Edited By Updated: 13 Aug, 2016 04:35 PM
'मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।
शिमला: 'मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। ऐसा ही कुछ हिमाचल की 19 साल की छोनजिन अंगमो ने कर दिखाया। बता दें कि अंगमो देख नहीं सकती, लेकिन हाल ही उसने हिमाचल की 17, 553 फीट ऊंची फ्रेंडशिप पीक पर सफलता पूर्वक चढ़ाई की है। इस सफलता से हैरान तो उसके मां-बाप भी हैं, क्योंकि वह उन्हें बिना बताए ही दिव्यांगों के लिए लगाए गए कैंप में हिस्सा लेने गई थी।
अंगमो अब इंटरनैशनल पैरा क्लाइंबिंग कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेने की तैयारी कर रही है। बताया जा रहा है कि साधारण सी लड़की से पर्वतारोही बनने की अंगमो की कहानी सिर्फ 3 महीने पुरानी है। मई में ही वह दिव्यांगों के लिए लगाए गए कैंप में हिस्सा लेने के लिए हिमाचल गई थी।
जानिए, छोनजिन अंगमो की जिंदगी से जुड़ी और बातें
अंगमो भी हिमाचल की ही रहने वाली है, लेकिन चंडीगढ़ में भाई-बहनों के साथ रहकर पढ़ाई कर रही थी। अंगमो अब दिल्ली में ही इंडियन माऊंटेनियरिंग फेडरेशन (आई.एफ.एस.) की ओर से तैयारी कर रही है। बता दें कि इंडियन माऊंटेनियरिंग फाऊंडेशन में यूथ वैलफेयर के चेयरमैन कीर्ति पायस बताते हैं कि भारत में अभी तक कोई दृष्टिहीन पर्वतारोही नहीं है। अंगमो की गलत दवाई के चलते 8 साल की उम्र में ही दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी। जब मनाली गई तो लगा कि शायद मैं ये नहीं कर पाऊंगी। फिर जैसे-जैसे चढ़ाई शुरू की तो हौसला मिलता गया और 16,500 फीट तक मैंने चढ़ाई कर ली।