Edited By Updated: 29 May, 2016 12:52 AM
प्रदेश हाईकोर्ट के आदेशानुसार कुफरी के नजदीक लंबीधार में 4 नवम्बर, 2008 को हुए बस एक्सीडैंट में मारे गए लोगों के आश्रितों और घायलों को मुआवजा राशि न्यू इंडिया इंश्योरैंस बीमा कंपनी को ही देनी होगी।
शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट के आदेशानुसार कुफरी के नजदीक लंबीधार में 4 नवम्बर, 2008 को हुए बस एक्सीडैंट में मारे गए लोगों के आश्रितों और घायलों को मुआवजा राशि न्यू इंडिया इंश्योरैंस बीमा कंपनी को ही देनी होगी। मुख्य न्यायाधीश मंसूर अहमद मीर ने बीमा कंपनी की 36 अपीलों को खारिज करते हुए यह ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।
न्यायाधीश मीर ने मोटर एक्सीडैंट क्लेम ट्रिब्यूनल रामपुर के उन 2 फैसलों को गलत ठहराते हुए खारिज कर दिया जिसके तहत हर्जाना राशि देने की जिम्मेदारी बस मालिक पर डाली गई थी। इसी एक्सीडैंट में मारे गए लोगों के आश्रितों के दावों का निपटारा करते हुए मोटर एक्सीडैंट क्लेम ट्रिब्यूनल शिमला ने 36 फैसलों में मुआवजे की जिम्मेदारी बीमा कंपनी पर डाली थी जिन्हें कंपनी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
मामले के अनुसार कुफरी के नजदीक लंबीधार में 4 नवम्बर, 2008 की सुबह एक निजी बस दुर्घटनाग्रस्त को गई थी, जिसमें 46 लोग मारे गए थे और कुछ लोग घायल भी हुए थे। बस ड्राइवर की भी मौके पर ही मौत हो गई थी। दुर्घटना से पीड़ित लोगों ने मुआवजा राशि के लिए रामपुर व शिमला के मोटर एक्सीडैंट क्लेम ट्रिब्यूनल में दावे पेश किए। बीमा कंपनी ने सभी दावों में बस ड्राइवर जोगिन्द्र शर्मा के लाइसैंस को फर्जी बताते हुए और बस को बिना रूट परमिट के चलाने की दलील देते हुए मुआवजे से पल्ला झाडऩा की कोशिश की और रामपुर के ट्रिब्यूनल में सफल रही।
कंपनी का दावा था कि ड्राइवर के पास हैवी गाड़ी चलाने का लाइसैंस नहीं था और जो लाइसैंस आगरा से जारी होना बताया गया वो फर्जी था। रूट परमिट 2 अक्तूबर, 2008 को खत्म हो गया था और गाड़ी दुर्घटना वाले दिन बिना रूट परमिट के दौड़ रही थी। शिमला के ट्रिब्यूनल ने बीमा कंपनी से कोई सहमति नहीं जताई। मामला हाईकोर्ट पहुंचने पर न्यायाधीश मीर ने स्पष्ट किया कि दुर्घटना के पीड़ितों को मुआवजा राशि का प्रावधान इसलिए किया गया है ताकि उन्हें आकस्मिक पहुंचे इंसानी नुक्सान के कारण समाज के आगे गुजर-बसर के लिए हाथ न फैलाने पड़ें। पीड़ितों के दावों को महज तकनीकी और कानूनी पेचीदगियों के आधार पर खारिज नहीं कर देना चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट को ऐसे मामलों में कानूनी प्रक्रियाओं के मकडज़ाल में नहीं फंसना चाहिए।
इन मामलों में ड्राइविंग लाइसैंस को फर्जी बताने वाली दलील को दरकिनार करते हुए कोर्ट ने कहा कि आगरा से जारी लाइसैंस का रिकार्ड मौजूद न होने का मतलब यह नहीं लगाया जा सकता कि लाइसैंस फर्जी था। इतना ही नहीं जब गाड़ी के मालिक ने लाइसैंस को देखने-परखने के पश्चात ही उसे बतौर ड्राइवर नियुक्त किया था तो गाड़ी मालिक से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती की वह लाइसैंस की वैधता लाइसैंसिंग अथॉरिटी के कार्यालय में जाकर चैक करे। रही रूट परमिट की बात तो इसे पिछली तारीख से जारी करवा लिया गया था इसलिए कानूनन बस वैध रूट परमिट के तहत चल रही थी।
कोर्ट ने एक साथ सभी अपीलों का निपटारा करते हुए कुछ मामलों में मुआवजा राशि में भी इजाफा किया और बीमा कंपनी को मुआवजा राशि 8 सप्ताह के भीतर कोर्ट में जमा करने के आदेश दिए जिसके पश्चात यह राशि दावेदारों को दे दी जाएगी।