देवभूमि की इस प्रसिद्ध धार्मिक झील में स्नान करने से मिटते हैं पाप, जानिए क्या है रहस्य

Edited By Punjab Kesari, Updated: 05 Nov, 2017 11:04 AM

devbhomi of this famous religious in the lake bath to meet with sin

सिरमौर के नाहन से 40 किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध धार्मिक एवं पर्यटन स्थल श्री रेणुका जी स्थित है। जो हिमाचल प्रदेश के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। 672 मीटर की लंबाई के साथ रेणुका झील हिमाचल की सबसे बड़ी झील के रूप में जानी जाती है। बता...

रेणुका जी: सिरमौर के नाहन से 40 किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध धार्मिक एवं पर्यटन स्थल श्री रेणुका जी स्थित है। जो हिमाचल प्रदेश के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। 672 मीटर की लंबाई के साथ रेणुका झील हिमाचल की सबसे बड़ी झील के रूप में जानी जाती है। बता दें कि मां-पुत्र के पावन मिलन का श्री रेणुका जी मेला हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है। जो हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक उत्तरी भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री रेणुका में मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु रेणुका झील में स्नान करते हैं। 
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रेणुका झील में स्नान करने से मिल जाता है पुण्य
शनिवार को यहां गिरिपार, सैनधार, धारटीधार सहित पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड यू.पी., दिल्ली के हजारों श्रद्धालुओं ने झील में स्नान कर मोक्ष की कामना की। हिमाचल प्रांत के श्रीमहंत दयानंद भारती ने बताया कि हरी प्रबोधनी एकादशी पापों को नष्ट करने वाली है। कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को स्नान करने का महत्व इसलिए है क्योंकि इस पूर्णिमा के स्नान का फल गंगा, भागीरथी, अन्य नदियां व समुद्र में स्नान करने के फल के बराबर है, वहीं पुण्य रेणुका झील में स्नान करने से मिल जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली इस पूर्णिमा को व्रत व स्नान करने से मनुष्य के कायिक वाचिक व मानसिक पाप नष्ट हो जाते हैं। पुराणों में लिखा है कि संसार के जितने भी तीर्थ हैं उनमें रेणुका झील भी एक है। इसमें स्नान करने से मनुष्य पाप से मुक्त हो जाता है।  
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जानिए इस मेले का रहस्य
मां-पुत्र के पावन मिलन का श्री रेणुका जी मेला हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है। जो हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक उत्तरी भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री रेणुका में मनाया जाता है। इस दिन भगवान परशुराम जामूकोटी से साल में एक बार अपनी मां रेणुका से मिलने आते हैं। रेणुका झील के किनारे मां श्री रेणुका जी व भगवान परशुराम जी के भव्य मंदिर स्थित हैं। कथानक के अनुसार प्राचीन काल में आर्यवर्त में हैहय वंशी क्षत्रीय राज करते थे। भृगुवंशी ब्राह्मण उनके राज पुरोहित थे। इसी भृगुवंश के महर्षि ऋचिक के घर महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ। इनका विवाह इक्ष्वाकु कुल के ऋषि रेणु की कन्या रेणुका से हुआ। महर्षि जमदग्नि सपरिवार इसी क्षेत्र में तपस्या करने लगे। जिस स्थान पर उन्होंने तपस्या की वह तपे का टीला कहलाता है। महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी जिसे पाने के लिए सभी तत्कालीन राजा, ऋषि उत्सुक थे। 


राजा अर्जुन ने वरदान में भगवान दतात्रेय से एक हजार भुजाएं पाई थीं। जिसके कारण वह सहस्त्रार्जुन कहलाए जाने लगे। एक दिन वह महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु मांगने पहुंचे। महर्षि जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु एवं उसके सैनिकों का खूब सत्कार किया। उसे समझाया कि कामधेनु गाय उसके पास कुबेर जी की अमानत है। जिसे किसी को नहीं दे सकते। गुस्साए सहस्त्रबाहु ने महर्षि की हत्या कर दी। यह सुनकर मां रेणुका शोकवश राम सरोवर मे कूद गई। सरोवर ने मां रेणुका की देह को ढकने की कोशिश की। जिससे इसका आकार स्त्री देह समान हो गया। जिसे आज पवित्र रेणुका झील के नाम से जाना जाता है। परशुराम अति क्रोध में सहस्त्रबाहु को ढूंढने निकल पड़े। उसे युद्ध के लिए ललकारा। भगवान परशुराम ने सेना सहित सहस्त्रबाहु का वध कर दिया। भगवान परशुराम ने अपनी योगशक्ति से पिता जमदग्नि तथा मां रेणुका को जीवित कर दिया। माता रेणुका ने वचन दिया कि वह हर साल इस दिन कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी को अपने पुत्र भगवान परशुराम से मिलने आया करेंगी।  


 

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