हिमाचल में धन बल के दम पर बनते हैं विधायक: सिंघा

Edited By Punjab Kesari, Updated: 28 Jun, 2017 09:55 AM

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वामपंथ की दमदार शख्सियत, लड़ाकू तेवर और आम जन के हक में संघर्ष के मोर्चे पर डटे रहने के व्यक्तित्व का नाम है राकेश सिंघा।

वामपंथ की दमदार शख्सियत, लड़ाकू तेवर और आम जन के हक में संघर्ष के मोर्चे पर डटे रहने के व्यक्तित्व का नाम है राकेश सिंघा। छात्र राजनीति से निकला साम्यवादी विचारधारा लिए पहाड़ों का यह जुझारू व्यक्ति हिमाचल प्रदेश में वामपंथियों की मजबूत आवाज के तौर पर जाना जाता है। सत्तर के दशक में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में प्रगतिशील धारा से जुड़कर छात्र राजनीति में आए। वहां विचारधारा की ऐसी बुनियाद डाली कि अब तक लाल दुर्ग अभेद्य ही रहा है। वामपंथी छात्र संगठन का वर्चस्व आज भी बरकरार है। बाद में जनता के मुद्दों पर संघर्षों के बूते राज्य विधानसभा तक पहुंचे। जिस नब्बे के दशक में देश में उदारवाद के द्वार खुले, उसी दशक में वह शिमला के विधायक बने लेकिन उसके बाद न तो तेवर वाले कामरेड दोबारा विधायक बन पाए और न ही मार्क्सवाद की वैज्ञानिक विचारधारा हिमाचल में तीसरी वैकल्पिक राजनीतिक ताकत बन पाई। 


बिना किसी मेहनत के कांग्रेस को मिलता रहा प्रशिक्षित काडर
कांग्रेस ने इस विचारधारा को राज्य में टिकने नहीं दिया। शिक्षण संस्थाओं खासकर शिक्षा के सर्वोच्च संस्थान विश्वविद्यालय में मार्क्सवाद की विचारधारा युवाओं को आकर्षित करती रही। यहां बड़ा काडर तैयार होता रहा लेकिन बाद में यह प्रशिक्षित काडर बिना किसी मेहनत के कांग्रेस को मिलता रहा। पिछले नगर निगम चुनाव में शिमला की जनता ने लाल सलाम किया था लेकिन यह सलाम हिमाचल नहीं कर पाया है। क्यों कामरेडों को राज्य में सियासी जमीन नहीं मिल सकी है? क्यों इनका दायरा शिमला तक ही सीमित है? इन तमाम सवालों को लेकर हमारे रमेश सिंगटा ने माकपा के राज्य सचिव रहे कामरेड राकेश सिंघा से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश।


हिमाचल में वामपंथी तीसरी ताकत नहीं बन पाए हैं? माकपा ने जनता से जुड़े मुद्दों पर छिटपुट जगहों पर ही आंदोलन किए हैं। बड़ा प्रदेशव्यापी आंदोलन क्यों खड़ा नहीं कर पाए हैं? 
-मैं मानता हूं कि हिमाचल में जो भी आंदोलन हुए हैं, वे पर्याप्त नहीं हैं। आज आम आदमी यह समझता है कि जिस दल की सरकार बनेगी, वही विकास करवा सकती है। लोगों को लगता है कि अकेला विधायक माकपा का जीत भी गया तो कैसे विकास करवाएगा? ऐसी सोच जनता की बनी है। चाहे इसके कोई भी कारण हों परंतु इस नजरिये को बदलने की जरूरत है। अभी हम कुछ पॉकेट में हैं। हमें आगे निकलना होगा। आंदोलन का फैलाव करना होगा। जिस दिन लोगों को लगेगा कि ये भी सरकार बना सकते हैं, उस दिन वैसा ही करिश्मा होगा, जैसा दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने किया है।  


माकपा कांग्रेस और भाजपा दोनों से बराबर वैचारिक दूरी बनाए रखने के दावे करती है लेकिन हिमाचल में आपकी पार्टी की विचारधारा कांग्रेस के करीब रही है। माकपा नेताओं जिनमें आप भी शामिल हैं, मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के करीबियों में माने जाते हैं। क्या ये बात सही है?
-विचारधारा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। मैं और मेरी पार्टी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के करीब नहीं हैं बल्कि वाम धारा कांग्रेस की विचारधारा से मिलती-जुलती है। इन दोनों में काफी समानताएं हैं। कई कॉमन प्वाइंट हैं। आप कह सकते हैं, वाम कांग्रेस के करीब है।  


