कुल्लू की सराज घाटी में 2 दिन तक चली विश्व की सबसे बड़ी दैत्य संसद, एक बार फिर हुआ देव व दैत्यों के बीच महायुद्ध

Edited By Updated: 16 Jan, 2017 06:49 PM

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विश्व में दैत्यों (राक्षस) की सबसे बड़ी संसद और इसमें 2 दिन तक चला दैत्य राज।

कुल्लू : विश्व में दैत्यों (राक्षस) की सबसे बड़ी संसद और इसमें 2 दिन तक चला दैत्य राज। सुनने में बेशक यह अटपटा लग रहा हो और शायद आज के आधुनिक जमाने में ऐसी संसद पर विश्वास करना भी मुमकिन नहीं है किंतु यह एक कटु सत्य है कि जिला कुल्लू की सराज घाटी में विश्व की सबसे बड़ी दैत्य संसद का आयोजन हुआ और 2 दिन तक देवी-देवताओं का नहीं बल्कि दैत्यों का राज चला। दैत्यों के इस साम्राज्य में न तो कोई शर्म थी और न ही संस्कार। अश्लील जुमलों के बीच सराज घाटी गूंजती रही और राक्षस नृत्य चलता रहा।

धधकते अंगारों में कूद पड़े सैंकड़ों मुखौटाधारी
 यही नहीं, राक्षस रूपी मुखौटाधारी धधकते अंगारों के बीच कूदते रहे और सैंकड़ों लोग इसके साक्षी बने, वहीं पुजारी दिनेश गौतम ने जानकारी देते हुए बताया कि देवभूमि कुल्लू की संस्कृति व परंपरा अनूठी है और इस अनूठी संस्कृति के बीच ही इस दैत्य संसद की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है। दरअसल इस दैत्य संसद को देवता व दैत्यों के युद्ध से भी जोड़ा जाता है। परंपरा के अनुसार माना जाता है कि जब देवता व राक्षसों का युद्ध हुआ था तो दैत्यों की पराजय हुई थी। तब दैत्यों ने देवताओं से यह मांग की थी कि वर्ष भर में 363 दिन वे धरती को छोड़ देंगे और उन्हें सिर्फ  वर्ष में 2 दिन का साम्राज्य दिया जाए। 

 हर गांव में होता है मुखौटा नृत्य 
देव व दैत्यों के बीच हुए युद्ध में हारे हुए दैत्यों के प्रतीक मुखौटों के रूप में आज भी देवभूमि में धरोहर के रूप में विराजमान हैं। इन 2 दिनों में इन दैत्य रूपी मुखौटों की लोग पूजा करते हैं और दैत्यों के इस महाकुंभ का आयोजन होता है। सराज घाटी की बूंगा व गोपालपुर कोठी के हर गांव में मुखौटा नृत्य होता है और अंतिम दिन सभी गांवों के मुखौटाधारी व सैंकड़ों लोग कोटला गांव में पहुंचते हैं तथा यहां पर दैत्य संसद का आयोजन होता है। बाकायदा मुखौटाधारी दैत्यों का मिलन होता है और सैंकड़ों मुखौटाधारियों का नृत्य अश्लील जुमलों के बीच होता है। 

मुखौटाधारी दिखाते हैं अपनी शक्ति के चमत्कार 
यही नहीं, अंत में देव व दैत्यों का युद्ध होता है और फिर से एक बार दैत्यों को हार स्वीकार करके धरती लोक छोडऩा पड़ता है और देवताओं का साम्राज्य स्थापित किया जाता है। इस बीच कई मुखौटाधारी अपनी शक्ति से कई चमत्कार दिखाते हैं तथा लोग दांतों तले उंगली डालकर यह चमत्कार देखते हैं। अधिकतर मुखौटाधारी धधकते अंगारों में नंगे पांव कूद पड़ते हैं और सारी अलाव को बुझा डालते हैं। इस घटना में मुखौटाधारियों के पांव व शरीर को अग्रिदेव छू भी नहीं पाते हैं। इस पर्व को देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी और ये लोग इस पर्व के गवाह बने। 

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