Edited By Punjab Kesari, Updated: 01 Jun, 2017 01:41 PM
मेजर विजय सिंह मनकोटिया सेना का यह मेजर 80 के दशक में राजनीति में कदम धरते ही शाहपुर के लोगों ने सिर आंखों पर बिठा लिया।
कांगड़ा (जिनेश): मेजर विजय सिंह मनकोटिया सेना का यह मेजर 80 के दशक में राजनीति में कदम धरते ही शाहपुर के लोगों ने सिर आंखों पर बिठा लिया। कांगडा की धरती का एक ऐसा सुपूत, जिसका राजनीति में जन्म किसी पार्टी कॉडर की साख के बल पर नहीं हुआ, बल्कि जिसे अावाम ने अपनी कोख से पैदा किया। उसूलों पर अडिग रहने वाले इस सवा 6 फीट कद के मेजर का सेना में रहते हुए सुनहरा इतिहास रहा। 3 युद्ध भी देखे और लड़े भी। हिमाचल की सियासत में एक ऐसी शख्सयित, जिसके लिए सरहद पर दुश्मन से जंग का अंदाज राजनीति में भी आकर नहीं बदला। जुबान पर वहीं तीखे बोल और दुश्मन पर बेखौफ सीधा स्टीक निशाना। निजी नफे नुक्सान की परवाह नहीं और न ही पद की कोई लालसा। नैतिक मूल्यों व उसूलों की खातिर समझौता नहीं तो बस फि र किसी सूरत में भी नहीं। उनके राजनीति जीवन से जुड़े हुए तमाम बिंदुओं तथा आज हिमाचल की राजनीति से जुड़े हुए तमाम सवालों को लेकर पंजाब केसरी के जिनेश कुमार नेधर्मशाला में उनसे लंबी बातचीत की।
प्रश्न: मेजर मनकोटिया कांगडा की राजनीति में एक बड़ा नाम रहा है। क्या वजह रही कि आप उंचे मुकाम को हासिल नहीं कर पाए और पिछडते रहे?
उत्तर: मैं 1982 में राजनीति में आया और वो भी आजाद ही लड़ा और चुनाव जीता। मैं किसी पहले से स्थापित पार्टी का प्रोडक्ट नहीं हूं। मैं एक सिद्धांतवादी संस्कृति से राजनीति में आया और लोगों ने मेरे चरित्र को चुना। मैं जब नैतिक मूल्यों की राजनीति पर अडिग रहा तो यही बात उन लोगों को खटकी जो मुझे अपने लिए खतरा मानने लगे। हिमाचल में टॉप पोस्ट वालों को यह लगा कि मैं उनके लिए खतरा बन सकता हूं तो उन्होंने शुरूआत से ही मुझे पीछे धकेलने में अपनी ताकत लगा दी, लेकिन मैंने इनके आगे कभी घुटने टेके। बेशक मैंने नुक्सान झेला, लेकिन मेरे पास जो चरित्र आज बचा है, उसके बूते ही आज मुझे शाहपुर के लोग इज्जत देते हैं और प्यार करते हैं। सिर्फ शाहपुर ही नहीं, बल्कि पूरे हिमाचल और बाहर के राज्यों में भी लोग मुझे इसलिए निश्छलता से प्रेम करते हैं। धक्केशाही में राजनीति में पीछे जरूर रह गया हूंगा, लेकिन अवाम के दिलों में मैं हूं और यही मेरी पूंजी भी है।
प्रश्न: आप मानते हैं कि कांग्रेस से बाहर होने के निर्णण ही आपको पछाड गया? बाकी क्षेत्रीय दलों में भी प्रवेश के साथ ही आपकी सियासी कद काठी भी छोटी होती चली गई?
