टिकट वालों ने डुबोई तो मैंने बचाई भाजपा की लाज

Edited By Updated: 20 May, 2017 08:47 AM

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कांगड़ा जि़ला के आखिरी छोर पर बसे नूरपुर हलके में भाजपा के फायर ब्रांड लीडर एवं पूर्व विधायक राकेश पठानिया कभी पार्टी के लिए राहत बनते हैं तो कभी आफत भी।

नूरपुर: कांगड़ा जि़ला के आखिरी छोर पर बसे नूरपुर हलके में भाजपा के फायर ब्रांड लीडर एवं पूर्व विधायक राकेश पठानिया कभी पार्टी के लिए राहत बनते हैं तो कभी आफत भी। पहली दफा भाजपा का झंडा कांग्रेस के नूरपुर किले पर गाडऩे का यश लूटने वाले राकेश पठानिया यहां से भाजपा में यह साबित भी कर चुके हैं कि जब तक वह हैं तब तक उनके बिना भाजपा नूरपुर में नहीं और भाजपा को अगर किला फिर से फतह करना है तो उन्हें दरकिनार कर पाना संभव भी नहीं। उनसे भाजपा हो सकती है वह भाजपा में हों या नहीं। पठानिया कहते हैं कि मैं भाजपा का वफादार रहा हूं और हूं भी। पार्टी में व्यक्ति विशेष का हनुमान नहीं। भाजपा ही मेरा राम और मैं भाजपा का हनुमान। प्रेम कुमार धूमल से वफादारी इसलिए की ताकि मेरे नूरपुर को मैं सोने की चिडिय़ा बना सकूं। 2 बार आजाद चुनाव लड़ा तो सिर्फ भाजपा की लाज बचाने को। जिनको भाजपा ने टिकट के लिए चुना उन्होंने पार्टी की नाक कटाई और मैंने आज़ाद भी पार्टी की साख और लाज बचाई। कांगड़ा में भाजपा का टिकट आबंटन हिमाचल में पार्टी का भविष्य तय करेगा। उनसे हुई विशेष बातचीत के अंश।


1. आप भाजपा के लिए चुनौती भी बनते हैं और चुनाव भी। अब तक आपको साथ लेकर भाजपा को फायदा ही हुआ है तो फिर पिछली बार टिकट क्यों नहीं मिला? क्या किसी ने टिकट कटवाया? 
पठानिया: मैं भाजपा के लिए कभी चुनौती नहीं रहा बल्कि सम्पदा रहा हूं। पार्टी की साख रहा हूं और आज भी हूं। कांग्रेस की किलेबंदी को ध्वस्त करते हुए नूरपुर में पहली बार भाजपा का कमल मैंने ही खिलाया था। टिकट मिलना न मिलना हाईकमान पर तय करता है। 


2. आप नूरपुर हलके से आज़ाद भी जीते हैं। ऐसे में आपकी पकड़ मानी जा सकती है लेकिन क्या वजह रही कि़ पिछला चुनाव आज़ाद नहीं जीत पाए? आपका टिकट काटना आपको पार्टी से वफादार नहीं रहने का दंड मानते हैं ?
पठानिया: मैंने कभी भाजपा से बेवफाई नहीं की। आजाद विधायक बनने के बाद भी भाजपा के लिए ही आवाज बुलंद करता रहा। 


3. आप राजनीति में जाति की भूमिका को कितना मानते हैं ? क्या आप खुद को कांगड़ा जि़ला का भाजपा में राजपूत नेता मानते हैं और कांगड़ा में राजपूत चेहरा भी ? 
पठानिया: जाति की भूमिका शून्य है। राजपूत चेहरा मेरे मानने से नहीं बल्कि जनता पर निर्भर करता है। अगर जनता बनाए तो होगा नहीं तो मैं भी शून्य हूं। मैं जनता को अपना भाग्य विधाता मानता हूं। उसी जनता ने आज तक मेरी इज्जत बनाकर रखी है। नूरपुर की जनता का सात जन्म तक ऋण नहीं उतार सकता।


4. आप पर आरोप हैं कि आप सत्ता में आते ही बेलगाम हो जाते हैं ? सत्ता आप पचा नहीं पाते? 
पठानिया: हां मैं बेलगाम होता हूं सिर्फ  विकास के लिए,  मेरी भाषा में बेलगाम का अर्थ दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले अपने क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा विकास करवाना है। 


5. आपका राजनीतिक पिता कौन है ? शांता कुमार या प्रेम कुमार धूमल?
पठानिया: मेरा राजनीतिक पिता नूरपुर की जनता है। 


