बलि के साथ नहीं हुआ कुल्लू दशहरा उत्सव का समापन, जानिए क्यों

Edited By Punjab Kesari, Updated: 07 Oct, 2017 01:24 AM

kullu dussehra celebration not ended with sacrifice  know why

पी.एफ.ए. कसौली से सोनाली पूरेवाल द्वारा शुक्रवार शाम को पंजाब केसरी कुल्लू कार्यालय को प्रेषित पत्र जिसमें कुल्लू दशहरा के लंका उत्सव में पशु बलि नहीं हुई....

कुल्लू: पी.एफ.ए. कसौली से सोनाली पूरेवाल द्वारा शुक्रवार शाम को पंजाब केसरी कुल्लू कार्यालय को प्रेषित पत्र जिसमें कुल्लू दशहरा के लंका उत्सव में पशु बलि नहीं हुई के स्पष्टीकरण में पंजाब केसरी द्वारा छानबीन की गई। छानबीन में पाया गया कि नगर परिषद कुल्लू की ओर से उच्चतम न्यायालय द्वारा पशु बलि की स्वीकृति पर अंतरिम राहत के आदेश 20 अगस्त, 2017 को प्राप्त हुए थे। इसी अंतरिम राहत के आदेश को आधार बनाकर हमने अपने समाचार पत्र में समाचार प्रकाशित भी किया था। 

उच्चतम न्यायालय के विपरीत है प्रेषित पत्र का आधार
पी.एफ.ए. कसौली से सोनाली पूरेवाल द्वारा शुक्रवार शाम को प्रेषित पत्र का आधार उच्चतम न्यायालय के आधार के विपरीत है क्योंकि उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार संबंधित कुल्लू नगर परिषद ने पशु बलि देने के लिए निर्धारित स्थान पर एक छोटा सा स्लाटर हाऊस भी तैयार किया था, साथ ही नगर परिषद ने उच्चतम न्यायालय के अंतरिम राहत संबंधी आदेशों की अक्षरश: पालना के लिए रघुनाथ जी के छड़ीबदार महेश्वर सिंह को विस्तृत जानकारी भी दी थी लेकिन 2 दिन पहले उच्च न्यायालय (हिमाचल प्रदेश) के पुराने आदेश को आधार बनाकर नगर परिषद ने पशु बलि पर यथावत रोक की बात कही है। अत: पंजाब केसरी ने उच्चतम न्यायालय के आदेशों को आधार बनाकर समाचार प्रकाशित किया था जबकि आज उच्च न्यायालय के पुराने आदेशों के अनुसार निर्धारित स्थान पर पशु बलि नहीं हुई। 

रघुनाथ जी के अस्थायी शिविर के पास हुई विशेष पूजा-अर्चना  
इससे पहले दोपहर बाद एक बजे से रघुनाथ जी के अस्थायी शिविर के पास विशेष पूजा-अर्चना शुरू हुई और भारी संख्या में लोग जुटने लगे। कई देवी-देवताओं के रथ भी लाव-लश्कर सहित रघुनाथ जी के अस्थायी शिविर के पास पहुंच गए। रास्ते के दोनों ओर अस्थायी शिविर से कैटल मैदान तक और रथ मैदान तक दोनों तरफ सुरक्षा कर्मी चेन बनाकर खड़े हो गए। इस गुफ्तगू के बीच समूचा ढालपुर मैदान जय श्रीराम के उद्घोष से गुंजायमान रहा और लंकाबेकर में लंका दहन की रस्म को निभाया गया। ठीक 3.38 बजे राज परिवार के सभी लोग अन्य देवी-देवताओं के रथों व देव कारकूनों के साथ वापस कैटल मैदान लौटे। रथ यात्रा के समापन के साथ उत्सव संपन्न हो गया और लोग इस बात को लेकर चर्चा करते ही रह गए कि बलि हुई या नहीं। अंतत: माना गया कि बलि नहीं हुई। 

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