Edited By Punjab Kesari, Updated: 26 Dec, 2017 11:44 AM
मुख्यमंत्री पद के लिए चले सियासी चक्रवात से बाहर आकर सत्ता के सिंहासन का ताज पहनने को तैयार जयराम ठाकुर को आगे चुनौतियों के सागर को पार करना है। गुरबत में बीते बचपन से लेकर उम्र के इस पड़ाव पर राजनीति की इस मंजिल तक पहुंचकर लंबे समय तक टिके रहने के...
बिलासपुर: मुख्यमंत्री पद के लिए चले सियासी चक्रवात से बाहर आकर सत्ता के सिंहासन का ताज पहनने को तैयार जयराम ठाकुर को आगे चुनौतियों के सागर को पार करना है। गुरबत में बीते बचपन से लेकर उम्र के इस पड़ाव पर राजनीति की इस मंजिल तक पहुंचकर लंबे समय तक टिके रहने के लिए जयराम को अब और कड़े संघर्ष की राहों से गुजरने के लिए तैयार रहना होगा। पिछली सरकार की देनदारियों के हजारों करोड़ रुपए को उतारने के अलावा राज्य की राजनीति की दिशा व दशा में बड़े दबाव समूहों की संतुष्टि भी कठिन परीक्षाओं के रूप में सामने खड़ी है।
ये रहेंगी प्रमुख चुनौतियां
- पिछली सरकार की गलतियों से बिगड़े हालातों को पटरी पर लाना होगा। इसमें कानून व्यवस्था सबसे प्रमुख रहेगी। 52 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज से मुक्ति पाने के लिए प्रयास शुरू करने होंगे।
- जयराम 5 बार विधायक चुने गए हैं लेकिन बतौर मुख्यमंत्री यह उनका पहला तजुर्बा होगा। लिहाजा सरकार के संचालन में उन्हें जल्द परिपक्व होना पड़ेगा।
- प्रशासनिक अमले को संभालना भी उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इनमें आई.ए.एस., एच.ए.एस. अधिकारियों को उनकी विशेष योग्यता के साथ विभिन्न विभागों व जिलों में तैनाती में गंभीरता शामिल है।
- सरकार के सामने हाईकोर्ट से रद्द की गई रिटैंशन पॉलिसी पर अगले समाधान के लिए रास्ते निकालने होंगे।
- सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए लंबित नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करना भी उनके लिए एक बड़ी चुनौती रहेगी। केंद्र ने इसे लागू कर दिया है। पंजाब सरकार ने इसे लागू करने के लिए कमेटी का गठन कर दिया है।
- पूर्व सरकार की ओर से राज्य में चुनाव से एक वर्ष पहले से लेकर आखिरी तक की अरबों रुपए की घोषणाओं को धरातल पर लाना होगा।
- प्रदेश के नए मुख्यमंत्री को शक्ति केंद्रों से भी समन्वय बनाना होगा। इसमें केंद्र व राज्य के बीच संबंधों की मजबूत डोर भी शामिल है।
- मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले कई वरिष्ठ नेताओं को साथ लेकर चलना भी एक बड़ी चुनौती नए मुख्यमंत्री के लिए रहेगी।
- वर्तमान में राज्य में बेरोजगारी एक सबसे बड़ा मुद्दा है। भाजपा ने इस मुद्दे को चुनावों में भुनाते हुए सरकार बनाई थी। लिहाजा बेरोजगारी दूर करने के लिए उन्हें जल्द अहम कदम उठाने होंगे।
- भाजपा सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चुनाव लड़ी है। लिहाजा भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरैंस की नीति पर गंभीरता बरतना भी सबसे बड़ी चुनौती है।
- प्रधानमंत्री ने राज्य चुनावों में माफियाराज पर जमकर हमला बोला था। लिहाजा, पूरे प्रदेश में फैले माफिया राज्य से निपटना और सुरक्षा एजैंसियों के मनोबल को बनाए रखना भी एक कड़ी चुनौती होगी।
पहले धूमल, नड्डा फिर जयराम
सी.एम. कैंडीडेट के उम्मीदवार धूमल के चुनाव हारने के बाद धर्म संकट खड़ा हो गया था। हारने के बाद धूमल के समर्थकों ने भी उन्हें सी.एम. बनाए जाने की पैरवी शुरू कर दी। इसी बीच जयराम का नाम आगे आया। दोनों पक्षों में टकराव तक सामने आ गया। इसके बावजूद पार्टी हाईकमान पर दबाव बढ़ता गया। धूमल और जयराम पक्षों में टकराव को देखते हुए पहले जे.पी. नड्डा का नाम सुर्खियों में आया। जे.पी. का राजयसभा का कार्यकाल अप्रैल में खत्म होने को है और वह हिमाचल से ही पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और केद्र में मंत्री भी हैं। सूत्रों ने यहां बताया कि नड्डा के नाम पर सहमति हो गई थी और रविवार को उनको ही शिमला में सी.एम. पद के चयन के लिए आना तय हुआ था लेकिन शनिवार की रात को ही अचानक मामले में फिर मोड़ आया।
सूत्र बताते हैं कि नड्डा के मामले में वही फैक्टर अवरोध के रूप में उनके विरोधियों की ओर से पेश किया जो धूमल के लिए कहा गया कि वह हारे हुए सी.एम. नहीं बन सकते हैं। नड्डा के लिए तर्क दिया गया कि वह भी क्योंकि विधायकों से बाहर के हैं तो उन्हें भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाए। हालांकि इस तर्क को नैतिकता की दृष्टि से हाईकमान ने सही माना लेकिन सूत्रों का कहना है कि यही तर्क नड्डा के मुख्यमंत्री बनने की राह में रोडा बन गया और तर्कों की इस परिभाषा को गडऩे में नड्डा के खिलाफ कथित तौर पर पांडे फैक्टर की भूमिका काम कर गई। सूत्र बताते हैं कि जयराम का ससुराल पक्ष आर.एस.एस. की बेहद करीबी रिश्तेदारी में है। खुद जयराम की धर्मपत्नी डा. साधना सिंह भी प्रचारक रह चुकी है। सूत्र बताते हैं कि विधायक के रूप में बडी योग्यता व जयराम के बहुपक्षीय समर्थन के आगे नड्डा व धूमल कहीं नहीं टिक पाए।