उत्तर: नहीं ऐसा नहीं है। मैंने आपको कहा कि मैंने उसूलों की राजनीति की है। मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण मेरे हलके के लोगों की आवाज रहती रही है और मैं अपने हलके के लोगों के साथ फ रेब व धोखे की राजनीति नहीं कर सकता था और उन्हें लावारिस भी नहीं छोड़ सकता था। मैंने हमेशा हलके की जनता की भलाई के लिए रास्ते निकालने की कोशिश की। यही भी बता दूं कि मैं किसी पार्टी विशेष की पैदाईश नहीं रहा हूं और जब जनता ने मुझे शुरू से ही आजाद उम्मीदवार के रूप में मेरे व्यक्तित्व को देखते हुए वोट दिए तो मुझे अपनेहलके के लोगों के लिए कुछ करने में जो उचित लगा मैंने वो किया, जिससे कि लोगों का भला हो सके। व्यक्ति तौर पर अपनी भलाई देखता तो निश्चित तौर पर मैं भी एक जगह पर रहकर समझौते करते हुए आगे बढ़ता और बाकी नेताओं की तरह पद व स्वार्थों की पूर्ति की लिप्सा को पूरा करता। एक और बात के मेरे पास सरमाए दार नहीं थे, लेकिन मैंने गलत नहीं किया और मैं आज संतुष्ट हूं।
प्रश्न: राजनीतिक तौर पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से सीधे टकराव से आपको नुक्सान नहीं हुआ? क्या वजह रही कि वीरभद्र सिंह और आपके बीच सुलह नहीं हो पाई?
उत्तर: हां मुझे नुकसान हुआ, लेकिन मैंने जब भी उनके साथ टकराव लिया तो सिर्फ कांगड़ा जिले के लिए लिया। आप ही बताओं मैंने क्या बुरा किया? क्या मुझे कांगड़ा के हक की आवाज बुलंद नहीं करनी चाहिए थी। मैंने उन नेताओं की तरह नहीं रहा कि जिन्होंने वीरभद्र सिंह के आगे अपने स्वार्थ के लिए चरित्र का सौदा कर लिया। मैंने वीरभद्र सिंह के कथित प्रलोभनों के आगे पूंछ नहीं हिलाई। आज तक ऐसा होता आया है कि वीरभद्र सिंह ने अपने वर्चस्व के लिए कांगड़ा के नेताओं को ओहदे बांटकर उनकी जुबां बंद कर दी और बाद में ये नेता भी सरकारों से अपनी स्वार्थ सिद्धी में जुट गए। इसका नुक्सान यह हुआ कि कांगड़ा जिले की राजनीतिक हैसियत बड़ी होते हुए भी वीरभद्र सिंह के यहां मामूली बनकर रह गई? अब बताईए कि मैं अगर वीरभद्र सिंह के साथ सुलह कर लेता तो मैं भी सत्ता के सुख का आनंद उठाता, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। यह मेरा व्यक्तिगत नुक्सान हुआ, लेकिन मैंने कांगड़ा जिले के लोगों के विश्वास का सौदा नहीं किया। क्या सरकारों के भीतर सुनियोजित तरीके से स्थापित किए गए टांसफ र व पोस्टिंग के बदले में दलाली खाने के उद्योग का विरोध करना गलत काम रहा है? मुझे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है, लेकिन मैं पथ भ्रष्ट नहीं हुआ और आज भी पर्दाफाश करने का दम रखता हूं।
प्रश्न: आप उम्रदराज हो गए हैं। अब फिर चुनाव लडेंग़े या नहीं?
उत्तर: जी हां। इस बार भी चुनाव लडूंगा, क्योंकि मेरे हलके के लोगों का यही निर्णय है। फि लहाल सन्यास लेने का कोई इरादा नहीं क्योंकि एक बार फि र पहले मैंने सक्रिय राजनीति से खुद को अलग किया था तो मेरे हलके के लोगों को दुख मुझसे नहीं देखा गया और मैं एक बार फि र जनता की लड़ाई लडऩे के लिए आ गया और इस बार फि र लडूंगा। एक चुनौती मेरी इस बार भी अपने टॉप पोस्ट से लेकर नीचे तक है कि अगर किसी भी नेता में हिम्मत है तो मुझ पर उंगली उठाकर दिखाएं। 35 वर्ष के राजनीतिक जीवन में मुझ पर कोई दाग नहीं है और यही मेरी दौलत भी है और यही शोहरत भी और मैं यह भी बता दूं कि मुझ पर सीधी उंगली उठाने से डरने वाले और पीठ पीछे साजिशें करने वाले लोगों की डायरियां मेरे पास रिकार्ड में है। चुनाव आने दीजिए। एक एक सबके चेहरे से नकाब उतारूंगा।
प्रश्न: आपने वीरभद्र सिंह के खिलाफ सी.डी. कांड जैसे विस्फोट किए। मामले कोर्ट तक गए और वहां समझौते भी हुए। आज कैसे रिश्ते हैं आपके और वीरभद्र सिंह के बीच?
