12 साल बाद आया मौका, नंगे पैर उल्टे चलकर पूरा किया 2 किमी तक कांटों भरा सफर

Edited By Punjab Kesari, Updated: 11 Nov, 2017 04:42 PM

the bare feet are inverted and up to 2 km inked journey

मंडी-कुल्लू सराज में देवता कला संग्रह के लिए आज भी अपने प्राचीन स्थलों ...

मंडी (पुरुषोत्तम): मंडी-कुल्लू सराज में देवता कला संग्रह के लिए आज भी अपने प्राचीन स्थलों में जाना नहीं भूलते। जब भी देवता को किसी अनहोनी घटना का अंदेशा हो जाए तो वे पहले ही अपने हारियानों को आगाह कर देते हैं कि ऐसी कोई घटना घट सकती है लिहाजा इसके बचाव के लिए वे धर्मसंसद में बैठेंगे या फिर कला संग्रह के लिए प्राचीन स्थलों का रूख करते हैं जहां देवी शक्तियों का वास होता है। सराज घाटी के आराध्य देवता बिठ्ठू नारायण भी 12 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद कला संग्रह के लिए कुल्लू जिला के सबसे दुर्गम क्षेत्र शाक्टी पहुंचे और वहां देवता ने अठाहरा करडू के कचहरी स्थल में हाजरी भरकर कला संग्रह किया। 
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महिलाओं ने अपने आराध्य देवता बिठ्ठू नारायण का स्वागत किया
यह स्थल करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित ग्रेट हिमालय नैशनल पार्क क्षेत्र में पड़ता है। जहां पहुंचने के लिए देवता के रथ ने थाची से करीब 100 कि.मी. का सफर अपने कारकूनों के कंधों पर सवार होकर किया और वापस भी सैंकड़ों देवलुओं के साथ ढोल-नगाड़ों की थाप पर पैदल अपने देवालय दिन के बाद पहुंचे। खास बात यह रही कि गांव में देवता के वापस पहुंचे पर बटवाड़ा गांव की ब्राह्मण परिवार की महिलाओं ने उनका धूप और फूलमालाओं से स्वागत किया जो सबसे रोचक और ऐतिहासिक पल था। भीगी पलकों से बुजुर्ग महिलाओं ने अपने आराध्य देवता बिठ्ठू नारायण का स्वागत किया और प्राचीन रस्मों को निभाने के लिए गांव की सभी महिलाओं ने नंगे पैर पैदल उल्टे चलकर करीब 2 कि.मी. का कांटों भरा रास्ता तय किया जो एक प्राचीन परम्परा है।
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इसलिए खास है शाक्टी दौरा
देवता के प्रमुख पुजारी ओत राम शर्मा का कहना है कि शाक्टी गांव में मलाणा की तर्ज पर अपना कानून चलता है और गांव की पवित्रता आज भी सर्दियों से बरकरार है। यह ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का सांझा स्थल है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान में 60 कलाएं विद्यमान हैं जो किसी देवता में भी नहीं होती। देवता बिठ्ठू नारायण भी अन्य देवरथों से अधिक स्वयं सोलह कला परिपूर्ण हैं लेकिन कुछ कलाओं की आवश्यकता पड़ने पर वे यहां कला संग्रह के लिए जाते हैं। यह दौरा भी 12 वर्ष बाद देवता के आदेश पर निकला है। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन समय में यहां 12 गुणा 20 परिवार मतलब 220 सदस्य रहते थे जो देव स्थल की पवित्रता बरकरार नहीं रख सके तो स्थानीय देवता बिठ्ठ (ब्रह्मा) ने इनका एक साथ समूल नाश कर दिया था और एक मात्र महिला बच गई थी जो नियमों का पूरा पालन करती थी। इस महिला के आगे देव कृपा से फिर कुनबा बढ़ा और यहां फिर से प्रलय के बाद जीवन शुरू हो गया। अब एक महिला गांव में सबसे बुजुर्ग उसी परिवार की है जिससे मिलने देवता बिठ्ठू नारायण स्वयं यहां पहुंचते हैं। इस बार भी 12 वर्ष पूर्व इसी महिला शाहढ़ी देवी को दिए वचन को पूरा करने के लिए देवता गांव पहुंचे थे और अपनी पुरातन रस्में देवता बिठ्ठ (ब्रह्मा) की उपस्थिति में पूरी की।  

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