वोटर लिस्ट विवाद, पार्टी नहीं पब्लिक का भी मुद्दा

Edited By Updated: 09 May, 2017 11:27 AM

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नगर निगम के चुनाव के लिए वोटर लिस्ट पर विवाद गहरा गया है।

शिमला: नगर निगम के चुनाव के लिए वोटर लिस्ट पर विवाद गहरा गया है। पार्टियां तो इसे मुद्दा बना रही हैं, अब यह पब्लिक का भी उतना ही बड़ा मुद्दा बन सकता है। अभी अंतिम वोटर लिस्ट के पन्नों को खंगालने का कार्य चल रहा है। कार्यकर्ता इसे जांच-परख रहे हैं। जिन दिन गायब वोटरों को अपने वार्डों से दूसरों में शामिल करवाया, वोटरों को असलीयत पता चलेगी, उस दिन अव्यवस्था और फैल जाएगी। लोकतंत्र कराह रहा होगा, उस वक्त स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने पर उंगलियां उठेंगी। अभी तो लिस्ट आई है वह 21 अप्रैल तक की है। इसके बाद भी 22 से 29 अप्रैल तक वोट बने हैं। 


15 मई तक आ सकती हैं सूचियां
हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद 30 अप्रैल और 1 मई को वोट बनाए गए। ये सूचियां 15 मई तक आ सकती हैं। जब तक लोगों को पता चलेगा कि उनका वोट या तो बना नहीं है या फिर कहीं दूसरे वार्ड में डाल दिया गया है, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी लेकिन निर्वाचन से जुड़े प्रशासिक अधिकारी इस अव्यवस्था में भी व्यवस्था देख रहे हैं। सभी पाॢटयां एक आवाज से वोटर लिस्ट की गड़बडिय़ों पर सवाल उठा रही हैं। कांग्रेस पार्टी चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है वोट बनाने में भारी अनियमितताएं हुई हैं लेकिन प्रशासन सत्ताधारी दल की पुकार को नहीं सुन रहा है। वह सुनना नहीं चाह रहा है या जानबूझ कर अनसुना कर रहा है, यह तो प्रशासन ही जाने लेकिन इससे लोगों के बीच सही संदेश नहीं गया है। हो सकता है कि कांग्रेस चुनाव को आगे खिसकाना चाहती हो। इसमें धड़ेबाजी हो सकती है। 


नगर निगम की ‘सरकार’ चुनेंगे
चुनाव करवाने के प्रति दोराय हो सकती है पर गड़बड़ियों को लेकर लगभग एक राय है। जो लोग चुनाव अभी करवाने के पक्षधर हैं, उन्हें भी वोटरों की सूची में खोट नजर आ रहा है। बेशक इसे वो बड़ा मुद्दा नहीं बनाना चाहते हो। तीन प्रमुख दल भाजपा, कांग्रेस और माकपा इस मसले को अपने-अपने तरीके से उठा रहे हैं। विपक्षी दल भाजपा ने सूचियां बनने के दौरान ही सबसे पहले खामियों को सिलसिलेवार उजागर किया। एक-एक वार्ड से कैसे सैंकड़ों मतदाता गायब हो गए। पिछले चुनाव के मुकाबले वोटर बढ़े हैं, वोटरों की तादाद करीब 90 हजार तक पहुंच गई है, ये वोटर 24 वार्डों में पार्षद का भविष्य तय करेंगे। नगर निगम की ‘सरकार’ चुनेंगे, पर वोटर सूची पहले इतनी विवादित कभी नहीं रही। इस पर इतने सवाल पहले कभी नहीं उठे। पता नहीं सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग इनका कब तल्क संज्ञान लेगा। यह आयोग की निष्पक्ष कार्यप्रणाली के लिए भी जरूरी है, वह मामले की सच्चाई का पता लगाए, वरना इस बारे में लोगों की धारणा बनने में वक्त नहीं लगेगा। 


