शहीद की बेटी को गोद लेने के बाद अब जवानों से मिलने सियाचिन पहुंचे ये IAS अधिकारी

Edited By Punjab Kesari, Updated: 18 Jul, 2017 10:23 PM

after adopting martyr  s daughter now this ias officer arrives at siachen

डी.सी. कुल्लू के रूप में सेवाएं देने वाले आई.ए.एस. अधिकारी यूनुस खान ने सीमा पर शहीद हुए सैनिक परमजीत सिंह (तरनतारन) की बेटी को गोद लेने के बाद अब सियाचिन में तैनात सैनिकों के साथ रहने का रिकार्ड स्थापित किया है।

ऊना: डी.सी. कुल्लू के रूप में सेवाएं देने वाले आई.ए.एस. अधिकारी यूनुस खान ने सीमा पर शहीद हुए सैनिक परमजीत सिंह (तरनतारन) की बेटी को गोद लेने के बाद अब सियाचिन में तैनात सैनिकों के साथ रहने का रिकार्ड स्थापित किया है। सैनिकों के प्रति मन में गहरी आस्था और श्रद्धा रखते हुए उन्होंने करीब 1600 किलोमीटर का सफर तय किया। सड़क मार्ग से सियाचिन पहुंचने वाले शायद वह पहले आई.ए.एस. अधिकारी हैं। 

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सैनिकों से मिलने की तड़प ने पहुंचाया सियाचिन
सैनिक किस प्रकार से सीमाओं पर देश की रक्षा में जुटे हैं, यह जानने तथा उनसे मिलने की तड़प के चलते उन्होंने सड़क मार्ग से सियाचिन जाने की ठानी। इसके लिए उन्होंने सभी अनुमतियां हासिल कीं। अनुमति मिलने के बाद वह अकेले ही सियाचिन के सफर पर चल निकले। उन्होंने सियाचिन पहुंचने के लिए बेहद कठिन सड़क मार्ग का सामना किया। रोहतांग दर्रा को पार करने के बाद लेह से होते हुए उन्होंने बारहलाचा, नुकीला, लचा नुमांचा तथा सबसे खतरनाक दर्रे खरदुंगला को भी पार किया। 5 बड़े दर्रों को पार करने के बाद ही वह सियाचिन के गलेशियर पहुंच पाए। वह अपने साथ आक्सीजन, ड्राई फू्रट व दवाइयां इत्यादि वह सारा सामान ले गए थे। रास्ते में तबीयत खराब होने के बावजूद अपने इरादे पर अडिग़ रहे और मंजिल पर पहुंच गए। उन्होंने एक सप्ताह में सियाचिन पहुंचने में सफलता अर्जित की।  

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सैनिकों के साथ बिताई कई रातें 
सियाचिन में सैनिकों के बीच यूनुस खान ने कई रातें व्यतीत कीं तथा यह देखा कि कैसे सैनिक दिन-रात देश की सीमाओं पर प्रहरी बनकर खड़े हैं। सर्दियों में यहां का तापमान माइनस 50 डिग्री तक चला जाता है। ऐसी परिस्थितियों का सामना सैनिक कैसे करते हैं और कैसे देश की रक्षा करते हैं। ऊना, हमीरपुर और बिलासपुर के डोगरा रैजीमैंट के जवान उनसे गले मिले और उनके वहां पहुंचने पर जमकर जश्न मनाया।  सियाचिन में सैनिकों से मिलना उनका अनूठा अनुभव रहा है। इस दौरान सैनिकों को विशेष रूप से कुल्लू शॉल व टोपी सहित कुछ अन्य चीजें भी सम्मान स्वरूप भेंट की गईं। 

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ओ.पी. बाबा मंदिर में टेका माथा 
इस दौरान उन्होंने सियाचिन के निकट बने ओ.पी. बाबा मंदिर में भी माथा टेका। माना जाता है कि इस मंदिर में मन्नत मांगने से मुराद पूरी होती है। धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक इस मंदिर में हर धर्म के फोटो एवं प्रतीक लगाए गए हैं। सर्व धर्म सद्भाव के इस मंदिर के बारे में अनेक कथाएं हैं। माना जाता है कि इस मंदिर के नीचे बर्फ नहीं आती है और प्रकृति भी यहां रहने वाले सैनिकों की मदद करती है। इस संबंध में जब डी.सी. कुल्लू यूनुस खान से बात की गई तो उन्होंने माना कि वह सियाचिन गए थे और उन सैनिकों के साथ मिले जो कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में देश की रक्षा में जुटे हुए हैं। 

शुरू से ही सैनिकों के प्रति आस्था और लगाव
उन्होंने कहा कि उनका शुरू से ही सैनिकों के प्रति आस्था और लगाव रहा है। इसी के चलते वह सियाचिन पहुंचे। आक्सीजन कम होने की वजह से तबीयत भी बिगड़ी परन्तु वह सियाचिन पहुंचने में कामयाब रहे। उन्होंने कहा कि सैनिकों से मिलकर उन्हें ऐसा लगा जैसे वह पारिवारिक सदस्यों के साथ मिल रहे हैं।  

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