चुनावी रण में अकेले ही लड़े कांग्रेस के वीरभद्र, धूमल पर यू-टर्न ने बदले BJP के हालात

Edited By Punjab Kesari, Updated: 14 Nov, 2017 09:52 AM

virbhadra of congress contested alone in electoral battle

मतदान हो चुका है और नतीजों से पहले अब जमा-घटाव शुरू हो गया है। दोनों दल अपनी-अपनी सरकार के दावे कर रहे हैं। फैसला 18 दिसम्बर को होगा। सियासी चौपाल में समर्थकों की जहां गुफ्तगू हो रही है तो कहीं अपने-अपने समर्थकों की जीत की बहस में लड़ाइयां तक होने...

शिमला: मतदान हो चुका है और नतीजों से पहले अब जमा-घटाव शुरू हो गया है। दोनों दल अपनी-अपनी सरकार के दावे कर रहे हैं। फैसला 18 दिसम्बर को होगा। सियासी चौपाल में समर्थकों की जहां गुफ्तगू हो रही है तो कहीं अपने-अपने समर्थकों की जीत की बहस में लड़ाइयां तक होने लगी हैं। हर कोई जानना चाह रहा है कि कैसे-कैसे यह चुनावी खेल चला? आइए आपको एक नजर दिखाते हैं कि कांग्रेस और भाजपा में कैसे-कैसे चुनावी घटनाक्रम घटे और कहां-कहां दोनों दलों में कमियां रहीं। खैर हार-जीत किसकी होगी यह तो 18 दिसम्बर को मतगणना वाले दिन ही पता चलेगा लेकिन दोनों दलों ने अपनी-अपनी खासियतों के साथ चुनावी वैतरणी पार लगाने को एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। बात कांग्रेस की करें तो कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह के सिर सारा दारोमदार डाल दिया। यह अलग बात है कि 84 साल के इस नेता ने अकेले ही अपने दम पर विरोधियों का मुकाबला किया। 


यहां भी टिकट वितरण पर महिलाओं को लेकर पेंच फंसा
बकौल वीरभद्र मैं अकेला ही भाजपा नेताओं के लिए काफी। कांग्रेस की टिकट आबंटन की रणनीति में भी संगठन व सरकार के बीच की जंग बड़े रोड़े के रूप में अटकती रही। काफी दिनों तक तो कांग्रेस अपने ही नेताओं की भाजपा के साथ कथित गुफ्तगू के जंजाल से बाहर निकलने में कामयाब नहीं हो पाई। दूसरी ओर भाजपा राज्य में बगैर किसी चेहरे के मोदी नाम के सहारे अपना पुराना रणनीतिक खेल खेलने की कोशिश में आखिरी दौर में ऐसी फंसी कि चक्रव्यूह से बाहर आने के लिए उसे हिमाचल की राजनीति में सफलता की सीढ़िया चढ़ने के मकसद को पूरा करने के लिए फिर से पुरानी परंपरा पर लौटते हुए यू-टर्न ही लेना पड़ गया और धूमल को चेहरा घोषित करना पड़ा। यहां भी टिकट वितरण पर महिलाओं को लेकर पेंच फंसा और काफी कुछ गड़बड़ हुआ और फिर काफी कुछ ठीक भी हुआ। कुल मिलाकर दोनों दलों में बागियों की एक खेप नहीं मानी और अंत समय तक मोर्चे पर डटी रही। अब किसने किसको कितना नुक्सान पहुंचाया, ये नतीजे ही बताएंगे।


अगर कांग्रेस की चुनाव से कुछ महीने पहले की संगठन के स्तर पर सामने आ रही रणनीति का विश्लेषण करें तो पार्टी इस बार अपने युवा प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू को आगे करने के मूड में थी। प्रदेश प्रभारी सुशील शिंदे के बयानों के जरिए शुरूआती संदेश साफ आ रहे थे कि इस बार हाईकमान वीरभद्र सिंह को किनारे करते हुए ही पार्टी की युवा टीम के जरिए ही चुनाव में उतरेगी। शिंदे की सभाओं में कई मौकों पर इस संदर्भ में कांग्रेस के नेताओं में खूब विष बुझे बाण चले और ऐसे मौके आए कि वीरभद्र ने यहां तक कह दिया कि वह न तो चुनाव लड़ेंगे और न आगे कुछ करेंगे। घर में आराम करेंगे। यहां तक कि उन्हें शुरूआत में कांग्रेस के चुनावी अभियान से हाईकमान के स्तर से बनने वाली कमेटियों में भी उपेक्षित किया गया और उनकी जगह प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू को वरीयता दी गई। 