उत्तर: मैं जी हुजूरी नहीं करता। मैं हिमाचल की राजनीति में कांग्रेस में रहते हुए पहला ऐसा लीडर रहा हूं जिसने वीरभद्र सिंह का कई बार पर्दाफाश किया। उनकी और उनकी पत्नी से जुड़े हुए तथा कथित भ्रष्टाचार की सी.डी. को मैंने ही सार्वजानिक किया, इसलिए किया क्योंकि भ्रष्टाचार सहन नहीं होता है, लेकिन वीरभद्र सिंह की मुझ पर रंजिश का नतीजा देखिए कि उनके घेराव के लिए उसी दौर में जमा हुए हम लोगों पर लाठीचार्ज करवाया गया और मुझे व मेरे साथियों को 32 दिन जेल में रखा गया, लेकिन यह सत्य की ही जीत हुई कि कोर्ट से हम सभी बाइज्जत बरी हुए। अगर मैं वीरभद्र सिंह के खिलाफ गलत बोलता था तो आज उनके साथ ही कोर्ट कचहरियों के हालात क्यों बने हुए हैं और मेरे साथ क्यों नहीं? लेकिन हकीकत यह है कि जैसी करनी वैसी भरनी। मैंने कभी टिकट के लिए वीरभद्र सिंह के पास हाथ नहीं जोड़े और न ही किसी अपने निजी स्वार्थ के लिए। पिछली बार टिकट के लिए भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने वीरभद्र सिंह को कहा कि मुझे पार्टी टिकट पर उतारे। वीरभद्र सिंह ने मुझे फोन पर बुलावा दिया और कहा कि आप ही लडेंगे तो मैंटिकट पर लड़ा, लेकिन वीरभद्र सिंह का विश्वास करना, इसलिए मुश्किल होता है क्योंकि मेरी हार के बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव में हार तक मुझे नहीं पूछा। लोकसभा में हारे तो फिर मेरे साथ लंच और नाश्ते की उन्हें याद आई और फिर मुझे पर्यटन निगम के उपाध्यक्ष पद का ऑफर दिया। मैंने स्वीकार किया क्योंकि हलके की जनता के काम करवाने के लिए मेरा सरकार के साथ सहयोग करना जरूरी था, ताकि यहां के लोग विकास में पिछड़े नहीं। अब अंदाजा लगा लीजिए कि वीरभद्र सिंह के साथ मेरे रिश्ते आज कैसे हैं।
प्रश्न: आप अपनी हार की वजह किसे मानते हैं? हमले में जातिगत धु्रवीकरण या भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का बंटा हुआ वोट?
उत्तर: देखिए, मैं लंबे समय तक जनता से कटा रहा। सामान्य सुख दुख में तो मैं लोगों से संवाद रखता था, लेकिन हलके में सक्रिय मोर्चे बंदी में नहीं रहा, जिससे एक यह फ र्क पड़ा। इसके बावजूद यहां की जनता ने मुझे पर अपना प्यार दिलो जान से उडेला। मेरे पास अपने हलके में काम करने के लिए सिर्फ 18 दिन ही बचे थे, जिनमें मैंने कांगडा जिले के बाकी हिस्सों में भी प्रचार किया और अपने हलके में भी। दूसरी बात यह कि मेरी गैर हाजिरी में यहां से एक ऐसे व्यक्ति को टिकट दे दिया गया था, जिसने पार्टी का छवि को अपने कारनामों के कारण बेहद बड़ा नुक्सान पहुंचाया था। सियासी अदारों में चाटुकारिता के बूते आज के दौर में सिफ धन बल जुटाने में जुटे हुए इस नेता ने बड़े नेताओं के आशीर्वाद से मेरे खिलाफ काम किया। असल में वीरभद्र सिंह यह तो चाहते थे कि कांगडा जिले में मुझे साथ लेकर बाकि सीटों पर विजय हासिल की जाए, लेकिन वह दिल से यह नहीं चाहते थे कि मैं अपनी खुद की सीट पर जीतूं। इसलिए नैतिक तौर पर बुरी तरह से गिरे पड़े लोगों ने मुझे हरवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज प्रदेश में जो दलाली खाने का धंधा चल रहा है, उसके अगुआ वही हैं। आज लोग यूं ही सवाल नहीं कर रहे हैं कि कुछ वर्ष पहले कांग्रेस के जिन नेताओं के पास खाने को रोटी और पहनने को कपड़े नहीं थे, वे रातों रात कैसे करोड़ों के मालिक हो गए?
