Edited By Punjab Kesari, Updated: 09 Oct, 2017 09:42 AM
यूं तो हर चुनाव यादगार होता है परंतु सबसे अधिक यादगार चुनाव वर्ष 1998 में रहे थे।
ऊना: यूं तो हर चुनाव यादगार होता है परंतु सबसे अधिक यादगार चुनाव वर्ष 1998 में रहे थे। वर्ष 1993 में वीरभद्र सिंह ने सत्ता की बागडोर संभाली तो उन्हें पार्टी की अंदरूनी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। सुखराम धड़े की तरफ से मिल रही चुनौतियों के बीच वीरभद्र सिंह सरकार को रिपीट करना चाहते थे। हालांकि उनकी सरकार की अवधि वर्ष 1998 के अंत तक थी, लेकिन प्रतिद्वंद्वी पार्टी भाजपा में चली जबरदस्त उठापटक का लाभ लेने के लिए वीरभद्र सिंह ने तय अवधि से करीब एक वर्ष पहले ही चुनाव करवाने का फैसला लिया, ताकि सरकार रिपीट हो सके। इस चुनाव में एक तरफ सी.एम. का चेहरा वीरभद्र सिंह थे तो दूसरी तरफ भाजपा ने पहली बार प्रेम कुमार धूमल को बतौर मुख्यमंत्री प्रोजैक्ट किया था। सुखराम की नई पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस भी चुनाव मैदान में कूदी थी। चुनाव नतीजे हैरान करने वाले थे।
वीरभद्र सिंह की पार्टी को मिली थीं 31 सीटें
सरकार रिपीट करने का सपना संजोए वीरभद्र सिंह की पार्टी को 31 सीटें, विपक्षी भाजपा को 29 तो हिविकां को 4 तथा एक पर निर्दलीय रमेश धवाला चुनाव जीतकर आए थे। ट्राइबल की 3 सीटों पर चुनाव बाद में होने थे। किसी को बहुमत न मिलने के चलते प्रदेश में जबरदस्त सत्ता संघर्ष हुआ। कांग्रेस पार्टी ने निर्दलीय धवाला का समर्थन लेकर सरकार के गठन का फैसला लिया और वीरभद्र सिंह ने 6 मार्च, 1998 को बतौर मुख्यमंत्री की शपथ ली। उन्हें विस में बहुमत साबित करना था, लेकिन 12 मार्च, 1998 को विस में बहुमत न मिलने के चलते उन्हें त्याग पत्र देना पड़ा। वीरभद्र सिंह केवल 6 दिन के लिए ही मुख्यमंत्री पद पर रह पाए थे।
रमेश धवाला ने पलटा पासा
रमेश धवाला ने बाद में पासा पलटा और वह भाजपा को समर्थन देने पहुंच गए। ट्राइबल की तीनों सीटों पर भाजपा-हिविकां गठबंधन ने विजय पाई। धूमल मुख्यमंत्री बने तो प्रदेश में हुए तीनों विस उपचुनाव परागपुर, सोलन और बैजनाथ भी भाजपा ने जीते। हालांकि परागपुर को छोड़कर 2 पर कांग्रेस विराजमान थी। सोलन का चुनाव अदालत से रद्द हुआ था जबकि बैजनाथ में पंडित संत राम के निधन से सीट खाली हुई थी।