डाक्टर जसबीर सिंह को दी जाए सुरक्षा : एसोसिएशन

Edited By Updated: 12 Jan, 2017 01:14 AM

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क्षेत्रीय अस्पताल बिलासपुर में दिव्यांगता बढ़ाने के लिए सदर विधायक द्वारा हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. जसबीर सिंह को दी गई ट्रांसफर की धमकी का हिमाचल प्रदेश मैडीकल आफिसर एसोसिएशन ने कड़ा संज्ञान लिया है...

बिलासपुर: क्षेत्रीय अस्पताल बिलासपुर में दिव्यांगता बढ़ाने के लिए सदर विधायक द्वारा हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. जसबीर सिंह को दी गई ट्रांसफर की धमकी का हिमाचल प्रदेश मैडीकल आफिसर एसोसिएशन ने कड़ा संज्ञान लिया है तथा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से इस सारे मामले की न्यायिक जांच करवाने की मांग की है। बिलासपुर में बुधवार को हिमाचल प्रदेश मैडीकल आफिसर एसोसिएशन की हुई आपातकालीन बैठक के बाद आयोजित पत्रकार वार्ता में एसोसिएशन के महासचिव डा. पुष्पेंद्र वर्मा ने बताया कि इस मामले की न्यायिक जांच की मांग को लेकर एसोसिएशन का एक प्रतिनिधिमंडल शीघ्र मुख्यमंत्री से मिलेगा। एसोसिएशन का मानना है कि जांच एक पक्षीय नहीं होनी चाहिए। 

डाक्टरों के प्रति बढ़ रही हिंसा से काम करना मुश्किाल
सोसिएशन के महासचिव ने इसके साथ ही डाक्टर जसबीर सिंह को सुरक्षा मुहैया करवाने की वकालत भी की ताकि डाक्टर जसबीर निर्भय होकर अपना काम कर सकें। उन्होंने बताया कि प्रदेश में डाक्टरों के प्रति दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हिंसा से उनको चिकित्सा संस्थानों में काम करना मुश्किल हो गया है। उन्होंने बताया कि इस हिंसा पर रोक लगाने के लिए डाक्टरों ने वर्ष 2014 को हड़ताल की थी तथा उस समय मुख्यमंत्री ने मैडी पर्सन एक्ट को नॉन बेलेबल बनाने का आश्वासन दिया था लेकिन प्रदेश सरकार ने इस एक्ट को अभी तक नॉन बेलेबल नहीं बनाया है। एसोसिएशन मैडी पर्सन एक्ट को नॉन बेलेबल बनाने की मांग को भी मुख्यमंत्री के समक्ष प्रभावी तरीके से रखेगी। 

दोनों बार दिव्यांगता प्रमाण पत्र 60 प्रतिशत बनाया
डा. पुष्पेंद्र वर्मा ने कहा कि सदर विधायक द्वारा 20,000 रुपए मांगने और दिव्यांगता प्रमाण पत्र को पहले 36 प्रतिशत और बाद में 60 प्रतिशत करने के सवाल पर बताया कि दोनों बार दिव्यांगता प्रमाण पत्र 60 प्रतिशत ही बनाया गया है। इसका सारा रिकार्ड क्षेत्रीय अस्पताल में मौजूद है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में डाक्टरों के रिक्त पदों के कारण आज हालत यह हो गई है कि एक डाक्टर को 150 से 200 मरीज देखने पड़ रहे हैं जबकि नियमानुसार एक डाक्टर 35 से 40 मरीज ही देखता है। काम के बढ़ते बोझ और ङ्क्षहसा के कारण ही डाक्टर सरकारी नौकरी छोड़ रहे हैं। 

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