जल रक्षकों ने विधानसभा के बाहर जमकर बोला हल्ला, कहा-1700 रुपए में कैसे करें गुजारा (Video)

Edited By Punjab Kesari, Updated: 15 Mar, 2018 09:33 PM

सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत जल रक्षकों ने वीरवार को विधानसभा के बाहर धरना दिया।

शिमला: सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत जल रक्षकों ने वीरवार को विधानसभा के बाहर धरना दिया। जल रक्षक सरकार से उनके लिए पॉलिसी बनाए जाने की मांग कर रहे हैं। आई.पी.एच. महकमे में इन्हें सेवाएं देते हुए 10 से 12 साल बीत गए हंै। फिर भी उनका भविष्य सुरक्षित नहीं हो पाया है। इन्हें प्रत्येक माह मात्र 1700 रुपए मानदेय दिया जा रहा है। हालांकि पूर्व की वीरभद्र सरकार ने इनका मानदेय बढ़ाकर 2500 रुपए प्रति माह करने की घोषणा की थी लेकिन वित्त विभाग इसकी अधिसूचना जारी करना भूल गया। वहीं जयराम सरकार ने इस बार के बजट में इनका मानदेय 2100 रुपए करने का ऐलान किया है। जल रक्षक पूर्व सरकार द्वारा इनका मानदेय 2500 रुपए की घोषणा को लागू करने और उनके नियमितिकरण के लिए पॉलिसी बनाने की मांग कर रहे हैं। 

प्रदेश में 6300 जल रक्षक दे रहे सेवाएं 
जल रक्षकों की मांग है कि 10 साल का सेवाकाल पूरा करने वाले जल रक्षकों को रैगुलर किया जाए। प्रदेश में करीब 6300 जल रक्षक सेवाएं दे रहे हैं। 1700 रुपए मासिक मानदेय से आसमान छू रही इस महंगाई के दौर में इनका गुजर-बसर कर पाना मुश्किल हो गया है लेकिन सरकार व अफसरशाही इनकी सुध लेने को तैयार नहीं है। सरकार द्वारा तय न्यूनतम दिहाड़ी के हिसाब से भी इन्हें 6600 रुपए प्रति माह मिलने चाहिए लेकिन सरकार पूरे दिनभर इनसे काम लेने की एवज में मात्र 1700 रुपए दे रही है। हैरानी इस बात की है विधायक कभी भी एकजुट होकर अपना वेतन बढ़ा लेते हैं। इसी तरह ब्यूरोक्रेट्स भी सभी वित्तीय लाभ ले लेते हैं लेकिन पूर्व सरकार द्वारा 2500 रुपए मानदेय इन्हें देने के लिए वित्त विभाग ने अधिसूचना जारी करने की जहमत तक नहीं उठाई। 

जल रक्षकों का जितना मानदेय उससे कहीं ज्यादा ब्यूरोक्रेट्स के भत्ते
बता दें कि जितना मानदेय इन जल रक्षकों को दिया जा रहा है उससे कहीं ज्यादा ब्यूरोक्रेट्स को भत्ते ही दिए जाते हैं। जल रक्षक संघ के पदाधिकारी रघुराथ धीमान ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से उनके लिए जल्द पॉलिसी बनाने और रैगुलर होने तक मानदेय 2500 रुपए करने की मांग की है। उन्होंने बताया कि इतने कम मानदेय में दो वक्त की रोटी का प्रबंध करना भी मुश्किल हो गया है। 10 से 12 साल की नौकरी के बाद भी उनका भविष्य सुरक्षित नहीं हो पाया है।

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