं। ताबो, लरी, पोह, हुरलिंग व गियू सहित अनेक क्षेत्रों से निकलने वाले सेब ने देश के कई राज्यों के सेब को मार्कीट में जबरदस्त टक्कर दी है। जनजातीय किसानों ने बागवानी के क्षेत्र में करीब डेढ़ दशक पहले ही कदम रखा था। इससे पहले वे परंपरागत फसलों के उत्पादन पर ही निर्भर थे। काबिलेगौर है कि बढ़ता प्रदूषण प्रदेश भर में जिस तेजी से सेब उत्पादन को निगल रहा है, बर्फीले रेगिस्तान में सेब उसी तेजी से विस्तार ले रहा है।

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