देखिए वो ‘मणि’, जिसके दर्शन के लिए भक्त करते हैं 15 KM की कठिन मणिमहेश यात्रा

Edited By Punjab Kesari, Updated: 20 Aug, 2017 02:49 PM

यही वो मणि है, जिसके दर्शन के लिए भक्त 15 किमी की कठिन पैदल यात्रा करते हैं। बम-बम भोले के जयकारों के साथ मणिमहेश की यात्रा यहां आकर पूरी होती है।

चंबा: यही वो मणि है, जिसके दर्शन के लिए भक्त 15 किमी की कठिन पैदल यात्रा करते हैं। बम-बम भोले के जयकारों के साथ मणिमहेश की यात्रा यहां आकर पूरी होती है। मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे से जब सूर्य उदय होता है, तो सारे आकाश में नीलिमा छा जाती है और सूर्य के प्रकाश की किरणें नीले रंग में दिखाई देती हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि इस कैलाश पर्वत में नीलमणि के गुण-धर्म मौजूद हैं, जिनसे टकराकर प्रकाश की किरणें नीली हो जाती हैं। कैलाश पर्वत के शिखर के ठीक नीचे बर्फ से घिरा एक छोटा-सा शिखर पिंडी रूप में है।


हड़सर से आरंभ होती है यह यात्रा
स्थानीय लोगों के अनुसार भारी हिमपात होने पर भी यह हमेशा दिखाई देता है। मणिमहेश-कैलाश क्षेत्र हिमाचल प्रदेश में चंबा जिले के भरमौर में आता है। यह यात्रा हडसर से शुरू होती है, जो सड़क मार्ग का अंतिम पड़ाव है। यहां से आगे की यात्रा या तो पैदल या फिर घोड़े-खच्चरों पर तय की जाती है। किसी समय पैदल यात्रा चंबा से ही होती थी। सड़क बन जाने के बाद यह यात्रा भरमौर से होने लगी और अब यह हड़सर से आरंभ होती है। धन्छो से आगे और मणिमहेश-सरोवर से करीब दो किलोमीटर पहले गौरीकुंड है। यह यात्रा का अंतिम पड़ाव है। 


बर्फ के ठंडे पानी में स्नान करते हैं श्रद्धालु
13,500 फीट की ऊंचाई पर बने मणिमहेश सरोवर में श्रद्धालु बर्फ के ठंडे पानी में स्नान करते हैं। फिर सरोवर के किनारे बने श्वेत पत्थर की शिवलिंग रूपी मूर्ति की पूजा करते हैं। माना जाता है कि देवी पार्वती से शादी करने के बाद भगवान शिव ने मणिमहेश नाम के इस पहाड़ की रचना की थी। पहाड़ की चोटी पर एक शिवलिंग बना है। धौलाधार, पांगी और जांस्कर पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा यह कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से प्रसिद्ध है।

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