हाईकमान को फेरबदल करना पड़ा
वीरभद्र ने अपनी नाराजगी साफ कर दी तो वह हाईकमान के निर्णयों पर भारी पड़ते हुए दिखे। हाईकमान को फेरबदल करना पड़ गया। इसके बाद वीरभद्र को प्रचार अभियान व टिकट आबंटन से संबंधित तमाम समितियों में वरीयता दी गई। कांग्रेस के मन में शुरू से ही चुनाव को लेकर हड़बड़ाहट दिखी। पार्टी के भीतर नेताओं के आपसी अंतद्र्वंद्व के चलते पार्टी में बनते-बिगड़ते हुए समीकरण लंबे समय तक हाईकमान को महत्वपूर्ण टिकटों का आबंटन कराने के मामले में पूरी तरह से निर्णायक नहीं बना पाए। कुछ नेताओं के बी.जे.पी. से कथित तौर पर सुर मिलाने की लंबी जद्दोजहद ने कांग्रेस हाईकमान को उलझाए रखा। इस दौरान काफी समय पार्टी को इस झमेले में ही गंवाना पड़ गया। 


उत्तराखंड सहित तमाम राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा टिकट आबंटन से लेकर प्रचार अभियान के आखिरी हफ्ते तक इस भ्रम में रही कि हिमाचल में भी वह वीरभद्र सिंह के सामने स्थानीय नेतृत्व के चेहरे को परदे में रखते हुए बड़ा करिश्मा दिखा पाएगी। इसलिए पार्टी हिमाचल में अपने पुराने चेहरे प्रेम कुमार धूमल को काफी समय तक नजरअंदाज करती रही। यहां तक कि राजनीतिक चर्चाओं में पार्टी के स्तर से आने वाली सूचनाएं हर स्तर पर यही संदेश दे रही थीं कि हिमाचाल में पार्टी मोदी के नाम पर चुनाव लड़ेगी और बाद में हरियाणा की तर्ज पर किसी को भी मुख्यमंत्री की गद्दी सौंप देगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। 


पार्टी के भीतर जे.पी. नड्डा के मुख्यमंत्री के तौर पर चुनाव के बाद आने की प्रबल संभावनाओं का उफान भी आखिरी हफ्ते तक आते-आते शांत हो गया। कांग्रेस के वीरभद्र सिंह के सामने दिख रहे जातीय समीकरण व मुख्यमंत्री के स्थानीय स्तर पर चेहरे की महत्ता को पार्टी ने समझा और अपनी रणनीति पर यू-टर्न लेते हुए मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में प्रेम कुमार धूमल को प्रोजैक्ट कर दिया। इसके बाद कांग्रेस के सामने यह संकट स्पष्ट दिखा कि जिन धूमल की उपेक्षा को लेकर वीरभद्र बार-बार बयान दे रहे थे, अब आखिर में उन्हें बेअसर करने के लिए कैसे कांग्रेस हमलावर हो? यहीं पर आकर भाजपा ने कांग्रेस से प्रचार अभियान से लेकर चुनाव में इक्कीस रहने के लिए तमाम तौर-तरीकों में आगे रहने के लिए प्रयास तेज कर दिए और भाजपा इसमें कामयाब भी हुई। 


ऐसे हुआ टिकट आबंटन 
कांग्रेस को ठियोग की सीट पर अपनी ही सूझबूझ व परिपक्वता की कमी के कारण लिए गए निर्णय खाने को आ गए। यहां से पार्टी दिग्गज नेेता विद्या स्टोक्स के नेतृत्व को आखिरी दौर में साध ही नहीं पाई और संगठन व सरकार के बीच की जंग के कारण पार्टी के हित बलि चढ़ गए। चुनाव से ठीक पहले वीरभद्र ने यहां तक कह दिया कि यहां से प्रत्याशी हारता है तो मैं जिम्मेदार नहीं। वहीं कांग्रेस टिकट आबंटन में अपने ही बनाए गए नियमों को तोड़ती हुई नजर आई। एक परिवार-एक टिकट पर भी हड़बड़ी में निर्णय लिए गए। अपने ही बनाए हुए नियमों को पलटते हुए आखिर दौर में कुछ और नहीं सूझा तो नेता पुत्र व पुत्रियों को ही चुनाव मैदान में उतारना पड़ गया। 


