कोलकाता के निदेशक ने कहा- करोड़ों लोगों का जीवन हिमाचल पर निर्भर

Edited By Punjab Kesari, Updated: 24 Mar, 2018 09:42 AM

crores of people depend on himachal

भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग (जैड.एस.आई.) कोलकाता के निदेशक डा. कैलाश चंद्रा ने कहा कि देश के करोड़ों लोगों व जीवों का जीवन हिमाचल पर निर्भर है। डा. चंद्रा शुक्रवार को सोलन स्थित भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग के हाई अल्टीच्यूड स्टेशन में शुरू हुई...

सोलन : भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग (जैड.एस.आई.) कोलकाता के निदेशक डा. कैलाश चंद्रा ने कहा कि देश के करोड़ों लोगों व जीवों का जीवन हिमाचल पर निर्भर है। डा. चंद्रा शुक्रवार को सोलन स्थित भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग के हाई अल्टीच्यूड स्टेशन में शुरू हुई जैव विविधता पर 3 दिवसीय कैपेसिटी बिल्डिंग कार्यशाला को बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे। कार्यशाला का आयोजन पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के नैशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टीम के तहत किया गया है। इस कार्यशाला में देशभर से यहां पहुंचे वैज्ञानिक हिमालयन जैव विविधता की लांग टर्म मॉनीटरिंग को लेकर चर्चा करेंगे, साथ ही यहां होने वाली चर्चा को 2 विभाग भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग (जैड.एस.आई.), भारतीय बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया (बी.एस.आई.) 26 अप्रैल को देहरादून में होने वाली बुक प्रोटोकाल में भी शामिल करेगा।

हिमालय में पाई जाने वाली जैव विविधता 
कार्यशाला के शुभारंभ अवसर पर डा. चंद्रा ने कहा कि हिमालय में पाई जाने वाली जैव विविधता के संरक्षण और संवद्र्धन को लेकर पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तत्वावधान में अम्ब्रेला कार्यक्रम चल रहा है। यह कार्यक्रम देश के 5 राज्यों हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्कम, पश्चिम बंगाल और अरुणाचल प्रदेश में चल रहा है। अप्रैल, 2016 से शुरू हुआ यह कार्यक्रम 3 वर्षों तक हिमालयन रीजन में पाई जाने वाली जैव विविधता की मॉनीटरिंग करेगा। इससे यह पता चल पाएगा कि हिमालय में मौजूद फ्लोरा व फौना की वर्तमान में क्या स्थिति है। हिमालय में फ्लोरा और फौना की कौन-सी ऐसी प्रजातियां हैं, जो विलुप्त होने की कगार पर हैं या विलुप्त हो चुकी हैं।

जड़ी-बूटियों का संरक्षण भी  जरूरी : डा. चौहान
कार्यशाला में जाने-माने औषधीय पौधों के विशेषज्ञ व नौणी यूनिवॢसटी के पूर्व प्रोफैसर डा. एन.एस. चौहान ने कहा कि हिमालयन रीजन में जड़ी-बूटियां बहुतायत में मौजूद हैं, जो हमारी धरोहर हैं। इसका संरक्षण करना नितांत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जिन पौधों की हम जड़ों का प्रयोग करते हैं, उन्हें पतझड़ के मौसम में निकालना चाहिए, साथ ही फूलों को पॉलीनेशन से पहले निकालना चाहिए, ताकि उनका संरक्षण हो सके। उन्होंने कैंसर में प्रयोग होने वाले पौधे टैक्सस बकाटा का उदाहरण देकर अपनी बात को स्पष्ट किया कि इसका किस प्रकार हम लालच में अवैज्ञानिक दोहन कर रहे हैं, जबकि यह कैंसर रोगियों के लिए जीवन देने वाला पौधा है। उन्होंने कहा कि जंगलों में पाए जाने वाले बेशकीमती पौधों के संरक्षण के लिए वन विभाग को भी प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है, ताकि इनका संरक्षण हो सके।

वैज्ञानिकों ने रखे अपने विचार
इस मौके पर भारतीय बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया (बी.एस.आई.) सहायक निदेशक डा. बी.के. सिन्हा, डा. एस.एस. दास, डा. वासुदेव त्रिपाठी, डा. ललित कुमार, वन विभाग सोलन के ए.सी.एफ. पवन कुमार आंचल, जे.एस.आई. सोलन के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डा. जे.एम. जुल्का और जैड.एस.आई. सोलन की प्रभारी अधिकारी डा. अवतार कौर सिद्धू ने भी अपने विचार रखे। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस वर्कशॉप का उद्देश्य है कि स्थानीय लोगों को भी हिमालयन रीजन की जैव विविधता का पता चल सके। स्थानीय स्तर पर इसके संरक्षण व संवद्र्धन की दिशा में क्या प्रयास किए जाने चाहिए। प्राकृतिक संसाधनों का किस प्रकार से हम सदुपयोग करें, ताकि हिमालय की वनस्पति और जीव-जंतुओं को बचाया जा सके। इस कार्यशाला में केंद्र सरकार के हिमालय रीजन में काम करने वाले विभागों को शामिल किया गया है। 

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