Edited By Punjab Kesari, Updated: 04 Sep, 2017 01:24 AM
स्मार्ट पुलिस की एक और एस.आई.टी. पर सवाल उठे हैं। बल्देयां के तारापुर जंगल से मेद राम के कंकाल बरामदगी से ये सवाल उठे हैं।
शिमला: स्मार्ट पुलिस की एक और एस.आई.टी. पर सवाल उठे हैं। बल्देयां के तारापुर जंगल से मेद राम के कंकाल बरामदगी से ये सवाल उठे हैं। अगर पुलिस ने शिद्दत से कोशिश की होती तो यह केस पहले ही सुलझ जाता। तत्कालीन आई.जी. साऊथ रेंज जैड.एच. जैदी ने इसकी जांच के लिए भी एस.आई.टी. गठित की थी। इस एस.आई.टी. ने सारी जांच महिलाओं के इर्द-गिर्द केंद्रित की लेकिन मौत के बारे में कुछ भी जिक्र नहीं किया। अब सी.आई.डी. मेद की मौत की मिस्ट्री से पर्दा उठाएगी। मेद राम के कंकाल का सोमवार को पोस्टमार्टम होगा। इससे मौत के कारणों का पता चल सकेगा। इसके आधार पर जांच एजैंसी बल्देयां क्षेत्र के 20 से अधिक लोगों से पूछताछ करेगी।
प्रॉपर्टी डीलर के संपर्क में थे कई लोग
पुलिस की एस.आई.टी. की जांच कहती है कि इस प्रॉपर्टी डीलर के संपर्क में कई लोग थे। इनमें 3 महिलाओं के भी नाम सामने आए हैं। इसके अलावा दूसरे प्रॉपर्टी डीलरों से भी बातचीत हुई थी। जांच टीम ने मोबाइल डाटा को गहनता से खंगाला था। इसी के आधार पर उसकी लास्ट लोकेशन बल्देयां से गुम्मा की ओर पाई गई। उसके बाद यह लोकेशन तारापुर जंगल में पाई गई। बड़ा सवाल यह है कि जब मेद राम को अंतिम बार गुम्मा सड़क की तरफ जाते हुए देखा गया था तो वह करीब 4 किलोमीटर दूर तारापुर के जंगल में कैसे पहुंचा? इसी सवाल का जवाब सी.आई.डी. भी ढूंढ रही है।
एस.आई.टी. ने डी.जी.पी. को सौंपी थी रिपोर्ट
पुलिस की एस.आई.टी. ने जांच रिपोर्ट आई.जी. और डी.जी.पी. को सौंपी थी। इस मामले को पुलिस प्रशासन और सरकार तक उठाने वाली किसान सभा इस रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हुई। सभा के प्रदेशाध्यक्ष डा. कुलदीप सिंह तंवर के प्रयासों से पुलिस महानिदेशक ने इस केस के सी.आई.डी. जांच के आदेश दिए थे। ये आदेश मौजूदा डी.जी.पी. सोमेश गोयल ने दिए थे। तब उनके पास सी.आई.डी. के ए.डी.जी.पी. का भी अतिरिक्त कार्यभार था। हालांकि उसके बाद यह कार्यभार विजीलैंस के ए.डी.जी.पी. को दिया गया था जबकि गोयल को जेल का अतिरिक्त जिम्मा दिया गया था। सी.आई.डी. ने एक महीने के भीतर ही कंकाल बरामद कर लिया।
डेढ़ साल में किसी ने क्यों नहीं देखी लाश?
डेढ़ साल तक किसी ने लाश क्यों नहीं देखी? इससे स्पष्ट है कि यह नाले में मिट्टी में दबाई गई थी। तभी पाटर््स अलग-अलग नहीं हुए। अगर खुले में लाश होती तो इसे जंगली जानवर नष्ट कर देते। अगर जानवरों से बच भी जाती तो लोगों की नजर जरूर पड़ती जबकि इस दौरान वहां से लोगों की आवाजाही होती रही है।
एक्सीडैंटल नहीं है डैथ
किसान सभा के नेता एवं रिटायर आई.एफ.एस. डा. कुलदीप सिंह तंवर का कहना है कि सी.आई.डी. की जांच सही दिशा में जानी चाहिए। हमें लगता है कि यह एक्सीडैंटल डैथ नहीं है। इसमें फाऊल प्ले नजर आ रहा है। कॉज ऑफ डैथ का पता लगने से सच्चाई सामने जरूर आनी चाहिए। जब तक सच्चाई नहीं निकलती हम इस केस के लिए संघर्ष करते रहेंगे। पहले भी सड़कों पर उतर कर जांच सी.आई.डी. के हवाले करवाई लेकिन अगर यह भी पुलिस की लाइन पर चली तो फिर से न्याय के लिए आंदोलन करेंगे।