8.29 करोड़ में खरीदे सेब 3.41 में बिके, हिमफैड को 5 करोड़ का घाटा

Edited By Ekta, Updated: 22 Nov, 2018 10:01 AM

8 29 crore bought in apple 3 41

मंडी मध्यस्थता योजना के तहत समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा सेब हिमफैड के लिए घाटे का सौदा है। हालांकि इस घाटे की भरपाई सरकार द्वारा की जाती है लेकिन इससे उभरने में समय लगेगा। हिमफैड के परवाणु स्थित नीलामी सैंटर में 8.29 करोड़ रुपए में खरीदा गया सेब...

सोलन (पाल): मंडी मध्यस्थता योजना के तहत समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा सेब हिमफैड के लिए घाटे का सौदा है। हालांकि इस घाटे की भरपाई सरकार द्वारा की जाती है लेकिन इससे उभरने में समय लगेगा। हिमफैड के परवाणु स्थित नीलामी सैंटर में 8.29 करोड़ रुपए में खरीदा गया सेब करीब 3.41 करोड़ रुपए में ही बिका है। इस तरह से हिमफैड को करीब 5 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा। इसके अलावा जिला शिमला की सेब बैल्ट से सेब को परवाणु नीलामी सैंटर तक पहुंचाने पर ही करीब 2.20 करोड़ रुपए का परिवहन खर्च हुआ। यही नहीं, सेब की खरीद  व नीलामी के लिए तैनात कर्मचारियों के टी.ए. के अलावा अन्य खर्च भी लाखों में हैं। यदि इन सभी खर्चों को जोड़ दिया जाए तो हिमफैड को परवाणु स्थित नीलामी सैंटर में ही करीब 7 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। 

एक सेब की बोरी का भार 35 किलोग्राम

मंडी मध्यस्थता योजना के तहत परवाणु स्थित नीलामी केंद्र में सेब की 3,36,680 बोरियां नीलामी के लिए पहुंचीं। एक सेब की बोरी का भार 35 किलोग्राम था। 3,36,680 बोरियों में से हिमफैड ने 3,15,629 बोरियों को नीलामी के माध्यम से बेचा। इस नीलामी से हिमफैड को 3,41,29,760 रुपए मिले जबकि 21,051 बोरियां एच.पी.एम.सी. को बेचीं। हिमफैड ने मंडी मध्यस्थता योजना के तहत 35-35 किलोग्राम की 3,15,629 बोरियों की खरीद पर 7.50 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से करीब 8.29 करोड़ रुपए खर्च किए। हालांकि हिमफैड को बागवानी विभाग से हैंडलिंग चार्ज के रूप में 2.75 रुपए प्रतिकिलो मिलते हैं। इसमें परिवहन खर्च के अलावा कर्मचारियों के टी.ए. के साथ सेब की पैकिंग पर होने वाला खर्च भी वहन करना पड़ता है। परवाणु तक सेब पहुंचाने पर ही करीब 2 रुपए प्रतिकिलो परिवहन खर्च हुआ है। 

7.50 रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदा सेब

मंडी मध्यस्थता योजना के तहत हिमफैड ने 7.50 रुपए प्रतिकिलो समर्थन मूल्य के हिसाब से सेब की खरीद की। समर्थन मूल्य में उस सेब की खरीद की जाती है जिसके लिए बागवानों को खरीददार नहीं मिलते। यह गुणवत्ता के दृष्टि से काफी खराब सेब होता है। सरकार बागवानों की सपोर्ट के लिए इस सेब की खरीद करती है। 


 

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