टिकट आबंटन ने रुला डाला
हिमाचल में सी.एम. पद पर चेहरे की घोषणा से पहले भाजपा को टिकट आबंटन के दौर में बड़े संकट झेलने पड़ गए। धर्मशाला से किशन कपूर हों या पालमपुर से प्रवीण शर्मा के तो आंसू तक छलके। फिर रिखी राम कौंडल, सुरेश चंदेल, चम्बा से विधायक बी.के. चौहान, भरमौर से तुलसी राम, सुंदरनगर से रूप सिंह ठाकुर व कांगड़ा जिले की कई सीटों से निर्दलीय उतरे या उतरने को उस वक्त तैयार बैठे नेताओं को मनाने में पार्टी की जान लंबे समय तक सूखती रही। यहां तक कि कांगड़ा जिला से पार्टी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने भी अपनी व्यथा मीडिया में जाहिर कर दी। पूर्व सी.एम. प्रेम कुमार धूमल को सुजानपुर भेजे जाने से उनके आंसू छलके नजर आए।


यहां रहीं कमियां 
कांग्रेस पार्टी की हिमाचल के दूसरे सबसे बड़े जिले मंडी को लेकर भी भाजपा की ओर से रणनीतिक झटका लगा। मंडी जिला के सियासी अखाड़े के हैवीवेट रहे पंडित सुखराम ने ऐन मौके पर कांग्रेस को झटक दिया। बेटे अनिल शर्मा के साथ वह भाजपा के हो गए। इसके बाद कांग्रेस को इस जिले में व्यवस्थित व प्रभावकारी मंथन का वक्त नहीं मिल पाया और इस जिले में सुखराम के जाते ही पार्टी की रणनीति धीरे-धीरे निष्प्रभावी होती गई और अंतत मामला पूरी तरह वीरभद्र सिंह के कंधों पर ही आ टिका। हिमाचल में कांग्रेस अगर चाहती तो पड़ोसी राज्य पंजाब से भी अपने लिए पार्टी के प्रति लोगों की साल भर पहले और हाल ही में गुरदासपुर उपचुनाव में लौटी तथाकथित आस्था को भी भुना सकती थी, लेकिन अपेक्षित स्तर पर कुछ नहीं हुआ। प्रदेश के बड़े नेता भी अपने हलकों में ही सिमट कर रह गए।


कांग्रेस ने यहां मारी बाजी
कांग्रेस ने पहले वीरभद्र सिंह के बिना चुनाव लडऩे की बात कही, लेकिन पार्टी इस स्थिति को जल्दी भांप गई कि वीरभद्र के बिना जीत पाना मुश्किल है। अत: मंडी में राहुल गांधी वीरभद्र सिंह को कांग्रेस का चेहरा घोषित कर गए। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पूरे चुनाव में सबसे अधिक सक्रिय प्रचारक के रूप में दिखे। उन्होंने कम समय में हालांकि ज्यादा करने की कोशिश की। 84 साल के इस वयोवृद्ध नेता ने अकेले ही भाजपा नेतृत्व का मुकाबला किया तथा भाजपा के केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व पर लगातार जवाबी हमले करते रहे। शुरूआत में माना जा रहा था कि कांग्रेस चुनाव में आक्रामक प्रचार पर उतर सकती है, लेकिन ऐन मौके पर सोनिया गांधी तो परिदृश्य में ही नहीं आ पाईं, जबकि राहुल गांधी कुछ ही स्थानों तक सीमित हो गए और वे भी प्रचार के अंतिम गिने-चुने दिनों में ही हिमााचल में आए। 


