21वीं सदी में भी इंसान और जानवर एक कमरे में रहने को मजबूर

Edited By Ekta, Updated: 19 Jul, 2018 01:09 PM

21st century also forced humans and animal to live in a room

मेक इन इंडिया व स्मार्ट सिटी के दम पर आधुनिक भारत की नई तस्वीर पेश करने का केंद्र सरकार दम भर रही है तो दूसरी तरफ राज्य की जयराम सरकार भी विकास को अपनी प्राथमिकता में शुमार किए हुए हैं। दोनों सरकारें गरीब वर्ग के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं को चलाने...

चंबा (विनोद): मेक इन इंडिया व स्मार्ट सिटी के दम पर आधुनिक भारत की नई तस्वीर पेश करने का केंद्र सरकार दम भर रही है तो दूसरी तरफ राज्य की जयराम सरकार भी विकास को अपनी प्राथमिकता में शुमार किए हुए हैं। दोनों सरकारें गरीब वर्ग के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं को चलाने का दम भर रही हैं लेकिन सरकारी दावों और आंकड़ों की जमीनी हकीकत पर नजर दौड़ाई जाए तो यह साफ पता चलता है की आज भी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाला बदतर हालत में जिंदगी गुजार रहा है। जिला चंबा के चुराह विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत चांजू के कई परिवार सरकारी दावों और आंकड़ों की पोल खोलते हुए दिखाई देते हैं। 


इस पंचायत में कई ऐसे परिवार हैं जो कि एक खस्ता हालत कमरे में अपने परिवार तथा अपने मवेशियों के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं। यूं तो इन परिवारों को बीपीएल एवं आईआरडीपी का प्रमाण पत्र तो सरकार ने दे रखा है लेकिन इन परिवारों को महज सरकारी राशन की सुविधा के अलावा आवास योजना जैसी महत्वपूर्ण योजना का लाभ नहीं मिला है। मिट्टी से बने  एक कमरे वाले ऐसे कई कच्चे मकान इस पंचायत में  देखे जा सकते हैं, जहां एक कोने में तो मवेशी बंदे रहते हैं तो दूसरे कोने में परिवार के लोग खाना बनाने व खाने के साथ वहीं पर सोते हैं। ऐसा नहीं है कि इन परिवारों ने प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री आवास योजना के लिए अपनी पंचायत में आवेदन नहीं किया है लेकिन इस योजना का लाभ पाने के लिए अभी तक उनका नंबर नहीं आया है हालांकि आवेदन किए हुए उन्हें अरसा बीत चुका है। 


ग्रामीणों की माने तो इन योजनाओं का लाभ उन लोगों को बिना देरी से मिल जाता है जिनकी ऊंची पहुंच हो लेकिन जो जो व्यक्ति अथवा परिवार सही मायने में सरकारी योजनाओं को प्राप्त करने का सबसे पहला अधिकार रखता है उन्हें बार-बार पंचायतों या अधिकारियों के कार्यालयों के चक्कर काटने पढ़ते हैं। शायद यही वजह है कि किसी भी पार्टी की सरकार सत्ता में आए लेकिन इन गरीबों बदनसीबी में कोई परिवर्तन अब तक होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद अब तक मिट्टी के एक कमरे नुमा कच्चे मकान में आज 21वीं सदी के इस दौर में मनुष्य व मवेशी इकट्ठे रहने के लिए मजबूर नहीं होते।

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