Edited By Punjab Kesari, Updated: 16 Mar, 2018 12:25 PM
आजादी के 70 साल बीतने के बाद भी हमीरपुर जिला के मझौह गांव के लोग सड़क सुविधा से महरूम थे अगर कोई बीमार हो जाता तो उन्हें पालकी में तीन से चार किलोमीटर ले जाना पड़ता था। इस गांव को सड़क ना होने के कारण ''काले टापू'' के नाम से जाना जाता था।
हमीरपुर (अरविंदर): आजादी के 70 साल बीतने के बाद भी हमीरपुर जिला के मझौह गांव के लोग सड़क सुविधा से महरूम थे अगर कोई बीमार हो जाता तो उन्हें पालकी में तीन से चार किलोमीटर ले जाना पड़ता था। इस गांव को सड़क ना होने के कारण 'काले टापू' के नाम से जाना जाता था। आज तक किसी भी राजनेता या पार्टी ने इनकी आवाज नहीं सुनी। लोगों ने कई बार यहां के विधायकों को बताया लेकिन आज तक परिणाम जीरो रहा, कोई भी यहां सड़क नहीं बनवा पाया। थक हार कर ग्रामीणों के सब्र का बांध टूट गया और दो किमी सड़क के लिए श्रमदान और पैसे इकट्ठे करके घरों तक सड़क निकली है।
बता दें कि ग्रामीणों ने अपने बलबूते पर गांव तक 2 किलो मीटर वाहन योग्य कच्ची सड़क बनाकर संदेश दिया है कि वह खुद भी सड़क बना सकते हैं। उपमंडल मुख्यालय भोरंज से महज 4 किलोमीटर की दूरी पर बसे धिरड़ पंचायत के मझौह गांव के लोगों ने अपनी भाग्य रेखा खुद बनाई है। लगभग 2 किलोमीटर मार्ग खुद ही बना डाला। ग्रामीणों ने डेढ़ लाख के करीब धन एकत्र कर जेसीबी लगवाकर खुद सड़क का निमार्ण करवा दिया। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने सत्तासीन होने वाली हर सरकार के समक्ष सड़क निर्माण की मांग रखी, लेकिन किसी ने उनकी सुनवाई नहीं की। जवाब यही मिला कि पहले जमीन की गिफ्ट डीड करवाओ, उसके उपरांत निर्माण कार्य आरंभ किया जाएगा।
लोगों की अपनी जमीन न होने के कारण मार्ग निर्माण का कार्य हर बार ठंडे बस्ते में चला जाता। लोगों ने बताया कि गांव तक सड़क नहीं होने के कारण लोगों को दिक्कत हो रही थी। कई बार सरकार से गुहार लगाई गई, किंतु कुछ नहीं हुआ। ग्रामीणों ने बैठक कर खुद सड़क बनाने का निर्णय लिया। इसके लिए पहले श्रमदान किया गया, फिर जेसीबी लगाने की जरूरत महसूस हुई। इसके लिए ग्रामीणों ने प्रति परिवार 1000 से 2000 रुपये एकत्रित किए और सड़क कार्य शुरू किया।