प्रश्न: आपको सियासी घर शाहपुर में ही घेरे रखने की कोशिशें में कंाग्रेस के भीतर ही बाकि कोणों से भी अक्सर देखी जाती हैं।
उत्तर: चिंता न करें। यह उपर वालों के टुकडों पर पलकर कांगडा जिले की हैसियत का सौदा करने वाले ज्यादा दिन तक राजनीतिक पटल पर नजर न हीं आएंगे। जनता इनकी हकीकत जान चुकी है और रही सही कसर अब वह चुनाव के दिनों में पूरी कर देंगे। आका से लेकर इनके काकों तक सभी के चेहरों से शरीफ का नकाब हटाउंगा।
प्रश्न: क्या कारण है कि आज तक कांगड़ा जिले का कोई नेता कांगड़ा के हक पर अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पाया?
उत्तर: यह सीधा सा जबाव है। वीरभद्र सिंह ने कांगडा जिले के नेताओं को अलग-अलग प्रलोभन देकर उन्हें स्वार्थों की पूर्ति में ही उलझाए रखा और ऐसे नेताओं को पदों व ओहदों से ही संतुष्ट करा दिया जो कांगडा जिले के लिए अभिशाप बन गई। इन मतलबखोर नेताओं ने कांगड़ा के हितों का अपने हित्तों के लिए सौदा कर लिया, वरना आज तक ऐसा क्यों है कि एक जिले से 16 विधायक होने के बावजूद शिमला सचिवालय में वीरभद्र सिंह से मिलने वाले कांगडा जिले के ये तथा कथित बड़े रूतबे वाले नेता दरवाजे के बाहर पंक्ति में घंटों इंतजार में पसीना बहाते हैं? लेकिन जब समझौता करेंगे तो इज्जत न तो नेता को मिलेगी और न ही इन्हें चुनकर शिमला भेजने वाली जनता का ही कोई रूतबा बन पाएगा।
प्रश्न: कांगडा इतना महत्पूर्ण है तो कांगडा से प्रदेश अध्यक्ष क्यों नहीं?
उत्तर: इस तरह के निर्णय कांग्रेस हाईकमान को ही करने होते हैं कि उन्हें किस जिले को कितनी अहमियत देनी है।
प्रश्न: आप आरोप लगाते हैं कि वीरभद्र सिंह की सरकार में कोई सुनता नहीं है, तो फि र आपने उपाध्यक्ष का पद छोड़ क्यों नहीं दिया?
उत्तर: वीरभद्र सिंह ने मुझे कुछ वर्ष पूर्व लोकसभा चुनाव की हार के बाद मेरे हलके में ही नाश्ते पर बुलाया था तो उसी दौरान उन्होंने मुझे कहा कि पिछली बातें भूल जाओ और वह मुझे सरकार में उपाध्यक्ष पद रहे रहे हैं। मैंने हलके में लोगों की भावनाओं और उन्हें विकास की दृष्टि से आगे रखने के लिए पद मंजूर किया, लेकिन यह सच है कि निगम में निर्णय वीरभद्र सिंह के ही लागू होते हैं मेरे नहीं। मेरे तो सुझाव तक नहीं सुने गए। मैं पद पर इसलिए बना रहा हूं कि मैं सरकार से अपने हलके के लोगों के लिए जरूरी सहयोग ले सकूं और मैं बीच में इसमें कामयाब भी हुआ हूं जब मैंने अपने हलके में एस.डी.एम. का दफतर खुलवा दिया और तब यह बेहद जरूरी हो गया जब यहां से चुनी हुई विधायक लोगों को यह कहकर निराश करके लौटाती रही कि उनकी सरकार नही है और उनकी चलती नहीं है और हलके से सरकार में कथित तौर पर रौब रखने वाला नेता अपनी कमाई के धंधे में जुटा रहा, तो मेरी तो यह नैतिक जिम्मेदारी बनती थी कि मैं सरकार के बुलावे पर पद लूं और हलके के लोगोंके लिए कुछ करूं।
प्रश्न: वीरभद्र सिंह पर लगे हुए आरोपों पर आपको क्या कहना है?
