यहां देवदार के पेड़ों पर लटकाए जाते हैं बच्चों के केश

Edited By Punjab Kesari, Updated: 06 Nov, 2017 12:36 AM

here children  s hair are hung on pine trees

देवभूमि कुल्लू में सदियों से अद्भुत देव परम्पराओं का निर्वहन किया जा रहा है।

काईस: देवभूमि कुल्लू में सदियों से अद्भुत देव परम्पराओं का निर्वहन किया जा रहा है। देवभूमि कुल्लू में एक ऐसा देव स्थल भी है जहां बच्चों के केश काटकर देवदार के पेड़ों पर लटकाए जाते हैं। ऐसा ही देव स्थल जिला मुख्यालय से सटी खराहल घाटी के काईस से सटे कोहना मलाणा तंदला में सदियों से निभाया जाता रहा है। यहां देव शुकली नाग के सम्मान में मुंडन संस्कार देने की देव परम्परा निभाई जाती है। हारियान क्षेत्र में जिस नव दम्पति का पहला पुत्र होता है उसका देव स्थल में जाकर मुंडन संस्कार करना पड़ता है। देव परम्परा अनुसार देवता का गुर और बच्चे का मामा मुंडन संस्कार परम्परा को निभाते हैं। गुर और मामा बच्चे के केश काट देते हैं, इसके बाद देवता का कारकून बच्चे के केश काटकर देवदार के पेड़ों पर लटकाते हैं, बाद में बच्चे के परिजन रिश्तेदारों के लिए धाम का आयोजन करते हैं। 

नहीं लगती बच्चों को बुरी नजर 
माना जाता है कि बच्चों के केश देवदार के पेड़ों पर लटकाने से बच्चों को बुरी नजर नहीं लगती है। मान्यता यह भी है कि अगर कोई नव दम्पति पहले पुत्र का देव स्थल में जाकर मुंडन संस्कार नहीं करते हैं तो अशुभ होने की आशंका रहती है। अगले माह यानी मार्गशीर्ष माह में मुंडन संस्कार देने की परम्परा निभाई जाती है। इस बार भी 16 नवम्बर से मुंडन संस्कार की परम्परा शुरू होगी। इसके लिए नव दंपतियों ने मुंडन संस्कार देने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। दम्पति बच्चों का मुंडन संस्कार करने से पहले देवता से आज्ञा लेते हैं। देव आदेश के बाद बारी-बारी से हारियान क्षेत्र के दम्पति अपने बच्चों का मुंडन संस्कार करवाते हैं। 

पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करता है देवता
मान्यता है कि जिन लोगों के पुत्र प्राप्त नहीं होते उन लोगों की देवता पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करता है। देवलुओं के अनुसार जब प्राचीन समय में देव शुकली नाग तंदला गांव में प्रकट हुए थे उस समय भी यहां पर नि:संतान दंपति रहते थे। कहा जाता है कि उस समय भी देवता ने नि:संतान दम्पति को पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण की थी। पुत्र प्राप्ति से खुश होकर दम्पति ने देव स्थल में मुंडन संस्कार किया था, तब से लेकर यह देव परम्परा अभी तक निभाई जा रही है।

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