मुख्यमंत्री के कथित भ्रष्टाचार केस को लेकर आपकी पार्टी खामोश रही। क्या आप सी.बी.आई. और ई.डी. के माध्यम से चल रहे केसों को करप्शन नहीं मानते हैं? आप वीरभद्र सिंह के प्रति उदार क्यो हैं? या फिर इसके पीछे कोई पावर पॉलिटिक्स है?
-हम मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के प्रति न तो उदार हैं और न ही खिलाफ? उनके करप्शन को हम नोट करते हैं। यानी हमारी पार्टी ने इसका कड़ा संज्ञान लिया है लेकिन हम इस करप्शन के खिलाफ बड़ा अभियान नहीं चलाते हैं। हम जनता को राहत देने के लिए अभियान चलाते हैं। किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं। हां यह बात जरूर है कि शासक वर्ग की 2 प्रमुख पार्टियां सत्ता में आने और बने रहने के लिए क्रप्ट साधनों का इस्तेमाल करती हैं।  


आपकी पार्टी की छवि घेराव करने वाली पार्टी के तौर पर बन रही है। कहीं भी किसी का भी घेराव कर देते हैं। क्या इससे लोगों के बीच गलत छवि निर्मित नहीं हो रही है?
-हमने कहा कि माकपा गैर-संसदीय तरीकों को तवज्जो देती है। जहां भी शोषण होगा, वहां हम शोषण के खिलाफ आवाज उठाएंगे। हम सिस्टम में बदलाव लाना चाहते हैं। लोकतांत्रिक तरीके से यह बदलाव संभव है। क्रांति लाने के लिए कदम भी तो क्रांतिकारी उठाने होंगे। जहां तक चुनाव का सवाल है तो आज ज्यादातर विधायक धनबल के दम पर बनते हैं। चुनाव लड़ने के लिए काफी धन चाहिए। माकपा ऐसे हथकंडों को नहीं अपनाती है और न ही झूठे सब्जबाग दिखाती है।


विधानसभा की कितनी सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं? क्या किसी दल के साथ गठजोड़ भी संभव है?
- माकपा और भाकपा 33 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इसके अलावा गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस दलों के साथ मोर्चा गठित करने का विकल्प खुला है। कौन-कौन सी सीटों से लड़ेंगे हमने यह भी लगभग तय कर दिया है। हालांकि अभी चुनाव के लिए वक्त है।


सरकार का आरोप है कि हिमाचल में पावर प्रोजैक्ट के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा सीटू है। सरकार का आरोप है कि माकपा सीटू के जरिये धन उगाही करती है? इसमें कितनी सच्चाई है।
-असल में कांग्रेस और भाजपा खुद कंपनियों से चंदा एकत्र करती हैं। ये पूंजीपतियों की ही तो पार्टियां हैं। पावर कंपनियां भी तो बड़े घरानों की हैं। ये मजदूरों के हितों की नहीं शासक वर्ग के हितों की हिमायती हैं। सीटू मजदूरों के हितों की लड़ाई लड़ती है। हिमाचल के संसाधन कंपनियों के हाथों में गिरवी हो गए हैं। सीटू पर उगाही के आरोप लगाना सही नहीं है।  


आपने जन्मभूमि को ही कर्मभूमि बनाया है। क्या आपको नहीं लगता है कि ठियोग-कुमारसैन की बजाय आपके लिए शिमला ज्यादा सुरक्षित सीट है?
-मैं कहां से चुनाव लड़ूंगा, यह मेरी पार्टी तय करेगी। कौन उपयुक्त है, कौन नहीं, इसका निर्धारण उचित वक्त पर होगा। फिलहाल अपने विधानसभा क्षेत्र में किसानों, बागवानों से जुड़े मुद्दों को लेकर लड़ाई लड़ रहा हूं। यह लड़ाई चुनाव तक महदूद नहीं है। जहां भी जुल्म होगा, राकेश सिंघा इसके खिलाफ खड़ा होगा।

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