न रुपया न युआन, यहां चलता है बस सामान के बदले सामान

Edited By Punjab Kesari, Updated: 11 Feb, 2018 11:37 PM

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सूचना प्रौद्योगिकी, कैशलैस और आधुनिक युग के इस दौर में लेन-देन के दौरान वस्तु के बदले वस्तु देने की बात भले ही अटपटी सी लगे लेकिन भारत और तिब्बत की सरहद पर आज भी इसी प्रकार व्यापार का क्रम आगे बढ़ रहा है।

मनाली: सूचना प्रौद्योगिकी, कैशलैस और आधुनिक युग के इस दौर में लेन-देन के दौरान वस्तु के बदले वस्तु देने की बात भले ही अटपटी सी लगे लेकिन भारत और तिब्बत की सरहद पर आज भी इसी प्रकार व्यापार का क्रम आगे बढ़ रहा है। जब मुद्रा का प्रचलन नहीं था तब भी सरहद पर इसी प्रकार कारोबार होता था। मुद्रा के प्रचलन के बाद भी यहां वस्तु विनिमय के तहत ही कारोबार चल रहा है। जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति के रास्ते तिब्बत के साथ सदियों पुराने व्यापारिक रिश्ते भले ही बीते जमाने की बात हो लेकिन भारत के नमजा, कौरिक व लेपचा गांव और तिब्बत के सरहदी गांव झुरूप व सांगटो में आज भी कु छ है जो जीवित है। तिब्बत बेशक ड्रैगन के अधीन हो और ड्रैगन भले ही भारत को घूरता रहे लेकिन इस दौर में भी इन व्यापारिक रिश्तों के मायने सदियों पुराने ही हैं। सामान के बदले सामान का व्यापारिक रिश्ता आज भी कायम है।

न रुपए की कीमत है न युआन की
यहां न रुपए की कीमत है न युआन की। बात है भारत की सरहद के नमजा, कौरिक, लेपचा व चीन अधिकृत तिब्बत के झुरूप व सांगटो गांवों की। 1962 में चीन-भारत युद्ध के बाद संवेदनशीलता के मद्देनजर कौरिक व लेपचा गांव को भारत सरकार ने वहां से स्पीति के ही कूलिंग और लरी के बीच चंडीगढ़ नामक स्थान पर विस्थापित किया लेकिन स्पीति, रामपुर व किन्नौर से व्यवसायी आज भी वस्तु विनिमय व्यापार की प्रथा को चलाए हुए हैं। जानकारी के अनुसार भारत की ओर से राशन व प्लास्टिक वस्तुएं व वस्त्र सहित मांग के हिसाब से सामान लिया जाता है जबकि चीन अधिकृ त तिब्बत से चाइनीज क्रॉकरी, चमड़ा, पश्मीना, याक का मांस व इलैक्ट्रॉनिक वस्तुएं लाई जाती हैं। 

सरहदों पर आज भी है बेहतर तालमेल 
लाहौल के इतिहासकार मोहन लाल ने बताया कि कौरिक गांव को 1962 के युद्ध के बाद दूसरी जगह बसाया गया था। उन्होंने बताया कि 12,970 फुट ऊंचे इस गांव में अब भारतीय सेना की एक चैक पोस्ट भी है। लद्दाख स्कॉट, आई.टी.बी.पी., एम.आई. व आई.बी. के जवान भारतीय सीमा पर तैनात हैं। आज भी वस्तु विनिमय व्यापार की परंपरा से जुड़े छेरिंग तंडूप, नवांग, फुंचोंग व छीमे ने बताया कि इन सरहदों पर वर्षों का तालमेल आज भी कायम है। उन्होंने बताया कि भले ही भारत-चीन संबंधों पर बैर की मोटी परत जमी हो लेकिन इन सरहदों पर आज भी बेहतर तालमेल है। उन्हें यह भी आशा है कि यह रिश्ता आगे भी चलता रहेगा। इन लोगों ने बताया कि सरहदों पर लोग बड़े प्यार से रहते हैं तथा इस बात का आभास ही नहीं होता कि यहां 2 देशों के सरहदें आपस में मिलती हैं।

भारत से वैर की कई वजहें
चीन की भारत के साथ वैर की कई वजहें हैं। तिब्बत के लोगों को भारत में शरण और मान-सम्मान भी रिश्तों में खटास का एक कारण है। भारत के विभिन्न हिस्सों में तिब्बत के लोग शरण लिए हुए हैं। धर्मगुरु दलाईलामा भी मैक्लोडगंज में लाखों अनुयायियों के साथ रह रहे हैं। शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित धर्मगुरु दलाईलामा से मिलने दुनिया के विभिन्न देशों से कई हस्तियां आ रही हैं। अन्य धर्मगुरु भी हिमाचल व अन्य राज्यों के विभिन्न हिस्सों में मठों में रह रहे हैं। कई जगह बोध मठों की स्थापना हुई है और शिक्षा-दीक्षा बांटने व ग्रहण करने का क्रम जारी है। तिब्बत के लोगों को भारत में शरण की वजह से ही चीन को भारत अखर रहा है। चीन द्वारा पाकिस्तान को शह और पाक अधिगृहीत कश्मीर पर चीन द्वारा अपनी सैन्य गतिविधियां प्रायोजित करना भी भारत के साथ चीन के वैर की एक वजह है। कई बार चीन और भारत के बीच की यह तकरार अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी उभरी है।

जारी है तिब्बत का संघर्ष 
तिब्बत की आजादी के लिए तिब्बत के लोगों का संघर्ष जारी है। भारत में भी तिब्बत के लोग अपने देश की आजादी के लिए काम कर रहे हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी तिब्बत के साथ ज्यादती के खिलाफ विभिन्न देश तिब्बत के साथ हैं। भारत की भूमिका को यू.एन.ओ. सहित अन्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वे संगठन भी सराह रहे हैं जिन संगठनों के सदस्य कई देश हैं। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी तिब्बत अपनी बात रख रहा है और तिब्बत को भी उम्मीद है कि एक न एक दिन तिब्बत गुलामी की बेडिय़ों को तोड़कर आजाद हो जाएगा।

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