सरकार-प्रशासन नहीं सुन रहे फरियाद, दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर 22 परिवार

Edited By Punjab Kesari, Updated: 22 Sep, 2017 06:09 PM

government administration not hear complaint  22 families forced to eat stumble

रेलवे की भूमि से अवैध निर्माण हटाए जाने के हाईकोर्ट के आदेशों के बाद ऊना में चार मंदिर, एक सरकारी स्कूल, एक गौशाला और कुष्ठ आश्रम पर पीले पंजे का कहर बरसा, जिसके बाद कुष्ठ आश्रम में रह रहे 22 परिवार सड़क पर आ गए हैं।

ऊना (अमित): रेलवे की भूमि से अवैध निर्माण हटाए जाने के हाईकोर्ट के आदेशों के बाद ऊना में चार मंदिर, एक सरकारी स्कूल, एक गौशाला और कुष्ठ आश्रम पर पीले पंजे का कहर बरसा, जिसके बाद कुष्ठ आश्रम में रह रहे 22 परिवार सड़क पर आ गए हैं। जो सिर छिपाने के लिए दरबदर भटकने को मजबूर हैं। इन 22 परिवारों के करीब 50 लोगों को खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर होना पड़ रहा है लेकिन न सरकार के कान पर जूं रेंग रही है और न ही प्रशासन उनकी कोई सुनवाई कर रहा है। यह कुष्ठ आश्रम ऊना में करीब 30 साल पुराना है और यहां रहने वाले सभी परिवार अब यहां के स्थायी निवासी और वोटर भी बन चुके हैं। 
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देख लेंगे का आश्वासन देकर चलते किए परिवार 
हालांकि इन्हें कोर्ट का नोटिस मिला था, जिसके बाद इन परिवारों ने पिछले 2 महीनों से कई दफा सरकार और प्रशासन का दरवाजा खटखटा कर आश्रम के लिए जमीन उपलब्ध करवाने की मांग की लेकिन उन्हें हर जगह से नाकामी ही हाथ लगी। यहां तक कि प्रशासनिक अधिकारियों ने जमीन के लिए अप्लाई करने पर सिर्फ देख लेंगे का आश्वासन देकर इन परिवारों को चलता कर दिया। प्रशासनिक अधिकारी के ये बड़े बोल मीडिया के कैमरों में भी कैद हो गए हैं। 
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वोट बैंक की खातिर कई राजनेता आ चुके हैं कुष्ठ आश्रम  
इस कुष्ठ आश्रम में कई राजनेता वोट बैंक की खातिर कई योजनाओं को अंजाम देते आए हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वपूर्ण योजना स्वच्छता अभियान की शुरूआत भी सांसद अनुराग ठाकुर यहां से कर चुके हैं जबकि पक्ष-विपक्ष के अनेकों राजनेता भी यहां अक्सर आते रहते थे और कई संस्थाओं सहित एम.पी. व एम.एल.ए. का फंड भी यहां विकास कार्यों में लग चुका है  लेकिन अब कोई राजनेता इन परिवारों की फरियाद नहीं सुन रहा है। बेघर हुए इन परिवारों को अब अगर किसी से उम्मीद है तो वो सिर्फ मीडिया ही है। 
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समाजसेवी संस्थाओं ने दिया सहारा 
इन बेघर परिवारों के समर्थन में हालांकि कुछ समाजसेवी संस्थाएं आगे आई हैं। इन संस्थाओं ने ही इनके खाने-पीने की व्यवस्था की है। जो काम प्रशासन का होना चाहिए था, उस काम को ये संस्थाएं कर रही हैं और प्रशासन खामोश बैठ तमाशा देख रहा है। बेघर होने के एक दिन बाद तक भी प्रशासन इनके लिए रहने की व्यवस्था नहीं कर सका है जबकि ये परिवार पिछले करीब डेढ़ महीने से इसकी मांग कर रहे थे। अब समाजसेवी संस्थाओं ने भी मानवीय संवेदना के आधार पर इनके लिए रहने की व्यवस्था किए जाने की मांग की है। 

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