एक स्वर्गीय राजा आज भी रियासत की रक्षा करता है, लोगों को सुनाई देती है घोड़े की टाप (Video)

Edited By Ekta, Updated: 01 Aug, 2018 04:45 PM

कुनिहार का शिव मंदिर तालाब में आज भी घोड़े की टापों और जूतों की आवाजें सुनाई देती हैं। लोगों को यकीन में रियासत के राजा आनंद देव सिंह आज भी अपनी रियासत की रक्षा के लिए यहां चक्कर लगाते हैं। आज भी स्वर्गीय राजा राय आनंद देव सिंह के घोड़े की टापों की...

सोलन (नरेश पाल): कुनिहार का शिव मंदिर तालाब में आज भी घोड़े की टापों और जूतों की आवाजें सुनाई देती हैं। लोगों को यकीन में रियासत के राजा आनंद देव सिंह आज भी अपनी रियासत की रक्षा के लिए यहां चक्कर लगाते हैं। आज भी स्वर्गीय राजा राय आनंद देव सिंह के घोड़े की टापों की आवाजें सुनाई दे जाती है। ऐसा लगता है मानो आज भी कोई देर रात को यहां के स्थानीय बाजार से पुरातन शिव मंदिर तालाब तक प्रहरी की तरह रखवाली कर रहा हो। यहां स्वर्गीय राजा राय आनंद देव सिंह अपनी रियासत की रक्षा कर रहे हैं। उनके वंशजो द्वारा उनकी स्मृति में एक मंदिर रूपी स्मारक भी बनाया गया है। बताया जाता है कि वर्ष 1799 में नालागढ़ एवं बाघल रियासत एक हो गए थे, दोनों रियासतों ने कुनिहार रियासत पर हमला करने की एक नाकाम कोशिश की थी।
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शिवरात्रि के दिन  राजा राय आनंद देव सिंह पर धोखे से हमला करके उन्हें गोली मार दी गई थी। घायल होने के बावजूद भी स्वर्गीय राजा राय आनंद देव सिंह व उनके साथ चाकलू के मिया ने मिलकर दुश्मनों से काफी देर तक लोहा लिया लड़ते-लड़ते राजा राय आनंद देव सिंह घोड़े से एक जगह गिर गए व वीर गति को प्राप्त हुए। जंहां उनका शरीर गिरा उसी जगह उनका अंतिम दाह संस्कार किया गया। इतना ही नहीं राजा राय अमर देव सिंह की पत्नी भी उनके साथ ही सती हो गई थी। जिस स्थान पर राजा का अंतिम दाह संस्कार किया गया उस जगह को उस समय कुनिहार रियासत का देरा स्थान कहा जाता था। जो वर्तमान में लोक निर्माण विश्राम गृह कुनिहार के समीप है। वहीं उनके साथ चिता में सती हुई रानी की याद में आज भी पुरातन शिव मंदिर तालाब में सती मंदिर स्थापित है।
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जिस दिन स्वर्गीय राजा राय अमर देव सिंह पर धोखे से हमला बोला गया वह दिन शिवरात्री का था कहा जाता है कि वर्ष 1799 से वर्ष 1947 तक कुनिहार रियासत में शिवरात्रि पर्व मनाये जाने पर प्रतिबंध था। 10 जून 1948 को राजाओ के राज सरकार में विलय हो गए। उससे पहले कुनिहार रियासत की अपनी करंसी अपना कानून होता था व रियासत में प्रवेश करने के लिए कानूनी दस्तावेजों की आवश्यकता होती थी।
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2900 के करीब आवादी वाले कुनिहार रियासत की सीमा करीब 36 किलो मीटर तक फेली हुई थी व सैनिको की सं2या करीब 15 00से अधिक रहती थी। इतना ही नही पहले एवं दूसरे विश्व युद्ध में भी कुनिहार रियासत के सैनिको ने लड़ाई में हिस्सा लिया था जिनके नाम आज भी इण्डिया गेट दिल्ली में अंकित है।
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कुनिहार रियासत की 7 राजधानियां होती थी। जिसमे रायकोट, जाठीया देवी, पांव घाटी, सेरिघाट, कोटी, काणी व हाटकोट शामिल था। जिसमें दरबार लगा करता था। बैसाखी में मनाया जाने वाला लाहल मेला एवं बैहली में झोठो की लड़ाई मुख्य आकर्षण का केन्द्र माना जाता था। वहीं पुरातन शिव मंदिर तालाब कुनिहार के पंडित अरुण जोशी ने कहा कि तालाब में ही रानी का सती मंदिर है यंहा स्वाहगिन महिलाएं आकर अपने पति की लंबी आयु की कामना करती है। कुनिहार रियासत के 388 पीढ़ी के राणा संजय देव सिंह आज भी अपने पूर्वजों की पुश्तैनी धरोहरों को संजोए हुए हैं। आज भी राज दरबार कुनिहार में कई पुरातन पांडुलिपियों, राजाओं के समय के हथियारों और दस्तावेजों को देखने कई राज्यों से लोग आते जाते रहते हैं।
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खास बातचीत में उन्हने बताया कि यह सच है कि आज भी स्वर्गीय राजा राय अमर देव सिंह जी के घोड़ों के टापों की आवाजे कभी कभार स्थानीय बाजार से लेकर पुराने शिव मंदिर तालाब तक  लोगो को सुनाई दे जाती है। उन्होंने स्वय भी आवाजों को महसूस किया है। उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर राजा राय आनंद देव सिंह का पार्टीव शरीर युद्ध के दौरान गिरा था उसी जगह उनका अंतिम संस्कार किया गया व उनके साथ रानी भी सती हो गई थी।
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आज भी पुराने शिव मंदिर तालाब में सती मंदिर स्थापित है। पूर्वज राजा हरदेव सिंह के नाम पर आज भी कुनिहार के हरदेवपूरा में विद्यालय चल रहा है। जो वर्ष 1932 खोला गया था। इतना ही नहीं कुनिहार के स्थानीय विद्यालय को करीब 20 बीघा भूमि दान स्वरुप दी गई थी। उस समय कई पाकिस्तानी शर्णार्थियों को भी कुनिहार रियासत में बसाया गया। करीब 288 जमीनों की रजिस्ट्रियां करवाई गई। कई गांव बसाए गए थे। 
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