6. आपके पहली बार पर्यटन विकास निगम का उपाध्यक्ष बनने के समय से विवाद आपके पीछा क्यों नहीं छोड़ते?
पठानिया : पर्यटन निगम का उपाध्यक्ष और अध्यक्ष रहते हुए उस समय 18 प्रोजैक्ट्स का निर्माण हुआ था। पहली बार घाटे में चल रहे निगम को लाभ हुआ था। उस समय जो सुविधाएं पर्यटन इंडस्ट्री और पर्यटकों को मिली थीं, वे आज तक नहीं मिलीं। अगर यह विवाद है तो मैं ऐसे विवादों में रहना चाहता हूं। 


7. आपकी दबंग नेता की छवि आपके लिए नुक्सानदेह है या नफे वाली?
पठानिया: दबंगई का हमेशा फायदा होता है क्योंकि मैं दबंगई लोगों के लिए करता हूं। 


8. आप चाहते हैं कि़ धूमल एक बार फिर से सी.एम. बनें ? आपकी नजऱ में भाजपा में कांगड़ा जि़ला का नेता कौन है? 
पठानिया: किसी का मुख्यमंत्री बनना न बनना हाईकमान पर निर्भर करता है। कांगड़ा जिला का नेता सर्वे तय करेगा कि कौन है। 


9. हिमाचल में सरकार बनाने को लेकर कांगड़ा की भूमिका  क्या है? कांगड़ा में 3 को 13 बनाने का मंत्र कोई आपके ख्याल से क्या है? 
पठानिया : प्रदेश में सत्ता की चाबी कांगड़ा से ही होकर गुजरती है। कांगड़ा को 3 से 13 करना है तो जीतने वाले प्रत्याशियों को टिकट देना होगा। इतिहास गवाह है कि जब-जब माइनस कांगड़ा किया गया है तब-तब सरकार नहीं बन सकी। 


10. भाजपा ने इस बार युवाओं और नए चेहरों को टिकट का ऐलान किया है। कितना कारगर साबित होगा पार्टी का यह दांव? 
पठानिया : यह दांव वहां खेला जाना चाहिए जहां पार्टी के पास कोई चेहरा नहीं है। अगर ऐसा हुआ तो काफी कारगर होगा यह दांव।


11. आप राजनीति में वफादारी को जरूरत मानते हैं या फिर जरूरी? 
पठानिया : मैं बफादारी को जरूरत मानता हूं सिर्फ जनहित में। व्यक्तिगत नहीं। जरूरी इसलिए नहीं क्योंकि पता नहीं अगला वफादार हो या न हो और आप बफादारी में उम्र निकाल दें। वफादारी दोनों तरफ  का विश्वाश है।


मैंने भाजपा को नहीं, भाजपा ने मुझे छोड़ा
भाजपा कैसे यकीन करे कि आप उसे दोबारा धक्का देकर आगे नहीं बढ़ेंगे? सुना है इस बार आपके ही मुकाबले का कोई और पहलवान नूरपुर भाजपा में तैयार हो गया है? रणवीर सिंह निक्का को भाजपा टिकट देती है तो आपका कदम क्या होगा? प्रश्न के उत्तर में पठानिया कहते हैं कि भाजपा तब अविश्वास करेगी न जब मैं पार्टी को छोडूंगा। मैं हमेशा भाजपा का बफादार रहा हूं, इसका सबूत यह है कि राजन सुशांत तथा महेश्वर सिंह की तरह मैंने कभी भी अलग दल बनाकर भाजपा के खिलाफ झंडा बुलंद नहीं किया। हां भाजपा ने मुझे छोड़ा और टिकट किसी और को दी। हलके के भाजपा कार्यकर्ताओं के कहने पर ही मैं आज़ाद चुनाव मैदान में आया और पार्टी की लाज बचाई। इस बार अगर टिकट किसी और को मिलती है तो मेरा कदम समय और जनता तथा भाजपा के आम कार्यकत्र्ता मिलकर तय करेंगे।


विकास के लिए की धूमल की वफादारी
भाजपा में रहते हुए आपका बार-बार गुट बदलना आपकी अपने फायदे के लिए डाल-डाल बैठने की प्रवृत्ति को नहीं दर्शाता? क्या पिछली बार टिकट कटवाने के प्रयासों को रोकने में धूमल ने मदद नहीं की? धूमल से नारजगी की वजह क्या है? के उत्तर में राकेश पठानिया कहते हैं कि डाल-डाल बैठने की प्रवृत्ति मेरी नहीं है। मैं धूमल का वफादार इसलिए था कि वह मुख्यमंत्री थे। अपने क्षेत्र के विकास के लिए मुख्यमंत्री की वफादारी करना कोई पाप नहीं है। टिकट कटना या मिलना हाईकमान का फैसला था। मेरा कोई ऐसा स्तर नही है कि मैं धूमल से नाराज हो जाऊं। उनके आशीर्वाद से नूरपुर क्षेत्र में अनगिनत विकास कार्य करवाए गए हैं। 

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