आखिर क्या है कांग्रेस का कन्सर्न
कांग्रेस का दावा है कि वह चुनाव करवाने से कतई नहीं घबरा रही है लेकिन अभी उसका सबसे बड़ा कन्सर्न यही है कि वोटर लिस्ट में सामने आई गड़बडिय़ों को सुधारा जाए। कांग्रेस के महासचिव नरेश चौहान का कहना है कि पार्टी ने अपने पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को बैठक के माध्यम से दिशा देने का प्रयास किया है। स्वाभाविक है कि पहले निगम चुनाव के लिए कार्यकत्र्ताओं में जोश भरा गया है लेकिन मतदाता सूचियों को दुरुस्त करवाए बगैर चुनाव करवाना बेमानी होगी। हम लोकतंत्र को मजबूत करवाने के बारे में काफी चर्चाएं करते हैं, ऐसे में वोटर का हक छीन जाए और हम चुपचाप रहें ऐसे कैसे हो सकता है? महासचिव ने कहा कि गड़बडिय़ों की बातें सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं। राज्य निर्वाचन आयोग और सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, पार्टी चुनाव के लिए तैयार है। उनका कहना है कि पी.सी.सी. की बैठक में भी चर्चा हुई है। हालांकि इसमें ज्यादातर फोकस विधानसभा चुनाव पर किया गया था। 


सरकार और कांग्रेस में नहीं बनी एक सी राय
सरकार और कांग्रेस में चुनाव को लेकर कभी एक सी राय नहीं रही है। सरकार ने पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाने के भी स्पष्ट संकेत दिए। इसके लिए कसरत भी की। बाद में इस पर अपनी राय बदल दी। पार्टी की बात करें तो पदाधिकारी दलों के सिंबल पर चुनाव चाह रहे थे। बाद में पार्टी ने भी सरकार के सुर में सुर मिलाया। एक धड़ा जरूर पैरवी कर रहा था, उसकी सुनवाई नहीं हुई। सरकार के भीतर भी कुछ लोग पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाना चाहते थे लेकिन वे भी अलग-थलग पड़ गए। कुल मिलाकर सरकार में कन्फ्यूजन जैसे ही हालात बने रहे। इसकी छाप संगठन पर भी पड़ी है। हालात ये हैं कि कांग्रेस अपनी ही सरकार को इस बारे में कन्वींस नहीं कर पाई। देश की सबसे पुरानी पार्टी की इससे बड़ी और क्या मजबूरी हो सकती है कि वह सरकार के आगे ही नतमस्तक हो गई। 


‘नेतागिरी’ पर भी दिखाई देने लगे संकट के बादल 
पार्टी ने रविवार को बुलाई बैठक में विधानसभा चुनाव के साथ-साथ नगर निगम चुनाव पर भी चर्चा की लेकिन यहां भी वोटर विवाद हावी रहा। मोदी लहर की काट के लिए पुख्ता रणनीति नहीं बनाई। हां खानापूर्ति जरूर पूरी की। आने वाले वक्त में कांग्रेस और संगठन के बीच पार्टी के संगठनात्मक चुनावों को लेकर जंग छिड़ती नजर आएगी। सरकार विधानसभा चुनाव का हवाला देखकर इसे टालना चाहती है जबकि कांग्रेस के अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू और उनकी टीम तय शैड्यूल में ही संगठन के चुनाव निपटाना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि अगर संदीप आ गया तो फिर उनकी पूछ नहीं रहेगी। उन्हें अपनी ‘नेतागिरी’ पर भी संकट के बादल दिखाई देने लगे हैं लेकिन क्या यह बात आलाकमान से छिपी रहेगी? इसकी रिपोर्ट तो जरूर बनेगी। बैठक में चुनाव की कमान किसे सौंपी जाए, इस पर भी कोई फैसला नहीं हुआ। अभी तक कांग्रेस ने नगर निगम के लिए न तो प्रभारी घोषित किए हैं और न ही ऑब्जर्वर लगाए हैं। इससे ऐसा लगता है कि सरकार और कांग्रेस चुनाव को दो महीने तक आगे खिसका सकते हैं। इसकी चर्चाएं आरंभ हो गई हैं।

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