हिमाचल विधानसभा चुनाव: अब वीरभद्र और सुखराम पार्ट-टू शुरू

Edited By Punjab Kesari, Updated: 16 Oct, 2017 09:33 AM

himachal assembly election now virbhadra and sukhram part to start

हिमाचल की राजनीति में वीरभद्र सिंह और पंडित सुखराम के बीच सियासी टकराव का इतिहास पुराना है लेकिन ताजा घटनाक्रम ने प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। देश में पहली बार इतनी लंबी पारी खेलने वाले नेता उम्र के इस पड़ाव पर एक-दूसरे से फिर भिड़ने को...

मंडी (पुरुषोत्तम शर्मा): हिमाचल की राजनीति में वीरभद्र सिंह और पंडित सुखराम के बीच सियासी टकराव का इतिहास पुराना है लेकिन ताजा घटनाक्रम ने प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। देश में पहली बार इतनी लंबी पारी खेलने वाले नेता उम्र के इस पड़ाव पर एक-दूसरे से फिर भिड़ने को आतुर हैं। वीरभद्र और सुखराम दोनों ही राजनेता 5 दशक से भी अधिक का समय सक्रिय राजनीति में गुजार चुके हैं और दोनों के बीच वर्चस्व की जंग शीतयुद्ध की तरह है, जो कभी भी राजनीति में तूफान खड़ा कर देती है। सुखराम और वीरभद्र के बीच सियासी टकराव उस समय से शुरू हुआ है जबसे सुखराम ने मंडी से मुख्यमंत्री की दावेदारी पेश करनी शुरू कर दी। 


कुछ विधायकों का समर्थन न जुटा पाने की वजह से सुखराम मुख्यमंत्री नहीं बन पाए
हालांकि सुखराम को प्रदेश की राजनीति से बाहर कर केंद्र में भेजा गया, मगर वहां से वे केंद्रीय मंत्री बन और भी सशक्त होकर उभरे। 1993 में उन्होंने 22 विधायकों के साथ चंडीगढ़ में प्रैस वार्ता कर अपनी दावेदारी पेश कर दी थी, मगर अपने ही जिले के कुछ विधायकों का समर्थन न जुटा पाने की वजह से सुखराम मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। इसके बाद संचार घोटाले की वजह से कांग्रेस से बाहर होने के बाद सुखराम ने हिमाचल विकास पार्टी का गठन कर 1998 में प्रदेश के इतिहास में पहली बार भाजपा के साथ गठबंधन सरकार बनाकर वीरभद्र को सत्ता से बाहर कर दिया। हालांकि, सुखराम ने अपनी पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस का कांग्रेस पार्टी में विलय कर घर वापसी कर ली और मंडी संसदीय क्षेत्र से प्रतिभा सिंह को विजयी भी बनवाया, मगर वीरभद्र और सुखराम के रिश्तों में आई दरार अब भी नहीं भर पाई। 


अदालती झमेलों के चलते सुखराम को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा
सुखराम को अदालती झमेलों के चलते अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। अपितु उन्होंने सक्रिय राजनीतिक जीवन से भी संन्यास लेने की घोषणा कर दी। सुखराम ने अपने परंपरागत गढ़ सदर विधानसभा क्षेत्र की कमान अपने बेटे अनिल शर्मा को सौंप दी। मगर चुनाव जीतने के बाद अनिल शर्मा को वरिष्ठता के बावजूद मंत्री पद की शपथ नहीं दिलवाई गई। हालांकि, पंडित सुखराम ने केंद्र में हाईकमान से अपने रसूख का इस्तेमाल कर अनिल शर्मा को मंत्री तो बनवा दिया लेकिन बावजूद अनिल शर्मा का कहना है कि उन्हें बतौर मंत्री कोई तरजीह नहीं दी गई। कैबिनेट में वरिष्ठ होने के बावजूद उनकी सीट जानबूझकर बदली जाती थी और आखिर में बैठने को स्थान दिया जाता था। 


वीरभद्र ने किया सुखराम का अपमान
पार्टी प्रदेश प्रभारी सुशील कुमार शिंदे के स्वागत के लिए कार्यक्रम में सुखराम को शिंदे ने मंच पर बुलाया लेकिन वहां मंच से वीरभद्र ने उनका 'आया राम गया राम' कहकर अपमान किया, वहीं पिछले कल अनिल शर्मा ने बताया था कि एक सप्ताह पूर्व इस बीच वीरभद्र को मंडी रैली में मुख्यमंत्री प्रोजैक्ट करने के लिए कार्यक्रम रखा गया तो शिंदे ने फोन करके अनिल को बताया कि आप अपने पिता जी को रैली में मत लाना क्योंकि वीरभद्र ने मना किया है कि वे सुखराम के आने पर रैली छोड़कर चले जाएंगे। हाल ही में हुए इन कुछ घटनाक्रमों के चलते सुखराम ने अपने परिवार समेत कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया है। 

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