Edited By Updated: 09 Dec, 2016 09:31 AM
सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के दावे तो सरकार द्वारा बड़े-बड़े किए जा रहे हैं परंतु जिन शिक्षकों को देश का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी दी गई है उन्हें इसी...
चुवाड़ी: सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के दावे तो सरकार द्वारा बड़े-बड़े किए जा रहे हैं परंतु जिन शिक्षकों को देश का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी दी गई है उन्हें इसी सरकार द्वारा कई श्रेणियों में बांटकर रख दिया है। कुछ अध्यापक तो मजदूरों के लिए तय की गई न्यूनतम मजदूरी से भी कम वेतन प्राप्त कर रहे हैं, ऐसे में सरकार द्वारा अपने स्कूलों में बढ़िया शिक्षा प्रदान करने की मंशा पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है।
जानकारी के अनुसार लगभग 8-9 वर्ष पूर्व डी.पी.ई.पी. के तहत अर्ध प्राथमिक स्कूलों में ई.जी.एस. अध्यापकों की नियुक्तियां की गई थी और उसके 3 वर्ष उपरांत उन्हें ग्रामीण विद्या उपासक का दर्जा देते हुए 3500 रुपए मासिक वेतन पर प्राथमिक स्कूलों में लगाया गया। इस दौरान सरकार ने उन्हें 2 वर्ष का डिप्लोमा इन एलीमैंटरी एजुकेशन भी करवाया तथा इस वर्ष अप्रैल माह में इन अध्यापकों का वेतन बढ़ाकर 7 हजार रुपए मासिक कर दिया तथा उसके बाद 6 माह तक उन्हें यही वेतन दिया जाता रहा परंतु नवम्बर माह में इन अध्यापकों के वेतन में कटौती करके फिर से 3500 रुपए कर दी है जोकि 117 रुपए दैनिक मानदेय बनता है जबकि न्यूनतम मजदूरी भी प्रदेश में अब 200 रुपए से अधिक है।
इस बारे में लोगों का कहना है कि प्राथमिक शिक्षा तो हर बच्चे के भविष्य की एक नींव की तरह काम करती है परंतु सरकारी नीतियों का सबसे बड़ा खामियाजा भी इन स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। एक जैसा काम करने के लिए 60 हजार वेतन ले रहा है तो कोई मात्र 3500 रुपए, ऐसे में आर्थिक तनाव से ग्रस्त ये अध्यापक किस प्रकार काम करते होंगे। इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।