मंडी को 55 साल बाद मिली सी.एम. की कुर्सी

Edited By Punjab Kesari, Updated: 24 Dec, 2017 10:13 PM

mandi got cm  s chair after 55 years

वर्ष 1962 में मंडी के हाथों से फिसली मुख्यमंत्री की कुर्सी 55 साल बाद मंडी में लौट आई है।

जोगिंद्रनगर: वर्ष 1962 में मंडी के हाथों से फिसली मुख्यमंत्री की कुर्सी 55 साल बाद मंडी में लौट आई है। संयोग यह भी रहा है कि 6 दशक पहले जिला के सराज क्षेत्र में ही उस समय मंडी के हाथ आते-आते कुर्सी फिसल गई थी, जब ऐन मौके पर मंडी के कर्म सिंह ठाकुर के स्थान पर डा. यशवंत सिंह परमार मुख्यमंत्री बन गए थे तथा अब सराज के ही विधायक जयराम ठाकुर वर्षों पहले दगा दे चुकी कुर्सी को मोहित कर मंडी में लाने में कामयाब हुए हैं। 

डा. यशवंत सिंह परमार ने बदल डाली थी पटकथा
वर्ष 1962 में प्रदेश में गठित टैरिटोरियल परिषद को जब विधानसभा का दर्जा मिला था तो अध्यक्ष होने के नाते मंडी के वरिष्ठ नेता कर्म सिंह ठाकुर का मुख्यमंत्री बनना तय हो गया था लेकिन सरकार बनने को लिखी गई पटकथा के मुख्य सीन पर तब डा. यशवंत सिंह परमार ने जबरदस्त राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए बाथरूम में जाकर चंद क्षणों में ही कैंची चला दी थी तथा सारी की सारी पटकथा को बदल डाला था। बताते हैं कि जब मुख्यमंत्री के नाम पर अंतिम मोहर लगने जा रही थी तो परमार कर्म सिंह के कंधे पर हाथ रख कर बाथरूम ले गए तथा दोनों बाहर आए तो मंडी की किस्मत पलटा खा चुकी थी। अब 55 साल के बाद मंडी का भाग्य फिर चमका है तथा सराज के सूरमा जयराम इस कुर्सी को मंडी के लिए वापस ले आने में कामयाब हुए हैं। 

आसानी से नहीं हुई वापसी
भाजपा ने जब प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री घोषित किया था, तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि पूरे प्रदेश में 44 सीटों का जबरदस्त सैलाब लाकर खुद धूमल ही चुनाव हार जाएंगे तथा मुख्यमंत्री के लिए शीर्ष नेतृत्व को इतनी माथापच्ची करनी पड़ेगी लेकिन इस सारे घटनाक्रम में भाग्य की जय-जयकार होनी थी तथा कई बार बेवफा साबित हो चुकी मुख्यमंत्री की कुर्सी को मंडी के गले का हार बनना ही पडऩा था। घटनाक्रम में कई ऐसे मौके आए, जब कुर्सी ने जयराम को भी राम-राम कर दिया लेकिन जब महबूब सर्वगुण संपन्न हो तो प्रेयसी भला कब तक खुद पर काबू पा सकती है। मंडी इस बार एक नहीं बल्कि 2-2 दूल्हों के साथ कुर्सी को वरमाला डालने को तैयार खड़ी थी। एक ओर जयराम के हाथ में वरमाला थी तो दूसरी ओर मंडी का ही एक और युवा अजय जम्वाल कुर्सी को मंडी से बांध कर रखने के लिए तैयार किया गया था।  

1993 में भी दे गई थी दगा 
1993 में मंडी को मुख्यमंत्री की कुर्सी दूसरी बार उस समय दगा दे गई थी, जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुखराम इस कुर्सी को अपना बनाने में चूक गए थे। ऐन मौके पर मंडी के कुछ विधायकों ने चक्रव्यूह रचा तथा सुखराम उसमें उलझ कर रह गए। कौल सिंह ने भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर डोरे डालने में कोई कसर नहीं रखी लेकिन इसे भाग्य की विडम्बना ही कहेंगे कि उन पर यह करिश्माई कुर्सी कभी मेहरबान नहीं हुई तथा अब बने नए समीकरणों में कौल सिंह भविष्य में ऐसा सोचने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाएंगे। 

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