यहां रहीं कमियां
चुनावों से ठीक पहले भाजपा के सर्वे और एक्सरसाइज सब सही दिशा में चले थे। पार्टी ने हालांकि जून में ही चुनावों की तैयारी के चलते बैठकें करनी शुरू कर दी थीं, लेकिन ऐन मौके पर टिकट आबंटन में महिलाओं पर पेंच फंस गया और सारे समीकरण बिगड़ गए। कई जगह हालत ऐसे बिगड़े कि लेने के देने पड़ गए। फिर भी पार्टी ने अधिकांश को मना लिया, लेकिन कई जगह पार्टी से बगावत करने वाले नहीं माने। 28 दिन के समय में पार्टी के पास इतना भी समय नहीं बचा कि रूठों को मना सकें। युवाओं की बात करने वाली भाजपा ने युवाओं के टिकट काट दिए। ऐसे में युवा भी कम समय में खुद को उबार नहीं पाए और उस मन से पार्टी के साथ नहीं दिख पाए। कई नेता टिकट कटने के बाद पार्टी के साथ जुड़ तो गए, लेकिन वे प्रत्याशी के लिए खुलकर प्रचार करते नहीं दिखे। पार्टी ने दूसरी कमी सी.एम. चेहरा देरी से घोषित करके की, क्योंकि धूमल इससे पहले प्रदेश में खुलकर प्रचार नहीं कर पाए। 


यहां से भाजपा को मिली संजीवनी
भाजपा हिमाचल के चुनाव को पहले से ही गंभीरता से लेने लग पड़ी थी। बिलासपुर में एम्स की उपलब्धि दिए जाने के नाम पर एक विशाल रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाकर भी भाजपा ने काफी पहले हिमाचल में चुनाव माहौल को गर्म कर दिया था। भाजपा के तमाम केंद्रीय मंत्रियों से लेकर कांगड़ा व मंडी संसदीय क्षेत्रों तथा नाहन व ऊना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों ने पार्टी के प्रचार की गति पहले से कई गुना अधिक कर दी। प्रेम कुमार धूमल को प्रोजैक्ट किए जाने के बाद तो पार्टी के भीतर नेतृत्व की स्पष्टता होते ही असल में भाजपा को दोहरी ताकत मिल गई। पार्टी ने अपनी इस कथित दोहरी ताकत की रणनीति पर आगे बढ़ते हुए ही काम किया। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल की ताकत से हिमाचल का कायापलट का आह्वान भाजपा को प्रचार अभियान में बहुत आगे कर गया।


वीरभद्र को खुलकर दिया बैकअप : सुक्खू
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू कहते हैं कि मौजूदा चुनाव में कांग्रेस हाईकमान ने समय रहते ही तमाम बेहतरीन निर्णय लिए। हिमाचल में पार्टी के वरिष्ठतम नेता वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री के तौर पर पार्टी ने पूरी सहमति से प्रोजैक्ट किया। उन्होंने कहा कि यह भ्रम है कि हाईकमान ने प्रचार अभियान में वीरभद्र सिंह को खुलकर बैकअप नहीं किया। पार्टी हाईकमान के दिशा-निर्देशों पर संगठन के तमाम पदाधिकारियों ने 15 दिन से ज्यादा दिनों तक हिमाचल में प्रचार अभियान को संभाले रखा। उन्होंने कहा कि जो भी टिकट आबंटन किए गए हैं, वे समय व स्थिति को देखते हुए पार्टी हाईकमान ने बेहतर निर्णय लेते हुए किए हैं। 


भाजपा के निर्णय गोपनीय रणनीति का हिस्सा थे : सत्ती
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सत्ती ने कहा कि पार्टी ने जो भी निर्णय नेतृत्व को लेकर और चुनाव अभियान को लेकर लिए, वे सभी पूरी तरह से गोपनीय रणनीति का ही हिस्सा रहे थे। पार्टी हाईकमान को जब जिस वक्त पर लगा कि अब चेहरे को सामने लाने की जरूरत है तो उसे लाया गया। सत्ती ने बताया कि जब भी पार्टी के निर्णय होते हैं तो सभी पहलुओं व पक्षों को ध्यान में रखते हुए ही किए जाते हैं। हाईकमान के दिशा-निर्देशों पर पार्टी ने इस बार अभूतपूर्व काम किया है और हिमाचल की जनता ने भाजपा को इस बार प्रचंड बहुमत दिया है।

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!