आस्था के सैलाब के बीच ढालपुर पहुंचे देवता, रथयात्रा के साथ दशहरा उत्सव शुरू

Edited By Punjab Kesari, Updated: 30 Sep, 2017 04:49 PM

devta reached dhalpur between the flood of faith

सात दिन तक चलने वाला कुल्लू का अतंरराष्ट्रीय दशहरा ...

कूल्लू: सात दिन तक चलने वाला कुल्लू का अतंरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव रथ यात्रा के साथ शुरू हो गया। भगवान रघुनाथ का रथ खींचने के लिए श्रद्धालुओं का भारी सैलाब उमड़ आया। सैंकड़ों देवरथों के साथ हजारों वाद्य-यंत्रों की धुन के बीच भगवान रघुनाथ की ऐतिहासिक रथयात्रा निकली। हारियानों के साथ देवरथ और पालकियों को सजाया गया था। दोपहर बाद रंगीन एवं सुंदर पालकी से सुसज्जित कुल्लू के अराध्य देव भगवान रघुनाथ जी को पालकी में बिठा कर सुल्तानपुर में मूल मंदिर से ढालपुर मैदान तक लाया गया। कुल्लू का दशहरा पर्व परंपरा, रीति-रिवाज और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है। यहां का दशहरा सबसे अलग और अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। यहां इस त्यौहार को दशमी कहते हैं। अश्विन माह की दसवीं तारीख को इसकी शुरुआत होती है। जब पूरे भारत में बुराई के प्रतीक के पुतले फूंके जाते हैं, उस दिन से घाटी में इस उत्सव का रंग चढ़ने लगता है। कुल्लू के दशहरे में अश्विन महीने के पहले 15 दिनों में राजा सभी देवी-देवताओं को ढालपुर घाटी में रघुनाथ जी के सम्मान में यज्ञ करने के लिए न्योता देते हैं। 100 से ज्यादा देवी-देवताओं को रंग-बिरंगी सजी हुई पालकियों में बैठाया जाता है। इस उत्सव के पहले दिन दशहरे की देवी, मनाली की हिडिंबा कुल्लू आती हैं। राजघराने के सभी सदस्य देवी का आशीर्वाद लेने आते हैं।


7वें दिन रथ को ब्यास नदी के किनारे ले जाते है
उत्सव के छठे दिन सभी देवी-देवता इकट्ठे आकर मिलते हैं जिसे 'मोहल्ला' कहते हैं। रघुनाथ जी के इस पड़ाव पर सारी रात लोगों का नाच-गाना चलता है। 7वें दिन रथ को ब्यास नदी के किनारे ले जाया जाता है, जहां लंका-दहन का आयोजन होता है, लेकिन पुतले नहीं फूंके जाते। इसके बाद रथ को दोबारा उसी स्थान पर लाया जाता है और रघुनाथ जी को रघुनाथपुर के मंदिर में स्थापित किया जाता है। इस तरह विश्वविख्यात कुल्लू का दशहरा हर्षोल्लास के साथ संपूर्ण होता है। कुल्लू नगर में देवता रघुनाथ जी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं। दशमी पर उत्सव की शोभा निराली होती है। दशहरा पर्व भारत में ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर विश्व के अनेक देशों में उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। भारत में विजयादशमी का पर्व देश के कोने-कोने में मनाया जाता है। भारत के ऐसे अनेक स्थान हैं, जहां दशहरे की धूम देखते ही बनती है। कुल्लू के साथ-साथ मैसूर का दशहरा काफी प्रसिद्ध है। दक्षिण भारत तथा इसके अतिरिक्त उत्तर भारत, बंगाल इत्यादि में भी विजयादशमी पर्व को बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।


30 सितंबर से शुरू हो दशहरा का समापन 7 अक्तूबर को होगा
देवी-देवताओं की पालकियों के साथ ग्रामवासी वाद्य यंत्र बजाते हुए चलते हैं। ब्यास नदी के तट पर एकत्रित घास व लकड़ियों को आग लगाने के पश्चात 5 बलियां दी जाती हैं तथा रथ को पुन: खींचकर रथ मैदान तक लाया जाता है। इसी के साथ लंका दहन की समाप्ति हो जाती है तथा रघुनाथ जी की पालकी को वापस मंदिर लाया जाता है। देवी-देवता भी अपने-अपने गांव के लिए प्रस्थान करते हैं। ‘ठाकुर' निकलने से लंका दहन तक की अवधि में पर्यटकों के लिए एक विषेश आकर्षण रहता है। इस दौरान उन्हें यहां की भाषा, वेशभूशा, देव परंपराओं और सभ्यता से रूबरू होने का मौका मिलता है, स्थानीय उत्पाद विषेश रूप से कुल्लू की शॉल, टोपियां आदि खरीदने का अवसर भी प्राप्त होता है। दरअसल, इस बार 30 सितंबर से शुरू हो दशहरा का समापन 7 अक्तूबर को होगा। कुल्लू के उपायुक्त युनूस खान ने कहा कि सप्ताह भर चलने वाले दशहरा महोत्सव में भाग लेने के लिए लगभग 305 स्थानीय देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया है। उन्होंने कहा कि दशहरा समिति के आग्रह पर रूस से सांस्कृतिक दल ने उत्सव में भाग लेने के अलावा आईसीसीआर नई दिल्ली तीन अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक दलों के लिए सहमत हुई है। उन्होंने कहा कि समिति ने श्रीलंका, मध्यपूर्व तथा लेटिन अमेरिका से सांस्कृतिक दलों के लिए आग्रह किया है।


कुल्लू दशहरे का इतिहास
कहा जाता है कि साल 1636 में जब जगत सिंह यहां का राजा था, तो मणिकर्ण की यात्रा के दौरान उसने एक गांव में एक ब्राह्मण से कीमती रत्न के बारे में पता चला। जगत सिंह ने रत्न हासिल करने के लिए ब्राह्मण को कई यातनाएं दीं। डर के मारे उसने राजा को श्राप देकर परिवार समेत आत्महत्या कर ली। कुछ दिन बाद राजा की तबीयत खराब होने लगी। तब एक साधु ने राजा को श्रापमुक्त होने के लिए रघुनाथ जी की मूर्ति लगवाने की सलाह दी। अयोध्या से लाई गई इस मूर्ति के कारण राजा धीरे-धीरे ठीक भी हुआ और तब से उसने अपना जीवन और पूरा साम्राज्य भगवान रघुनाथ को समर्पित कर दिया।

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