उत्तर: मैं क्या कहूं पूरी दुनिया तो कह रही है। विपक्ष कह रहा है कि इतने संगीन आरोप लगनेओर जमानत पर होनेके बावजूद वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री जैसे पद का मोह नहीं छोड़ रहे हैं। मेरे हिसाब से उनका यह कदम नैतिकता की परिभाषा से बाहर है और मैं तो अपना स्टैंड बताउं कि मुझे वीरभद्र सिंह के कुछ लोग उन पर ई.डी. से लेकर सी.बी.आई. तक की कार्रवाई के बाद फोन करके बोलते थे कि मैं बाकी मंत्रियों के साथ मिलकर वीरभद्र सिंह के पाक साफ होने और पूरी कार्रवाई राजनतिक प्रतिशोध की भावना से होने के बयान मीडिया को दूं, लेकिन मैंने हर बार मना किया, क्योंकि मेरा जमीर नहीं बोलता है कि मैं वीरभद्र सिंह पर लगे हुए आरोपों पर उनका बचाव करूं। अब तो स्थिति ऐसी है कि वह जमानत पर हैं और विपक्ष के भारी दबाव के बावजूद वह अभी भी पद पर टिके हुए हैं और हां पद की परवाह पहले भी नहीं कि और न ही आज करूंगा। वीरभद्र सिंह कल हटाना चाहें तो आज ही हटा दें मुझे।
प्रश्न: कांग्रेस में अगले मुख्यमंत्री कौन? और पार्टी ने ऐसा क्या किया जिससे सरकार दोबारा बने?
उत्तर: नेहरू गांधी के जमाने की कांगेस पाटी में अब कुछ सालों से दलालों की संस्कृति हावी हो गई है। इस पार्टी को नेताओं के नेतृत्व की जगह दलालों ने बंधक बना रखा है और इसका बड़े स्तर पर नैतिक पतन हुआ है। मैं कहता हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छप्पन के इंच के सीने पर गाली देने वाले कांग्रेस के दलाल अपना सीना क्यों न फुलाकर बड़ा कर लेते? अनुमान लगाई, जिस प्रदेश में पार्टी का अध्यक्ष छायावाद में खुद को ईमानदार व अपने मुख्यमंत्री को सरेआम कथित तौर पर बेइमान बताएं वो पार्टी किस दिशा में जा रही है। अच्छा होता अगर पार्टी में नरेंद्र मोदी जैसे चेहरे नेतृत्व के लिए आते तो बात बनती। यह भी जोड़ लीजिए कि जिस पार्टी व उसकी सरकार में एक विधायक पर पहले उसके ही जिले का नेता 200 करोड़ रूपए के घोटाले का आरोप लगाता हो और विधायक पलटकर उस नेता पर 800 करोड़ रूपए के गबन का आरोप लगाा रहो तो उस सरकार में चरित्र कहां बचा हुआ है? ऐसे में अभी भविष्य में क्या होगा, इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस को अब आखिरी सांसों से जीवन की ओर लौटना है तो चरित्र को ही चेहरा बनाना पड़ेगा न कि भ्रष्टाचार के दल-दल में फंसे हुए नेताओं को, जिनके चेहरे बेशक उजले दिखते हैं कि आईने में इन चेहरों पर बदनुमान दाग हैं।
प्रश्न: भाजपा में जाएंगे?
उत्तर: मेरेलिए कांग्रेस व भाजपा दोनों में ही मुसीबतें दिखती हैं, क्योंकि मैं उसूलों से समझौता कर नहीं सकता हूं। जहां मुझे लगेगा कि चाल चरित्र चेहरा साफ है, वहीं रहूंगा आजीवन।