1737 फीसदी मुनाफे पर बिक रही दवाइयां, NPPA की रिपोर्ट में हुआ खुलासा

Edited By Punjab Kesari, Updated: 22 Feb, 2018 11:56 AM

1737 percent of the medicines sold on profit

नैशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एन.पी. पी.ए.) ने निजी अस्पतालों की मुनाफाखोरी का बड़ा खुलासा किया है। निजी अस्पताल मरीजों को 1737 फीसदी मुनाफे पर दवाइयां बेच रहे हैं। ये अस्पताल बल्क में दवाइयां खरीदने की एवज में फार्मा इंडस्ट्री पर...

सोलन (पाल): नैशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एन.पी. पी.ए.) ने निजी अस्पतालों की मुनाफाखोरी का बड़ा खुलासा किया है। निजी अस्पताल मरीजों को 1737 फीसदी मुनाफे पर दवाइयां बेच रहे हैं। ये अस्पताल बल्क में दवाइयां खरीदने की एवज में फार्मा इंडस्ट्री पर एम.आर.पी. बढ़ाकर लिखने का दबाव बनाते हैं। इनकी रिपोर्ट में बताया गया है कि निजी अस्पताल दवा और अन्य दूसरे कंज्यूमेबल्स पर 1737 फीसदी तक मुनाफा कमा रहे हैं।एन.पी.पी.ए. ने एन.सी.आर. दिल्ली के 4 बड़े और नामी अस्पतालों पर यह स्टडी की है। 


इनके मुताबिक अस्पताल खुद दवाइयों पर ज्यादा रेट प्रिंट करवाते हैं। इसके लिए दवा कंपनियों पर बल्क में दवाइयां खरीदने का दबाव बनाते हैं। वे इंडस्ट्री से ऐसा करवाने में कामयाब भी हो जाते हैं। इनका कहना है कि अपने फायदे के लिए एम.आर.पी. से खिलवाड़ करना मार्कीट के नियमों का उल्लंघन है। इससे उद्योगों और अस्पतालों का तो फायदा हो रहा है लेकिन मरीजों की जेब बुरी तरह से कट रही है। निजी अस्पतालों पर ज्यादा बिल वसूलने के लग रहे आरोपों को देखते हुए एन.पी.पी.ए. ने यह जांच शुरू की थी। इनकी रिपोर्ट के मुताबिक मरीजों का एक चौथाई से ज्यादा बिल नॉन-शैड्यूल दवाइयों का होता है जबकि प्राइस कंट्रोल वाली (शैड्यूल्ड) दवाइयों पर उनका खर्च केवल 4 प्रतिशत होता है। 


निजी अस्पताल ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में मरीजों को नॉन-शैड्यूल दवाइयां देते हैं। इन्होंने देश में करीब 871 दवाइयों को शैड्यूल कर उनके दाम निर्धारित किए हुए हैं। रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि इन अस्पतालों में कुछ शैड्यूल्ड दवाइयों को एम.आर.पी. खरीददारी से 116 से 357 फीसदी ऊपर रखा गया है जबकि नॉन-शैड्यूल दवाइयों का एम.आर.पी. 158 से 1737 फीसदी से अधिक है। इस तरह से निजी अस्पतालों में मरीजों से मुनाफा कमाने का खेल चला हुआ है। इनके उपनिदेशक आनंद प्रकाश की ओर से यह रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि मरीजों से ओवरचार्ज की गई राशि की वसूली की जाएगी। 


ऐसे हो रही लूट
रिपोर्ट में बताया गया है एक कंज्यूमेबल अगर अस्पताल को 5.77 रुपए में पड़ रही है तो उसे अस्पताल रोगी को 106 रुपए में दे रहा है। ऐसे में उसका मुनाफा 1737 प्रतिशत हो जाता है। इसी तरह 189.95 रुपए का एड्रोनर 2 एम.एल. इंजैक्शन अस्पताल को 14.70 रुपए में पड़ रहा है लेकिन रोगी को 5,318 रुपए में दिया जा रहा है। एन.पी.पी.ए. का कहना है कि दवा मैडीकल डिवाइस और डायग्नोस्टिक का बिल मरीजों के कुल खर्च का करीब 46 फीसदी होता है। रोगी जब अस्पताल जाता है तो उनके द्वारा बताए गए पैकेज में ये खर्च जुड़े नहीं होते। इसके कारण रोगी को अस्पताल के बताए गए पैकेज से 2 गुना अधिक पे करना पड़ता है। इससे उसका पूरा बजट बिगड़ जाता है।

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