Edited By kirti, Updated: 15 Dec, 2018 02:17 PM
हिमाचल प्रदेश के सुंदरनगर निवासी पत्रकार अश्वनी सैनी को वीआईपी नंबर लेने की ठसक चढ़ गई। दरअसल उसने 2012 में लग्जरी कार खरीदी थी। जिसके बाद उसने अपनी कार के लिए वीआईपी नंबर 0001 के लिए आवदेन कर दिया था। उस वक्त प्रदेश में पहले आओ और पहले पाओ के आधार...
मंडी(नीरज): हिमाचल प्रदेश के सुंदरनगर निवासी पत्रकार अश्वनी सैनी को वीआईपी नंबर लेने की ठसक चढ़ गई। दरअसल उसने 2012 में लग्जरी कार खरीदी थी। जिसके बाद उसने अपनी कार के लिए वीआईपी नंबर 0001 के लिए आवदेन कर दिया था। उस वक्त प्रदेश में पहले आओ और पहले पाओ के आधार पर वीआईपी नंबर दिए जाते थे। इसके लिए आवेदक से 1 लाख की राशि भी ली जाती थी। बताया जा रहा है कि वह 0001 नंबर के लिए एसडीएम सुंदरनगर, मंडी और देहरा के दरबार पहुंचे। लेकिन किसी ने उन्हें वीआईपी नंबर नहीं दिया। उसके साथ सभी आनकानी करते रहे और वीआईपी नंबर दूसरों को ही जारी होते रहे। ऐसे में वह हाईकोर्ट की शरण में चले गए
हाईकोर्ट जाने का मन बना लिया
वही 13 नवंबर 2014 को हाईकोर्ट ने परिवहन विभाग को निर्देश दिए कि अश्वनी को वीआईपी नंबर जारी किया जाए और अश्वनी इसके लिए फिर से आवेदन करने को कहा। लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी परिवहन विभाग ने नंबर जारी नहीं किया। 24 सितंबर 2015 को राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी करके 0001 से 0010 तक के सभी नंबर सरकारी वाहनों के लिए आरक्षित कर दिए। उसका कहना है कि उन्हें हाईकोर्ट ने 2014 में वीआईपी नंबर देने का आदेश परिवहन विभाग को दिया था। इस आधार पर उनका वीआईपी नंबर पर हक बनता है और इस हक को पाने के लिए वह फिर से हाईकोर्ट की शरण में जाने का मन बना चुके हैं। यही कारण है कि वीआईपी नंबर के चक्कर में उनकी कार बीते 6 वर्षों से टैंपरेरी नंबर पर ही चल रही है।
आम लोगों को 1 लाख करने पड़ते है अदा
वहीं सरकार ने इन नंबरों को आरक्षित करके एक तरह से अपने राजस्व को कम कर दिया है। हालांकि सरकारी वाहनों को भी यह नंबर 1 लाख रूपए में दिए जा रहे हैं। लेकिन सरकार का यह पैसा एक जेब से निकालकर दूसरी जेब में डाला जा रहा है जबकि अतिरिक्त कोई आय सरकार को नहीं आ रही है। वहीं सरकार ने 11 से 100 तक के नंबरों को आम लोगों के लिए रखा है, लेकिन इसके लिए आम लोगों को 1 लाख अदा करने पड़ते हैं। अश्वनी का मानना है कि सरकार ने गलत नीति बनाई है और इससे सरकार को ही करोड़ों का घाटा हो रहा है। अश्वनी ने आरटीआई से जो जानकारी जुटाई है उसके तहत प्रदेश में नई सीरीज जारी होने के बाद बहुत से वीआईपी नंबर अभी तक ऐसे ही पड़े हैं। यदि सरकार इन्हें आम लोगों के लिए जारी कर देती है तो इससे सरकार को आय प्राप्त होगी और आम लोगों को वीआईपी नंबर मिल सकेंगे।