Edited By Punjab Kesari, Updated: 01 Dec, 2017 09:32 AM
विधानसभा चुनाव के बाद कई प्रत्याशी अपनी-अपनी गोटियां फिट करने में लगे हुए हैं। कई मंत्री पद पाने के लिए तो कई सरकार किसी बड़े ओहदे की खातिर समीरपुर और होलीलॉज के चक्कर काट रहे हैं। दरअसल भाजपा प्रत्याशी इस भरोसे हैं कि हर पांच साल बाद सूबे में सरकार...
कुल्लू (शम्भू प्रकाश): विधानसभा चुनाव के बाद कई प्रत्याशी अपनी-अपनी गोटियां फिट करने में लगे हुए हैं। कई मंत्री पद पाने के लिए तो कई सरकार किसी बड़े ओहदे की खातिर समीरपुर और होलीलॉज के चक्कर काट रहे हैं। दरअसल भाजपा प्रत्याशी इस भरोसे हैं कि हर पांच साल बाद सूबे में सरकार बदलने का प्रचलन है। इसलिए भाजपा प्रत्याशी मान रहे हैं कि 18 दिसम्बर को हिमाचल में भाजपा को बहुमत मिलेगा। दूसरी ओर कांग्रेस के उम्मीदवारों को लग रहा है कि कोई चमत्कार हो जाए और प्रदेश में कांग्रेस का मिशन रिपीट सफल हो। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के हाथ फिर से प्रदेश की कमान आएगी।
जिनके टिकट कटे वे भी लगा रहे समीरपुर व होलीलॉज के चक्कर
इन दोनों सियासी दलों के प्रत्याशी समीरपुर और होलीलॉज के चक्कर काटकर आने वाली सरकार में मंत्री पद या अन्य कोई बड़ा ओहदा पाने के जुगाड़ में हैं। जो टिकट की दौड़ में छिटक गए वे इसलिए चक्कर काट रहे हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि सरकार बनने के बाद उन्हें शिमला में कोठी मिलने के साथ-साथ सरकारी दफ्तर और सरकारी गाड़ी भी मिल जाएगी। इतना ही नहीं कई प्रत्याशी तो दिल्ली तक पहुंच रहे हैं और शीर्ष नेताओं व राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से मिल रहे हैं। कई प्रदेश प्रभारियों से भी मुलाकात कर रहे हैं, साथ ही आने वाली सरकार में मंत्री पद या बड़े ओहदे के लिए सिफारिश भी करना नहीं भूल रहे हैं। दरअसल, इस बार हिमाचल प्रदेश में प्रत्याशियों को चुनाव से पहले वक्त कम मिला है और चुनाव निपटने के बाद गोटियां फिट करने के लिए वक्त काफी ज्यादा मिला हुआ है।
चुनाव के बाद प्रत्याशी गोटियां फिट करने में लगा रहे समय
ऐसे में प्रत्याशी भी चुनाव के बाद मिले इस काफी लंबे समय का इस्तेमाल गोटियां फिट करने में लगा रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि आने वाले समय में इसका बड़ा सियासी लाभ मिलेगा। सियासत में ऊंट किस करवट बैठेगा इसका फैसला तो 18 दिसम्बर को होगा लेकिन प्रत्याशी उससे पहले ही अपने जुगाड़ में लगे हुए हैं। कई ऐसे प्रत्याशी भी हैं जिन्हें विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान राष्ट्रीय नेताओं ने कई तरह के प्रलोभन भी दिए हैं। इनमें वे प्रत्याशी शामिल हैं जो लंबे समय से लगातार जीत दर्ज कर विधानसभा की दहलीज को लांघ रहे हैं और चुनाव के दौरान खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी मान रहे थे। ऐसे प्रत्याशियों की भाजपा और कांग्रेस दोनों ही सियासी दलों में लंबी सूची है।
18 दिसम्बर पर टिकी हुई निगाहें
जीत के बाद उन्हें मंत्री पद तो मिल सकता है लेकिन वे उप मुख्यमंत्री पद की भी उम्मीद लगाए बैठे हैं। बहरहाल, लोगों की निगाहें 18 दिसम्बर पर टिकी हुई हैं। हिमाचल और गुजरात के ताज का उस दिन फैसला होना है। पहले यह देखना होगा कि किसे बहुमत मिलेगा और किसकी सरकार बनेगी। किसे कौन सा मंत्रालय मिलेगा और किसे सरकार में क्या ओहदा मिलेगा यह उसके बाद तय होगा।
कई दिग्गज पहले ही ढूंढ रहे बहाना
हिमाचल में कई दिग्गजों को भी इस बार अपने हारने का खौफ सता रहा है। इसके लिए पहले ही कई दिग्गज बहाने ढूंढ रहे हैं। वे पहले ही ऐसे बयान दे रहे हैं कि जिससे हार के बाद जनता को यह लगे कि सच में विरोधियों ने ऐसा कुछ अनैतिक कार्य किया हो जिससे वोट बैंक हिल गया। कई दिग्गज यह कह रहे हैं कि उन्हें हराने के लिए विरोधियों ने पैसा पानी की तरह बहाया तो कई कह रहे हैं कि उनके विधानसभा क्षेत्र में विरोधियों ने खूब शराब बांटी। कई तो यह कह रहे हैं कि उन्हें हराने के लिए अपनों ने ही विरोधियों के साथ मिलकर घर-घर नोटों के बंडल पहुंचाए। सच क्या है यह चुनाव नतीजे तय करेंगे। आम चर्चा यह भी है कि जिस व्यक्ति ने विधायक या मंत्री बनने के बाद या सरकार में किसी ऊंचे ओहदे पर रहकर बिना किसी भेदभाव के जनसेवा को तरजीह दी हो, उसकी जीत तय है। जिसने जनसेवा की जगह अपनों की सेवा की हो उसकी हार निश्चित है।