हकीकत: चार सौ साल पहले श्रापित वट वृक्ष सूख रहा था, श्राप मुक्त होने की आज भी दे रहा लदरौर में गवाही

Edited By Punjab Kesari, Updated: 26 Nov, 2017 05:59 PM

four hundred years old reality

जिला के तहत आने वाले लदरौर शहर की एक हकीकत जिससे आप बाकिफ नहीं होंगे हम उस हकीकत को आज आपके सामने जाहिर कर रहे हैं। यह घटना आज की नहीं बल्कि चार सौ साल पुरानी है। आज इस जगह पर एक मंदिर है, जहां पर लंगर भी लगता है। चार सौ साल पहले सिखों के दसवें गुरु...

हमीरपुर: जिला के तहत आने वाले लदरौर शहर की एक हकीकत जिससे आप बाकिफ नहीं होंगे हम उस हकीकत को आज आपके सामने जाहिर कर रहे हैं। यह घटना आज की नहीं बल्कि चार सौ साल पुरानी है। आज इस जगह पर एक मंदिर है, जहां पर लंगर भी लगता है। चार सौ साल पहले सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह के छोटे भाई बाबा लखमीर दास का हिमाचल के गांवों में आना जाना लग रहता था। बाबा हमीरपुर और बिलासपुर जिलों के अलावा प्रदेश के गांवों में सतनाम धर्म के प्रचार के लिए आते रहते थे। इस दौरान बाबाजी किसी के घर पर भी ठहरना पसंद नहीं करते थे। बाबा लदरौर गांव के पास वट वृक्ष के नीचे आसन लगाते और विश्राम करते थे। बाबाजी सत्संग के साथ यहां पर लंगर का बंदोबस्त भी करते थे। जो लंगर आज भी जारी हैं।

नीचे गिर गई थी पकड़ी
बुजुर्गों का कहना है कि एक दिन बाबा लखमीर दास लदरौर कस्बे में शिष्यों के साथ पधारे, वह घोड़े पर लदरौर कलां के पास से ही निकल रहे थे तो अचानक बरगद पेड़ की टहनियों से उनकी पगड़ी टकराकर नीचे गिर गई। इसे अपमान समझकर उन्होंने बरगद के पेड़ को श्राप दे दिया। क्षेत्रवासियों ने देखा के कुछ दिनों के बाद बरगद का पेड़ सूख गया और टहनियां गिरने लगीं। जब दोबारा बाबा लखमीर दास इसी क्षेत्र में यात्रा कर रहे थे तो ग्रामीणों ने पेड़ के सूखने की बात उनको बताई तथा बरगद के वृक्ष को दोबारा हरा-भरा करने की प्रार्थना की। इसके बाद बाबा लखमीर दास ने वटवृक्ष को श्राप से मुक्त किया। 

सत्यता का गवाह है वटवृक्ष
लोगों का कहना है कि कुछ दिनों के बाद वृक्ष फिर से हरा-भरा होने लगा। इसके बाद ग्रामीणों ने वहां एक मंदिर का निर्माण किया जहां भंडारे लगते हैं। यहां आज भी यह सालों पुराना बरगद का वृक्ष सत्यता का गवाह बन हरा भरा खड़ा है। बाबा लखमीर दास मंदिर में टमक की थाप सुनने को मिलती है। आपको बता दें कि इस क्षेत्र में लोगों ने कई बरगद और पीपल के पेड़ लगाए हुए हैं। ताकि बाबा के आने पर उन्हें विश्राम करने में दिक्कत न हो पाए। अब इस कस्बे में प्रतिवर्ष एक सायर मेले का आयोजन किया जाता है जो तीन दिन चलता है। लदरौर का सायर मेला हर साल सितंबर माह की अश्विन संक्रांति के दिन मनाया जाता है। 

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